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यह कैसा सत्याग्रह: प्रभात झा

आंदोलन, सत्याग्रह, उपवास, चक्काजाम, काले झंडे, काली पट्टी, रेल रोको, धरना प्रदर्शन सहित अनेक पैंतरे हो सकते हैं जिनसे सरकार के विरुद्ध अविश्‍वसनीयता व विरोध जताया जा सके। आखिर यह किसके लिए क्‍यों किया जाता है? हम जनता के लिए, जनता की भलाई के लिए, जनता की सहुलियत के लिए सभी कुछ करते हैं। जनता को परेशान करने के लिए नहीं। किसी भी दल को जनता के बीच अपनी बात रखने के लिए जनता के बीच इस तरह के प्रदर्शन करना आवश्‍यक हो तो वह भी संविधान के दायरे में रहकर ही किया जाना चाहिए।

यहां सवाल यह उठता है कि मध्यप्रदेश में दो जून से जो कुछ भी आंदोलन के नाम पर किया गया, वह किसके लिए किया गया? किसानों को आगे कर कांग्रेस द्वारा आंदोलन चलाया गया क्या यह लोकतांत्रिक कदम है? कोई भी अलोकतांत्रिक कार्य कभी भी लोकतंत्र में सफलता नही दिलवाता है। हमारी आजादी की लड़ाई और उस समय के आंदोलन और सत्याग्रह इस बात की गवाही देते हैं। उन आंदोलनों का उद्देश्‍य भारत को आजादी दिलाना था। स्वतंत्रता के बाद भी देश में अनेक आंदोलन एवं सत्याग्रह हुए हैं लेकिन किसी भी आंदोलन या सत्याग्रह की आड़ में ऐसा कुछ नहीं किया गया, जैसा इस आंदोलन के दौरान मध्यप्रदेश में किया गया। मध्यप्रदेश शांति का टापू है। यहां का अन्नदाता सात्विक है। भाईचारे का अनुपम उदाहरण मध्यप्रदेश के ग्रामीण परिवेश में देखने को मिलता है, यहां आज भी गांव के गरीब की बेटी की शादी पूरा गांव मिल-जुलकर करता है। आज भी गांव में कोई भूखा नहीं सोता! क्योंकि गांव में रहने वाला अन्नदाता किसान है।

दो से लेकर सात जून तक जो कुछ भी हुआ उसका जिम्मेदार कांग्रेस पार्टी को कहा जाए, तो अतिश्‍योक्ति नहीं होगी। हम जानना चाहते हैं कि इन्दौर के राउ से विधायक कौन हैं? जो किसानो को उग्र कर रहे थे और अनुविभागीय अधिकारी (एस.डी.एम) से गाली गलौच करते हुए बात करते हैं। किसानो को भड़काकर आग लगाने के लिए प्रेरित करते हुए विधायक शकुंतला देवी खटीक को थाने को आग के हवाले करने और थानेदार को पीटने का अधिकार संविधान ने कब दे दिया। सतना के कांग्रेस जिलाध्यक्ष दिलीप मिश्रा, उन्होंने तो यहां तक कहा कि हम सरकार पर गोली चलवाएंगे। हम रेल की पटरी उखाड़ देगें। धाकड़ जी और कांग्रेस नेता श्याम गुर्जर सांची दूध बरबाद करने की बात कर रहे हैं, सैकड़ो वाहन (ट्रक, बस, शासकीय वाहन) जला दिए गए। कौन सा रूप है यह आंदोलन का? हमारे प्रदेश का किसान कभी ऐसा रहा ही नहीं, वह निर्विकार है और निर्लिप्त भाव से, अपनी क्षमता से, अपनी ताकत से मध्यप्रदेश में बंपर पैदावार करता है।

वाज़िब दाम की लड़ाई लड़ना चाहिए किन्तु किसानों की आड़ में कांग्रेस को नहीं, कांग्रेस आगे आती तो बात समझ में आती। मध्यप्रदेश के किसानों को देश भर में बदनाम करने की गहरी साजिश की गई। किसान आंदोलन के नाम पर कांग्रेस के सभी चेहरे उजागर हो चुके हैं। वह तो भला हो मध्यप्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह जी का जो इस भयावह स्थिति को भांप गए कि यह सत्ता प्राप्ति के लिए किसानों को बरगलाकर प्रदेश की शांति भंग करने की कांग्रेस की सोची समझी चाल है । हमारे लाड़ले मुख्यमंत्री ने कहा कि मध्यप्रदेश बचेगा तो हम बचेंगे और दो टूक कह दिया कि मैं गांधीवादी तरीके से प्रदेश में शांति बहाली के लिए उपवास करूंगा और बैठ गए उपवास पर। भेल दशहरा मैदान में उपवास के दौरान किसान आने लगे और चमत्कार तो तब हुआ जब आंदोलन के दौरान दिवंगत किसान परिवार के वंशजों के परिजन मुख्यमंत्री से मिलने आ पहुंचे और उन्होंने कहा कि - मुख्यमंत्री जी हमारे लाल तो चले गए अब आप क्यों उपवास कर रहे हैं। आपकी आवश्‍यकता इस मध्यप्रदेश को है। उन्होंने शिवराज जी का व्रत समाप्त करवाया। मुख्यमंत्री जी इस घटना से दुःखी थे, आह्त थे, बेचैन थे उन्हे एक ही बात की पीड़ा थी कि मैने मध्यप्रदेश में सदैव किसान पुत्र होने का धर्म निभाया है। बिना मांगे किसानों को वह सब सुविधा उपलब्ध कराई है जो खेती को लाभ का धंधा बना सकने में सक्षम है।

भारत में किसी भी प्रदेश में शून्य प्रतिशत ब्याज पर किसान को कर्ज नहीं दिया जाता किन्तु मध्यप्रदेश में किसानों के लिए शून्य प्रतिशत ब्याज पर सहकारी ऋण उपलब्ध कराया जाता है। इतना ही नहीं, वर्षां तक बोनस देने की प्रथा जारी है। और तो और किसानों को एक लाख रुपये तक का ऋण बिना ब्याज के सरकार उपलब्ध कराती है और दस हजार की सब्सिडी देकर मात्र नब्बे हजार की ऋण वापस लेती है। पिछले वर्ष की बात करें तो सोयाबीन की फसलें खराब होने पर मुख्यमंत्री द्वारा चार हजार 800 करोड़ रुपये की सहायता राशि जारी की गई थी, इसके पश्चात् ही चार 800 करोड़ रुपये की बीमा राषि का भुगतान किया गया। सरकार ने गेंहू, धान को समर्थन मूल्य पर खरीदा, प्याज आठ रुपये प्रति किलो की दर से खरीदी गई। तुअर दाल के न्यूनतम समर्थन मूल्य 5050 रुपये प्रति क्वि. की दर से, ग्रीष्मकालीन मूंग का उपार्जन रु. 5225 प्रति क्वि. की दर से, उड़द दाल को 5000 रु.प्रति क्वि. की दर से 30 जून 2017 तक खरीदा जाएगा। भाजपानीत मध्यप्रदेष सरकार शिवराज सिंह जी के नेतृत्व में किसानों के हित के लिए वचनबद्ध है और इसी हेतु से सरकार ने घोषणाऐं की है जो मुख्यतः यह हैं- बिचैलियों की भूमिका समाप्त करने के लिए प्रदेश के चिह्नित नगरों में किसान बाजार बनाए जाने की योजना है। स्वामीनाथन आयोग की अनुशंसा के अनुरूप व्लेज नॉलेज सेंटर बनाए जाएंगे। 1000 करोड़ की लागत से मूल्य स्थिरीकरण कोष बनाया जाएगा। जिन लोगों की निजी सम्पत्ति का नुकसान हुआ है ,उन्हें सहायता उपलब्ध कराई जाएगी। अमूल डेयरी मॉडल के आधार पर दूध के मूल्य के निर्धारण की व्यवस्था की जाएगी। किसानो की जमीन की खसरा खतौनी की नकल को उनके घर पर वर्ष में एक बार उपलब्ध कराई जाएगी। कृषि मंडी में भुगतान अब आर.टी.जी.एस. से किया जाएगा, शेष 50 प्रतिशत राशि नगदी प्रदान की जाएगी। किसानों को मोबाइल सूचना तंत्र के साथ जोड़कर सूचित किया जाऐगा कि एक ही फसल अधिक रकबे में न लगाए ताकि एक ही प्रकार की फसल का उत्पादन ज्यादा न हो। चौबीस में से अट्ठारह घंटे मध्यप्रदेश की जनता की भलाई के लिए काम करने वाले मुख्यमंत्री जी द्वारा किसानों के हित में लिए निर्णय है। प्रदेश की जनता के हितार्थ उपवास किया और 48 घंटे के भीतर ही प्रदेश में फैल रही अराजकता को चिह्नित कर उस पर नियंत्रण कर लिया गया।

1998 में मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जी के कार्यकाल में 24 निर्दोष किसानों को गोलियों से भून दिया गया था। तब भारतीय जनता पार्टी ने भी विरोध दर्ज कराया था लेकिन उसका स्वरूप वर्तमान में कांग्रेस के द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शन जैसा नहीं था। आश्चर्य तो तब हुआ जब किसान नेता के नाम पर महाराज श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया जी द्वारा किसान सत्याग्रह किया गया। सत्याग्रह एक पवित्र शब्द है जिसे सुनते ही पूज्य बापू की स्मृति बरबस ही हो जाती है यह सत्य का आग्रह है जो अंग्रेजों के खिलाफ बापू का मुख्य अस्त्र बना था। बापू द्वारा किए गए सत्याग्रह का अपना एक अलग महत्व था। महाराज श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया जी आप कांग्रेस के नेता तो हो सकते हैं, पर किसानों के नेता नहीं हो सकते। आप विगत 13 वर्षां से सांसद हैं। केन्द्र में मंत्री भी रहे मैं आपसे पूछना चाहता हूं कि आप इन 13 वर्षां में कितनी बार किसानो की समस्या को लेकर मुख्यमंत्री जी से मिले या उनके निवास पर किसानों के हित की वार्तालाप की। आपका सत्याग्रह कहीं श्री दिग्विजय सिंह, श्री सुरेश पचैरी, श्री अजय जी (राहुल भैया), श्री अरुण यादव जी जैसे नेताओं को नीचा दिखाने का खेल मात्र तो नहीं था। आपने स्वयं की कांग्रेस की पोल खोल दी कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस का कोई किसान नेता है ही नहीं। महाराज श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया जी कांग्रेस का यह आंदोलन क्या परिणाम देगा यह तो समय ही तय करेगा। 13 वर्ष सत्ता से बाहर रह रही कांग्रेस को यह लगा कि यह आंदोलन या इस कथित सत्याग्रह से सत्य का आग्रह किया जा सकता है, पर प्रदेश की जनता पिछले 70 साल में लोकतांत्रिक रुप से परिपक्व हुइ है। वह अपना भला बुरा सोच सकती है। प्रदेश की जनता अपने लाड़ले मुख्यमंत्री शिवराज जी को भली-भांती जानती और समझती भी है और कौन किसान आंदोलन की आड़ में घड़ियाली आंसू बहा रहा है वह भी। महाराज श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया जी कांग्रेस की स्थिति ऐसी है कि वह जिस डाल पर बैठी है उसी डाल को काट रही है।

(लेखक राज्यसभा के सांसद एवं भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं)

Updated : 18 Jun 2017 12:00 AM GMT
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