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भैया, अब जमाना नहीं है ‘सांची कहों’ का

भैया, अब जमाना नहीं है ‘सांची कहों’ का
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भैया, अब जमाना नहीं है ‘सांची कहों’ का

नेताजी ने सच ऐसा बोला कि भाजपा के गलियारों में कानाफूसी शुरू हो गई कि अब नेताजी का क्या होगा। लेकिन नेताजी को अपने कहे पर कोई पछतावा नहीं है। उक्त नेताजी साहित्य प्रेमी राज चड्ढा अपने स्तम्भ ‘सांची कहों’ के लेखक के रूप में भी जाने जाते हैं,उन्होंने सांची कहों मे खूब सांची - सांची भी कहा, चाहे लोगों को बुरा लगे या अच्छा , लेकिन राज जी अब सांची कहों का जमाना नहीं रहा, अगर सांची भी कहना है तो मक्खन में लपेट कर सांची कहों , वरना अब लोग सहन नहीं कर पाएंगे । राज जी आपने फेसबुक पर सांची क्या कह दिया , भाजपा में बवाल मच गया ओर सांची कहने की सजा भी आपको दे दी गई । जो आपने कहा , वह बिल्कुल सत्य है , लेकिन हमने आपको बताया कि सांची भी अब बोलो तो मक्खन लपेट कर , शायद ये स्वभाव आपका नहीं होगा कि आप कुछ चिकनाई का उपयोग करें, लेकिन राज जी जमाने का दस्तूर है कि सांची कहना लोगों को कुछ चुभ जाता है और कभी - कभी सांची कहने की सजा भी भुगतनी पड़ती है। ये ही सब आपके साथ हुआ । आपके इस उदाहरण के बाद अब सांची कहने वालों को कुछ सोचना पड़ेगा क्योंकि अब जमाना सांची कहने का नहीं है ।

ब्रांड एम्बेसडर की आग कहीं ठंडी न हो जाए

शहर की सरकार के पूर्व मुलाजिम और वर्तमान में स्वच्छता अभियान के एम्बेसडर ने बीते रोज स्मार्ट सिटी योजना में देरी को लेकर अपने पुराने साथियों की कार्यप्रणाली पर जहां प्रश्न लगा दिया है, वहीं शहर के जनप्रतिनिधियों को भी नहीं छोड़ा। फायर ब्रांड एम्बेसडर के इन विचारों से जहां नगर निगम के अधिकारी खिन्न हंै, वहीं जनप्रतिनिधियों की भोयों में बल पड़ गया है। नगर निगम में मच रही कानाफूसी से लग रहा है कि अब फायर ब्रांड एम्बेसडर की आग को कही ठंडा न कर दिया जाए।

साहब की अनूठी रिश्वत

शहर से सटे पान वाले गांव में धरती की कोख को डी-फोर धमाकों से धूल-धक्कड़ किए जाने का थमा हुआ क्रम फिर से चालू हो गया है। हरियाली वाले अधिकरण ने जिले के जिन साहब लोगों को प्रदूषण थामने की जिम्मेदारी सौपी थी, उनमें छोटे वाले साहब के अस्सी खोखे में बिक जाने और बड़े साहब की अनोखी मांग लम्बे समय तक चर्चाओं में बनी रही। खदान वाले खान साहब बताते हैं कि बड़े वाले साहब सफेदी के दबाव में आ गए। उन्होंने रिश्वत तो नहीं स्वीकारी लेकिन खदान वालों के सामने एक शर्त जरूर रख दी कि वह जिले के सभी सरकारी पाठशालाओं के गरीब छात्रों को नि:शुल्क टेबलेट बांटना चाहते हैं। जिसके लिए 20 लाख की व्यवस्था उन्हें करनी होगी। साहब की यह शर्त मानी गई तो क्रेशरों के चक्के धड़ाधड़ चल उठे। करीब चार महीने से यहां धड़ल्ले से धमाके किए जा रहे हैं। गांव धूल-धूल हो रहे हैं। साहब लोग फेरी लगाने भी नहीं जा रहे। हां धमाकों के बदले में साहब से हुए अनुबंध का क्या हुआ? टेबलेट बटेंगे या नहीं। अब इस पर चर्चाओं का बाजार अब ठंडा है।


हरीश उपाध्याय, विनोद दुबे, प्रशांत शर्मा

Updated : 2 May 2017 12:00 AM GMT
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