Home > Archived > भोपाल गैस त्रासदी : 33 साल बाद भी आंखों में आंसू

भोपाल गैस त्रासदी : 33 साल बाद भी आंखों में आंसू

भोपाल गैस त्रासदी : 33 साल बाद भी आंखों में आंसू
X

भोपाल। विश्व की भीषणतम औद्योगिक त्रासदी माने जाने वाले यूनियन कार्बाइड गैस कांड को 33 साल बीत गए हैं। हजारों पीडि़त अब भी उन गुनाहगारों को सजा मिलने के इंतजार में हैं जिनकी वजह से यहा यूनियन कार्बाइड कारखाने से जहरीली गैस मिथाइल आइसोसाइनेट का रिसाव हुआ और हजारों लोग मौत के मुंह में चले गए, लेकिन कार्बाइड परिसर में पड़े कचरे को आज तक नष्ट नहीं किया जा सका है और निकट भविष्य में इसके निपटान की कोई उम्मीद भी नजर नहीं आ रही है।

1984 की 2 और 3 दिसंबर की दरम्यानी रात्रि में मिक के रिसाव से प्रभावित हजारों व्यक्ति आज भी उसके दुष्प्रभाव झेलने को मजबूर हैं। उस त्रासदी की वजह से सबसे ज्यादा पीड़ा शायद महिलाओं को ही उठानी पड़ी थी। महिलाओं को अपने पिता, पति और पुत्र के रूप में सैकड़ों लोगों को खोना ही पड़ा, लेकिन अनेक महिलाओं को हमेशा के लिए मातृत्व सुख से भी वंचित रहना पड़ा।

राज्य सरकार द्वारा सबसे पहले यूनियन कार्बाइड परिसर में पड़े लगभग 350 मीट्रिक टन कचरे का निपटान गुजरात के अंकलेश्वर में करने का निर्णय लिया गया था और उस समय गुजरात सरकार भी इसके लिए तैयार हो गई थी, लेकिन गुजरात की जनता द्वारा इसको लेकर आंदोलन किए जाने के बाद गुजरात सरकार ने कचरा वहां ले जाने से इनकार कर दिया। गुजरात सरकार द्वारा कचरा नष्ट करने से इनकार करने के बाद सरकार ने मध्य प्रदेश के धार जिले के पीथमपुर में कचरा नष्ट करने का निर्णय लिया और 40 मीट्रिक टन कचरा वहां जला भी दिया गया था, लेकिन यह मामला प्रकाश में आने के बाद यहां विरोध में किए गए आंदोलन के बाद स्वयं मध्य प्रदेश सरकार ने इससे अपने हाथ खींच लिए।

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने नागपुर में डीआरडीओ स्थित इंसीनिरेटर में कचरे को नष्ट करने का आदेश दिया, लेकिन महाराष्ट्र के प्रदूषण निवारण मंडल ने इसकी अनुमति नहीं दी और महाराष्ट्र सरकार ने भी नागपुर में कचरा जलाने से इनकार कर दिया।

प्रदेश सरकार ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट की शरण ली और न्यायालय ने नागपुर स्थित इंसीनिरेटर के निरीक्षण के आदेश दिए लेकिन न्यायालय को यह बताया गया कि वहां स्थित इंसीनिरेटर इतनी बड़ी मात्र में जहरीला कचरा नष्ट करने में सक्षम नहीं है।

सरकार द्वारा महाराष्ट्र के कजोला में भी कचरा नष्ट करने पर विचार किया गया, लेकिन प्रदूषण निवारण मंडल द्वारा अनुमति नहीं दिये जाने से यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया। उल्लेखनीय है कि दो -तीन दिसंबर 1984 की रात हुई इस त्रासदी में हजारों लोगों की मृत्यु हो चुकी है, जबकि लाखों लोग प्रभावित हैं।

भोपाल की वो काली रात:

- भोपाल गैस त्रासदी पूरी दुनिया के औद्योगिक इतिहास की सबसे बड़ी दुर्घटना है।
- तीन दिसंबर, 1984 की आधी रात को यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से निकली जहरीली गैस ने हजारों लोगों की जान ले ली थी।
- यूनियन कार्बाइड में हुए रिसाव के बाद वातावरण में मिथाइल आइसोसाइनेट गैस घुल गई।
- सरकारी आंकड़ों के मुताबिक कुछ ही घंटों के भीतर तीन हजार लोग मारे गए थे।
- गैस त्रासदी में लगभग 15000 से ज्यादा लोगों की दर्दनाक मौत।
- गैस त्रासदी में लाखों की संख्या में लोगों का अपंग होना।
कैसे हुआ हादसा:
-यूनियन कार्बाइड की फैक्टरी से करीब 40 टन गैस का रिसाव हुआ था।
-इसकी वजह थी टैंक नंबर 610 में जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का पानी से मिल जाना।
-इससे हुई रासायनिक प्रक्रिया की वजह से टैंक में दबाव पैदा हो गया और टैंक खुल गया जिससे गैस रिसने लगी
-लोगों को मौत की नींद सुलाने में विषैली गैस को औसतन तीन मिनट लगे।
पर्यावरण पर असर:
-यूनियन कार्बाइड के जहरीले कचरे के कारण आस-पास का भूजल मानक स्तर से 562 गुना ज्यादा प्रदूषित हो गया।
-कारखाने में और उसके चारों तरफ तकरीबन 10 हजार मीट्रिक टन से अधिक कचरा जमीन में आज भी दबा हुआ है।
-बीते कई सालों से बरसात के पानी के साथ घुलकर अब तक 14 बस्तियों की 40 हजार आबादी के भूजल को जहरीला बना चुका है।
-सीएसई के शोध में परिसर से तीन किलोमीटर दूर और 30 मीटर गहराई तक जहरीले रसायन पाए गए।
क्या बनता था इस कारखाने में:
यूनियन कार्बाइड कारखाने में कारबारील, एल्डिकार्ब और सेबिडॉल जैसे खतरनाक कीटनाशकों का उत्पादन होता था। संयंत्र में पारे और क्त्रसेमियम जैसी दीर्घस्थायी और जहरीली धातुएं भी इस्तेमाल होती थीं। सरकार का कृषि विभाग उन कीटनाशकों का एक बड़ा खरीददार था। भोपाल कारखाने से कीटनाशकों का निर्यात दूसरे देशों को किया जाता था और उससे भारत को निर्यात शुल्क की आय होती थी। जानकारों का कहना है कि कीटनाशकों की आड़ में यह कारखाना कुछ ऐसे प्रतिबंधित घातक एवं खतरनाक उत्पाद भी तैयार करता था, जिन्हें बनाने की अनुमति अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों में नहीं थी।

Updated : 2 Dec 2017 12:00 AM GMT
Next Story
Top