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बसाना ही था तो उजाड़ा क्यों?

बसाना ही था तो उजाड़ा क्यों?
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-दिनेश राव

नगर निगम के मदाखलत दस्ते द्वारा फूलबाग स्थित चौपाटी पर की गई कार्रवाई सवालों के घेरे में है। सवाल यह उठ रहे हैं यदि चौपाटी को बसाना ही था तो फिर उजाड़ा क्यों गया? उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले ही नगर निगम का मदाखलत दस्ता फूलबाग स्थित चौपाटी पर कार्रवाई के लिए पहुंचा था। नगर निगम का कहना था कि चौपाटी में स्थापित दुकानदारों को ठेला रखकर व्यापार करने की स्वीकृति दी गई थी, लेकिन वहां स्थाई निर्माण कर लिया गया। बात सही भी थी। फूलबाग चौराहे को अतिक्रमण मुक्त कर सौंदर्यीकरण के लिए जब मुहिम चली थी, तब यहां इधर उधर खड़े होकर रास्ता जाम करने वाले हाथ ठेलों को स्थाई स्थान देने के लिए चौपाटी का निर्माण आज से पांच सात साल पहले किया गया था। लेकिन यहां पहुंचे हाथ ठेले वालों ने इसका नाजायज फायदा उठाते हुए धीरे धीरे कर पक्की दुकानें बना ली। मदालखत अमला जब कार्रवाई के लिए पहुंचा तो बात बिगड़ गई और दुकानदारों ने मदाखलत अमले पर पथराव कर दिया जो वास्तव में गलत था। इसे कतई समर्थन नहीं दिया जा सकता है। लेकिन दूसरे दिन नियमों की आड़ में बदले की भावना से मदाखलत अमले ने पूरी की पूरी चौपाटी उजाड़ दी। इसे भी समर्थन नहीं दिया जा सकता है। पूरी की पूरी चौपाटी उजाड़ने के बजाय मदाखलत अमले को उन दुकानदारों से बात करनी चाहिये थी, जिन्होंने बेजा कब्जा कर रखा था। उनसे जुर्माना वसूला जा सकता था। जिस तरह से मदाखलत अमले ने यहां कार्रवाई की, वह बदले की भावना से नजर आई और निंदा की पात्र बनी।

जिस समय चौपाटी का निर्माण हुआ था, उसके चारों ओर सौंदर्यीकरण का काफी काम हुआ। मसलन वहां स्थित स्वर्णरेखा नाले को स्वच्छ कर नाव चलायी गई। हाट बाजार का निर्माण किया गया। एक तरह से यह स्थान पर्यटन स्थल के रूप में स्थापित हो गया। नाव चलने के कारण यहां लोगों की आवाजाही भी बढ़ी। धीरे धीरे कर स्वर्ण रेखा में नाव चलना बंद हो गई। उचित देखभाल न होने के कारण हाट बाजार भी एक तरह से बंद ही पड़ा है। सिर्फ चौपाटी ही बची थी जहां शाम होते ही रौनक दिखाई देती थी। इसका कारण यह था कि शहर में कहीं भी ऐसा स्थान नहीं है जहां सस्ते में फास्ट फूड मिलता हो, वह भी मेज कुर्सियों में बैठकर। अन्य जो स्थान हैं वह काफी महंगे हैं। जिसके चलते यह स्थान शहरवासियों के लिए सबसे ज्यादा पसंदीदा स्थान बना। शाम के वक्त यहां लोगों की काफी भीड़ देखने को मिलती थी, खासतौर पर मध्यम श्रेणी परिवारों के लिए यह स्थान पर्यटन स्थल जैसा ही था।

मदाखलत अमले की कार्रवाई को लेकर जो सवाल उठ रहे हैं, वह यूं ही नहीं। चौपाटी यदि नियमों के आधार पर नहीं थी, तो पिछले सात साल से निगम के अधिकारी क्या कर रहे थे? एकाएक ऐसा क्या हुआ कि पूरी पूरी की चौपाटी बेजा हो गई और अचानक ही उसे उजाड़ दिया गया। उजाड़ दिया था तो फिर अब इसे बसाने की कवायद क्यों की जा रही है? चौपाटी बसाने के लिए अब जो नियम बनाए जा रहे हैं,क्या वे नियम पहले नहीं थे? अगर नहीं थे तो इसमें गलती किसकी? चलो इन नियमों के आधार पर फिर से चौपाटी को बनाया जाता है तो इस बात की क्या गारंटी है कि दुकानदार फिर से यहां अनाधिकृत निर्माण नहीं करेंगे? निश्चित ही वहां अवैध निर्माण होगा और कुछ सालों तक निगम का अमला भी इन नियमों की दुहाई देते हुए अवैध वसूली करता रहेगा और जब इस पर दुकानदार ऐतराज करेंगे तो वहां एक बार फिर से बुलडोजर चला दिया जाएगा। अच्छा तो यह होगा कि जिन नियमों के आधार पर इन्हें बसाया जाए, उन नियमों का सख्ती से पालन भी कराया जाए और इस स्थान को पहले से ज्यादा खूबसूरत बनाते हुए इसे शहर का मिनी पर्यटन स्थल बना रहने दे।

Updated : 21 Nov 2017 12:00 AM GMT
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