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क्या जजों का वेतन बढ़ाना भूल गई है सरकार ?

क्या जजों का वेतन बढ़ाना भूल गई है सरकार ?
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-सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार से पूछा
नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से जजों के वेतन को लेकर सवाल पूछा है। न्यायालय ने कहा है कि सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू हो जाने के बाद भी जजों का वेतन नौकरशाहों से कम है। क्या सरकार जजों का वेतन बढ़ाना भूल गई है? न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति जे चेलेश्वर की पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए सॉलिसिटर जनरल पी एस नरसिम्हा से पूछा, 'सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के जजों के वेतन के बारे में क्या विचार है? सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद केंद्र सरकार के कर्मियों का वेतन जिस अनुपात में बढ़ा है वैसे ही जजों के वेतन में वृद्धि नहीं हुई है।' जानकारी के मुताबिक सर्वोच्च न्यायालय ने स्टाफ और अधिकारियों को वॉशिंग अलाउंस देने संबंधी याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने ये सवाल पूछा। आपको बता दें कि जजों के वेतन बढ़ाने संबंधी प्रस्ताव मार्च में ही लाया गया था, लेकिन अभी प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकी है। जजों के वेतन में बढ़ोतरी संसद से विधेयक पास होने के बाद ही हो सकती है।

जजों ने दी प्रतिक्रिया

जजों की सैलरी नौकरशाहों से कम होने पर कुछ उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के जजों ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है। जजों का कहना है कि नौकरशाहों से भी कम वेतन लेकर जजों के लिए न्यायपालिका की साख और पारदर्शिता बनाए रखना बेहद मुश्किल हो जाएगा। जजों का सामान्य तौर पर कहना है कि यह सैलरी या पैसे की नहीं बल्कि सम्मान की बात है।

कैबिनेट सेक्रेटरी से कम है मुख्य न्यायाधीश का वेतन

सातवें वेतन आयोग के लागू होने के बाद कैबिनेट सेक्रटरी को 2.5 लाख रुपए प्रतिमाह सैलरी मिलती हैं। इसके अलावा वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के लिए कई तरह के भत्ते भी दिए जाते हैं। वहीं चीफ जस्टिस आॅफ इंडिया को प्रतिमाह वेतन में 1 लाख रुपए मिलते हैं। मुख्य न्यायाधीश के वेतन में इसके साथ एचआरए और दूसरे तमाम तरह के भत्ते भी शामिल होते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के जज और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को 90 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन के रूप में मिलते हैं।

Updated : 2 Nov 2017 12:00 AM GMT
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