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पहले जैसा नहीं रहा अब ग्वालियर का मेला

पहले जैसा नहीं रहा अब ग्वालियर का मेला
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व्यापारियों की समस्या सुनने वाला कोई नहीं
मेला प्राधिकरण को वर्षों से है अध्यक्ष का इंतजार



अरूण शर्मा/ग्वालियर।
ग्वालियर व्यापार मेला की शुरुआत 1905 में तत्कालीन शासक स्व. माधवराव सिंधिया ने पशु मेला के साथ सागर ताल से की थी। ग्वालियर का व्यापार मेला आज इतिहास के 110 वर्ष से अधिक का समय पूरा कर चुका है। लेकिन आज यह मेला पूरी तरह से राजनीति की भेंट चढ़ गया है। अब यह पहले जैसा मेला नहीं रह गया है। प्रशासन के हाथ में आने से अब मेला बहुत बदल गया है। हालत यह है कि जो मेला कभी शासकों और मेला संचालक मंडल (जनप्रतिनिधियों) के हाथों में होता था, वह आज प्रशासन के हाथ में है। संचालक मंडल की टीम नहीं होने के कारण प्रशासन भी मेला लगाने की मात्र खाना पूर्ति कर रहा है। प्रशासनिक अधिकारी मेले में नियमित रूप से नहीं बैठते हैं। इन अधिकारियों द्वारा मेला कार्यालय में नहीं बैठने के कारण मेला के व्यापारियों की सुनने वाला कोई नहीं है। मेला व्यापारी अपनी समस्या हल कराने के लिए कहां जाएं यह उन्हें पता नहीं है। स्थिति यह होती है कि मेला की अवधि बढ़ाने या कोई अन्य समस्या को हल कराने के लिए यहां के व्यापारियों को प्रशासनिक अधिकारियों के आगे कई बार गुहार लगाना होती है, तब जाकर किसी समस्या का हल हो पाता है।

उल्लेखनीय है कि यह मेला शुरुआती दौर में ग्वालियर शासकों एवं उसके बाद संचालक मंडल के हाथों में रहा है। इस मेले को ग्वालियर के शासकों और संचालक मंडल ने ऊंचाईयों तक पहुंचाने का हर संभव प्रयास किया है। एक समय मेेले में स्थिति यह थी कि इसे एक दिन में पूरा नहीं घूमा जा सकता है। मेले को घूमने के लिए कई बार आना होता था। जनप्रतिनिधियों द्वारा लगाए गए मेले को देखने के लिए देश-विदेश तक से लोग आते थे, लेकिन आज मेले की स्थिति यह है कि देश-विदेश तो छोड़ो ग्वालियर चम्बल संभाग के लोग तक मेले को देखने के लिए नहीं आते हैं। इसका मुख्य कारण मेले में देखने लायक ज्यादा कुछ भी नहीं है। मेले का स्तर साल दर साल गिरता जा रहा है। ग्वालियर का व्यापार मेला सैलानियों की जरूरतों का मेला न रहकर खाना-पूर्ति का मेला रह गया है। इस मेले में संचालक मंडल के नहीं होने से यहां के व्यापारियों की सुनने वाला कोई नहीं है।

बैठते नहीं हैं अधिकारी
मेले में संचालक मंडल नहीं होने से प्रशासन के अधिकारी केवल खानापूर्ति के तौर पर ही मेले को लगा रहे हैं। मेले में इन अधिकारियों के नहीं बैठने से व्यापारियों को अपनी समस्या को हल कराने के लिए इधर-उधर भटकना पड़ता है।

अधिकारियों तक पहुंचना कठिन
मेले के दौरान व्यापारियों को कोई न कोई परेशानी आती ही रहती है। व्यापारियों के लिए यह संभव नहीं है कि वह संभागायुक्त और जिलाधीश से जाकर मुख्य रूप से मिल सकें। लिहाजा व्यापारियों की समस्या का हल नहीं हो पाता है।

मेला में अब पहले जैसी बात नहीं:- ग्वालियर दुकानदार व्यापार मेला समिति के अध्यक्ष बलवीर खटीक ने कहा कि संचालक मंडल के होने से मेला की अलग ही रौनक होती है। मेले में अब पहले जैसी बात नहीं रही। मेला आगे बढ़े इस दिशा में खास प्रयास नहीं हो रहे हैं। ग्वालियर का मेला आज नाम मात्र का मेला बनकर रह गया है। मेला में संचालक मंडल की नियुक्ति होना आवश्यक है।

संचालक मंडल से रहती है आस:-ग्वालियर व्यापार मेला व्यापारी संघ के सचिव महेश मुदगल का कहना है कि संचालक मंडल के होने से व्यापारियों में हिम्मत रहती है। श्री मुदगल ने कहा कि व्यापारी अपनी बात प्रशासन की अपेक्षा संचालक मंडल के समक्ष सहजता से रख सकता है। व्यापारी के लिए संभव नहीं है कि वह वरिष्ठ अधिकारियों से जाकर मिल सके। श्री मुदगल ने कहा कि इस बार का प्रदर्शनी सेक्टर भी बहुत ज्यादा अच्छा नहीं है। उन्होंने कहा कि प्रशासन काम तो अच्छा कर रहा है, लेकिन मेले में संचालक मंडल का होना भी बहुत आवश्यक है।

मेले में कोई नयापन नहीं:-ग्वालियर व्यापार मेला व्यापारी संघ के संयोजक उमेश उप्पल ने कहा कि जब से मेला प्रशासन के हाथ में आया है, तब से इसमें कोई नयापन नहीं है। प्रशासन द्वारा मेले में ऐसी कोई नई बात नहीं लाई जा रही है, जो देश-विदेश के सैलानियों को आकर्षित कर सके। मेले को मात्र खानापूर्ति करके लगाया जा रहा है।

Updated : 9 Jan 2017 12:00 AM GMT
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