प्रेरक प्रसंग - महानता की परिभाषा
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एक राजा बहुत दयालु और दूरदर्शी था। एक दिन वह किसी विषय को लेकर अपने आप में गहन सोच में डूबा हुआ था। तभी उसका एक मंत्री पास आया और बोला- महाराज आप आज सुबह से ही किस सोच में खोए हुए हैं? राजा ने कहा, राज्य में बेईमानी बढ़ती जा रही है। सभी ओर छल-कपट व धोखेबाजी अपने चरम पर जा पहुंची है। क्या इस राज्य में ऐसा कोई एक आदमी होगा जो अपने गुणों में देवतुल्य हो? मंत्री ने फौरन जवाब दिया, क्यों नहीं, एक तो आप स्वयं हैं। सत्य की जिज्ञासा रखने वाले व्यक्ति को ही महान समझा जाता है।
राजा ने कहा, तुम्हारी दृष्टि में भले ही मैं महान होऊं, मगर मैं तो महानता की कसौटी पर खरे उतरे अन्य किसी व्यक्ति को देखना चाहता हूं। मंत्री ने जवाब दिया, तब तो महाराज, वह व्यक्ति मैं खुद हूं। राजा बोला, मैं आपसे भी ज्यादा महान इंसान को देखना चाहता हूं। इस पर मंत्री ने कहा, सैकड़ों महान आदमी हमें अपने आसपास ही नजर आ जाएंगे। राजा ने पूछा, सो कैसे? मंत्री बोला, महाराज, आप जरा ठीक सामने देखकर बताएं कि वह अस्सी साल की बुढिय़ा क्या कर रही है?
राजा ने उत्तर दिया, कुदाल से कुआं खोद रही है। मगर इसे इस उम्र में कुआं खोदने की भला क्या जरूरत है? मंत्री ने कहा, आपने ठीक कहा। मगर जरूरत ही तो सब कुछ नहीं होती। जो दूसरों के लिए अपना जीवन होम करते हैं, वास्तव में वही महान हैं। ऐसे लोग ही जीवन और मरण की समस्त सीमाएं लांघकर अमर हो जाते हैं। मंत्री की बात सुनकर राजा को एहसास हो गया कि कठिन परिश्रम करके बुढिय़ा महानता की परिभाषा से परिचित करा रही है।