पिता के चरखा दांव से ही कांग्रेस का शिकार कर रहे 'टीपू'

नई दिल्ली। आखिरकार उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े सियासी घराने के युवा मुखिया ने यह दिखा ही दिया कि उसने अपने पिता मुलायम सिंह यादव से वह हर दांव सीखा है जिसके बूते उनके पिता की अलग राजनीतिक शख्सियत बुलंद रही। कांग्रेस से गठजोड़ की बातचीत अभी परवान चढ़ी भी नहीं कि इस बीच सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने 191 उम्मीदवारों को मैदान में उतार दिया। इनमें वह सीटें भी शामिल हैं जिस पर कांग्रेस अपना दावा कर रही थी। यहां तक कि कांग्रेस विधान मंडल दल के नेता प्रदीप माथुर की मौजूदा सीट मथुरा से भी सपा ने अशोक अग्रवाल को टिकट थमा दिया है। माथुर इस सीट से विधायक हैं। अखिलेश के इस दांव से कांग्रेस सकते में है। वहीं, सपा के नए नेतृत्व ने कांग्रेस को रास्ते से किनारे करने के लिए 'साइकिल' की 'घंटी' बजा दी है। अखिलेश की सूची आने के साथ ही आनन -फानन में दिल्ली के रकाबगंज स्थित कांग्रेस वार रूम में उसके आला रणनीतिकार माथापच्ची में जुट गए। छली महसूस कर रही कांग्रेस अब नई बिसात बिछाने को लेकर नए सिरे से मंथन करने में जुटी है। बहरहाल, कांग्रेस का जो हो सो हो। उसके इस सबसे बड़े सूबे में खोने को तो कम है और पाने की संभावनाएं उसे नए साथी की तलाश में और कमजोर करती जा रही है।
इस बीच, अखिलेश के दांव ने उसे हैरान कर दिया है। अखिलेश ने नया कुछ नहीं किया है। अपने फायदे और कायदे का ख्याल रख मुलायम सिंह यादव अक्सर ही ऐसे 'चरखा दांव' आजमाते रहे हैं। राष्ट्रपति चुनाव में प्रणव मुखर्जी के खिलाफ ममता, लालू और वाम दलों के साथ मिलकर अपना उम्मीदवार उतारने का समझौता कर मुलायम 24 घंटे के भीतर ही प्रणव पक्ष में खड़े हो गए। बिहार में महागठबंधन के अगुवा तो बने पर ऐन मझधार में नीतीश-लालू को छोड़ अलग हो लिए। ऐसे कई अवसर रहे जब नेताजी ने अपने विरोधियों और साथियों को ऐन वक्त पर गच्चा दिया। ऐसे में अखिलेश से ज्यादे की उम्मीद कर रही कांग्रेस को गच्चा तो खाना ही था। अखिलेश ने तो साफ कर दिया है कि वह अपने दम पर मैदान में जाने का मन बना चुके हैं। अगर कांग्रेस को उनकी जरूरत है तो वह सपा की शर्तों के तहत ही उसकी साइकिल का करियर बन सकती है।