उत्तरप्रदेश में सियासी ड्रामा: नौटंकी जारी, पर अंतिम दृश्य जनता रचेगी
नौटंकी जारी, पर अंतिम दृश्य जनता रचेगी
यह काम आजम खां जैसे धूर्त राजनेता ही कर सकते थे। बेशक उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी का चल रहा सियासी दंगल एक पूर्व लिखित पटकथा ही हो, पर जब इस पटकथा का भांडा फूटने लगा तो एक धूर्त किरदार की जरूरत थी और समाजवादी रंगमंच के निदेशक ने आजम खां को मंच पर उतारा। परिणाम सामने है। 24 घंटे के भीतर अखिलेश यादव एवं रामगोपाल यादव के निष्कासन रद्द हुए और शिवपाल यादव पूरी बेशर्माई के साथ टेलीविजन स्क्रीन पर यह कहते हुए मसखरी करते देखे गए कि हम सब साथ-साथ है, पार्टी में कोई झगड़ा नहीं है और हां हम सब साम्प्रदायिक ताकतों को रोकने के लिए एकजुट हैं।
क्या उत्तरप्रदेश की जनता को, क्या देश के प्रबुद्ध एवं आम जनमानस को समाजवादी पार्टी के ये बड़बोले एवं निहायत रूप से बेहद ढीठ एवं बिन पैंदी के लोटे (दोनों ही) साबित हो चुके नेता बिलकुल नासमझ मानते हैं? यह सच है कि आज से पांच साल पहले प्रदेश की जनता बहुजन समाजवादी पार्टी की लूट से तंग थी। यह भी सच है कि वह बसपा के जातिगत वैमनस्य के जहर से टूट रही थी, दम तोड़ रही थी। ऐसे परिवेश में उसने सपा के भ्रमजाल में फंसकर एक गलती की। यह गलती थी अखिलेश यादव के युवा चेहरे में उम्मीद की किरण देखने की। पर इन पांच सालों में वह समझ गई है कि खुद को पाक-साफ बताकर अखिलेश यादव अपनी छवि बनाने में जुटे हैं और उधर शिवपाल चाचा अपनी दबंगई से मथुरा से लेकर सैफई तक लूट मचा रहे हैं।
वह यह भी देख रही है कि राजधानी दिल्ली में प्रोफेसर साहब (रामगोपाल यादव) अपनी कथित बौद्धिक क्षमता से एक नई खिचड़ी पकाते हैं। इधर जब जरूरी समझा तब अंदर और जब जरूरी लगा बाहर अमर सिंह की अपनी एक नौटंकी है। इतना ही नहीं सैफई परिवार के नवोदित एवं कुछ पर्दे के पीछे के घाघ किरदार अपनी-अपनी मंचीय भूमिका निभाते रहते हैं। और इन सबका मालिक कहें या रिंग मास्टर या फिर पटकथा लेखक, निर्देशक मुलायम सिंह अपनी सुविधा से सबके किरदार में कटौती या बढ़ोत्तरी करते रहते हैं। राजनीति को निकृष्टता के रसातल पर पहुंचा चुके ये बूढ़े राजनेता जानते थे कि अबकी बार दाल गलना संभव नहीं है। ‘गाड़ी में झंडा तो सपा का गुंडा’ यह नारा उत्तरप्रदेश में गंूज रहा है। वह यह भी जानते थे कि प्रदेश में राष्ट्रवाद की लहर है। वह यह भी जानते थे कि विकास के हर मोर्चे पर सरकार पिट चुकी है।
ऐसे में एक आयातित एजेंसी की सलाह पर एक ड्रामा रचा गया कहानी यह कि अखिलेश पहले चाचा को फिर पिता को भी गाली देंगे, दूरी दिखाएंगे और खुद को पाक-साफ बताकर एक बार फिर जनता को बेवकूफ बनाएंगे। देश की जनता बिलकुल नामसझ तो नहीं है। पर भावुक अवश्य है। वह सांपनाथ और नागनाथ को पहचानने में भूल करने लगी। चाल कामयाब होती देख सपा में बाहर दंगल एवं अंदर मौज की बयार थी। पर पटकथा का यह भांडा फूटा और इस बिगड़ते खेल को वही संभाल सकता था जो स्वयं आला दर्जे का घाघ राजनेता हो। जाहिर है आजम खां अवतरित हुए ये वही आजम खां है जो गंगा को डायन कहते हैं। यह वही आजम खां है जो भारत माता को चुडै़ल कहते हैं, यह वही आजम खान है जो दादरी के मसले पर संयुक्त राष्ट्र में गुहार लगाते हैं। ऐसे आजम खां ने बीती रात शेरो-शायरी की। आज बंद कमरों में गले मिल रहे बाप-बेटे को बाहर भी मिलवाया और शिवपाल यादव से वही कहलवाया जो मुलायम ने सिखा कर भेजा।
आजम खां को ही लाने की एक वजह और भी। वह यह कि कहीं इस प्रायोजित नौटंकी से मुस्लिम वोट बहन जी के पास न छिटकें। अब दूर लंदन में बैठे अमर सिंह अपनी अलग बौद्धिक अय्याशी कर रहे हैं। रामगोपाल यादव एक सम्मेलन की तैयारी में है। यह नाटक का अंतिम दृश्य नहीं है। ऐसे हंगामेदार दृश्य अभी और रचे जाएंगे। पर समकालीन राजनीति में बेहद अविश्वसनीय प्रमाणित हो चुके मुलायम सिंह के समाजवादी दंगल का अंतिम दृश्य यकीनन प्रदेश की जनता ही लिखने वाली है और वह है इन सब की घर वापसी की जिसे दूसरे शब्दों में वनवास भी कह सकते हैं।
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