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''हैप्पी हिन्दी डे''

हैप्पी हिन्दी डे
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पीड़ा एक हिन्दी प्रेमी की



आज हिन्दी दिवस है। देश को स्वाधीन हुए 70 वर्ष बीत गए हैं पर हम आज भी राष्ट्रभाषा हिन्दी को जो वस्तुत: भारतीय संस्कृति की संवाहक है सही अर्थों में राष्ट्रभाषा का गौरव दिला पाने में असफल साबित हुए हैं। कौन दोषी है, इसके लिए? विषय का तुरंत सरलीकरण करना हो तो हम तत्काल केन्द्र से लेकर स्थानीय निकाय तक की सरकारों को कठघरे में खड़ा कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर सकते हैं पर चिंतन की यह धारा दिशा विहीन होगी।

आज हिन्दी दिवस के अवसर पर सरकारों को कोसने के बजाय दक्षिण भारत के कतिपय राज्यों में हिन्दी के राजनीतिक विरोध का रोना-रोने, विचार यह करना होगा कि सर्वप्रथम हिन्दी जिनकी सिर्फ राष्ट्रभाषा ही नहीं है, मातृभाषा है उनके अपने घर की बोली है, वे हिन्दी के सम्मान के प्रति, हिन्दी के व्यवहार में प्रयोग हेतु कितने संवेदनशील हैं, कितने गंभीर हैं, कितने प्रामाणिक हैं? हिन्दी को आज असली खतरा अगर है तो उसके अपने आंगन से ही है। दुनिया में जितने लोग अंग्रेजी बोलते हैं, उतने अकेले याने लगभग 70 करोड़ हिन्दी भाषी भारत में हैं। आज हिन्दी, अंग्रेजी और मांडरिन (चीन की भाषा) के बाद सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। दुनिया में हिन्दी को मिला यह तीसरा स्थान भौगोलिक क्षेत्र के आधार पर है पर भाषा क्षेत्र के जानकार इससे भी पूरी तरह सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि अंग्रेजी सिर्फ अमेरिका, ब्रिटेन, न्यूजीलैंड, ऑस्टे्रलिया और आधे कनाडा में बोली जाती है। यही नहीं ब्रिटेन में वेल्स और स्काटिश क्षेत्र में आयरिश भाषा का वर्चस्व है। अमेरिका के लातिन क्षेत्र में हिस्पानी भाषा है पर हिन्दी आज देश की सीमा से भी बाहर याने पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे हाल ही के अविभाज्य भारत के क्षेत्र छोड़ भी दें तो भी हिन्दी आज नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान, फिजी, गुयाना, सूरिनाम, त्रिनिदाद आदि में भी सर्वाधिक लोकप्रिय भाषाओं में से एक है। यही नहीं भारत के अंदर भी खासकर पूर्वोत्तर राज्यों में हिन्दी आज युवाओं के लिए आकर्षण है। सिक्किम, नागालैंड, मणिपुर, मेघालय आदि में हिन्दी पढ़ाने के संस्थान धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं। पूर्वोत्तर भारत आज शेष भारत को समझना चाह रहा है। परिस्थितियां करवट ले रही हैं। वह अनुभव कर रहा है, भारत की चिति के साथ जुडऩा है तो हिन्दी के प्रति पूर्वाग्रहों को विसर्जित करना होगा। दक्षिणी राज्यों में भी यह संदेश असर कर रहा है कि हिन्दी के विरोध के पीछे भाव दूषित राजनीति है। महाराष्ट्र के पिंड में भी भाव महान राष्ट्रीयता का ही है, अत: हिन्दी विरोध की जड़ें वहां भी जम नहीं पाई। अत: एक बड़े परिदृश्य में निराशा नहीं है। भाषा के स्तर पर भी हिन्दी परंपरागत पूर्वाग्रहों से बाहर निकल रही है। हिन्दी ने इतर भाषा के चलन में आ चुके शब्दों को अपने आंचल में स्थान दिया है। उर्दू और हिन्दी के बीच भी दूरी घटी है। लेकिन इसमें यह ध्यान रखने की आवश्यकता अवश्य है कि भाषा की पवित्रता के साथ समझौता न हो।

विचार यह जरुर करना होगा कि जब योग को 177 देशों का समर्थन मिल सकता है तो संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाने में हम 129 देशों का समर्थन क्यों नहीं जुटा पाए? बेशक इसमें सरकारों की इच्छा शक्ति एक महत्वपूर्ण कारण है पर आज हिन्दी भाषी राज्यों में हिन्दी कहां है? क्यों हिन्दी हमारे दैनिक व्यवहार से दूर होती जा रही है? सुप्रभात से शुभरात्रि के स्थान पर क्यों दिन की शुरुआत गुड मॉर्निंग से होती है और गुड नाइट पर समाप्त? संचार क्रांति के युग में हम हिन्दी के साथ कितना अक्षम्य व्यवहार कर रहे हैं? हिन्दी का स्थान हिंग्लिश क्यों ले रही है? आज हिन्दी दिवस पर भाषा वैज्ञानिकों को, शिक्षाविदों को एवं पालकों को भी एसएमएस की विकृत भाषा पर भी सचेत होना होगा कारण यही स्थिति रही तो भाषा के स्तर पर नई पीढ़ी मूल शब्द को ही भूल जाएगी चाहे वह हिन्दी के शब्द हों या अंग्रेजी के। परिदृश्य दिखाई दे रहा है कि आज हिन्दी भाषी क्षेत्रों में हिन्दी की स्थिति बेहद डरावनी है, पीड़ादायक है और इसके लिए सिर्फ और सिर्फ हम ही दोषी हैं। हमें यह समझना होगा कि भाषा सिर्फ संवाद का माध्यम नहीं है अपितु एक संस्कृति भी है और सभ्यता भी है।

हिन्दी हमारी आत्मा है। हिन्दी में ही हमारे लोकगीत हैं। हिन्दी में ही हमारा ग्राम्य जीवन है। हिन्दी को इसीलिए महात्मा गांधी ने 1918 में लोकभाषा, जनमानस की भाषा कहा था और हिन्दी ही क्यों प्रत्येक देश की अपनी एक पहचान होती है और उस पहचान का स्वरूप उसकी अपनी भाषा ही होता है और प्रगति का आधार भी। इसीलिए विख्यात कवि भारतेंदु हरिश्चन्द्र ने कहा था।

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटे न हिय को सूल।।

आज हिन्दी दिवस के अवसर पर प्रबुद्धजनों को, राजनेताओं को, समाजशात्रियों को और प्रत्येक घर परिवार को यह विचार करना ही होगा कि वे आज हिन्दी का श्राद्ध कर रहे हैं या हिन्दी के प्रति श्रद्धा का प्रगटीकरण. ऐसा इसीलिए कि आज सुबह ही एक विशिष्टजन का SMS मोबाइल पर था। संदेश था HAPPY HINDI DAY. आखिर इसके क्या माने हैं?

एक हिन्दी प्रेमी

Updated : 14 Sep 2016 12:00 AM GMT
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