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देशद्रोही पत्रकारिता पर अंकुश जरूरी

देशद्रोही पत्रकारिता पर अंकुश जरूरी

हिन्दुस्तान एक मात्र ऐसा देश है जहां पत्रकारिता को ढाल बनाकर राष्ट्रद्रोही शक्तियां अपने षड्यंत्रों को फलीभूत कर रही हैं। चीन, पाकिस्तान जैसे हिन्दुस्तान विरोधी देश मीडिया को ढाल बनाकर हिन्दुस्तान को कमजोर करने और तोडऩे का प्रयास कर रहे हैं। वहीं लालू, मायावती और केजरीवाल जैसे लोग गंदी राजनीति के लिए मीडिया को हथियार बनाकर देश की जनता को भ्रमित कर रहे हैं। दुखद पहलू यह है कि यह कथित मीडिया किसी भी समाचार से जुड़े विविध पहलुओं को अंतर्लोप कर सिर्फ उन्हीं तथ्यों को प्रचारित और प्रसारित करती है, जिनसे हिन्दुस्तान में समाज और राष्ट्र का तात्कालिक या दीर्घकालिक अहित छुपा होता है।

देश में विविध संप्रदायों के बीच मामूली विवाद को सांप्रदायिक विवादों का रूप देकर एवं पड़ौसियों के झगड़ों तक को जातिगत मारपीट का स्वरूप देकर समाज में मतभेद पैदा करने का प्रयास किया जाता है। इस कथित मीडियाकर्मी हिन्दुस्तान में मिले अभिव्यक्ति के विशेषाधिकार की आड़ में गैर जिम्मेदार ही नहीं बल्कि देशद्रोही पत्रकारिता भी कर रहे हैं। हाल ही में जम्मू-कश्मीर में हिजबुल कमाण्डर बुरहान बानी के मुठभेड़ में मौत के बाद आतंकी समर्थकों द्वारा लगातार सेना पर सीधा हमला किया गया। दंगाइयों के हमलों से बचती और घायलों को मदद पहुंचाती सेना द्वारा अपने बचाव में जिन दंगाइयों को घायल कर खदेड़ा उन दंगाइयों को पाकिस्तान प्रायोजित कथित मीडिया द्वारा निर्देश और भोलीभाली जनता के रूप में दिखाने का प्रयास किया जा रहा है। दंगाइयों के हमलों से घायल हुए स्थानीय नागरिकों को सेना के खिलाफ भड़काने का प्रयास किया जा रहा है। सेना को खलनायक के रूप में पेश करते जम्मू-कश्मीर के ऐसे ही एक कथित स्वतंत्र पत्रकार अराबू अहमद सुल्तान द्वारा अंतर्राष्ट्रीय मीडिया को जिस तरह की खबरें भेजी जा रही हैं, वह पूरी तरह सरकार और सेना को बदनाम करने वाली एवं पाकिस्तान प्रायोजित हैं। खास बात यह है कि इस स्वतंत्र पत्रकार द्वारा आतंकी बुरहान वानी की करतूतों को अपनी खबरों में कहीं भी स्थान नहीं दिया, न ही बुरहान वानी की मौत के बाद आतंकी के समर्थन में पाकिस्तान प्रायोजित उस भीड़ में छुपे आतंकियों को दिखाया गया है, जिसने भारतीय सेना को घेरकर हमला किया। इस कथित पत्रकार ने कश्मीर घाटी में माहौल बिगडऩे वाले उत्पातियों को निर्दोष नागरिक बताकर उन्हें बेचारा और पीडि़त बताने की कोशिश की जा रही है। निश्चित ही यह पाकिस्तान प्रायोजित पत्रकारिता मिशन का हिस्सा दिखाई पड़ रहा है।

इस तरह के पाकिस्तान प्रेरित एवं प्रायोजित मीडिया और पत्रकारों पर रोक लगाया जाना जरूरी है। मीडिया की स्वतंत्रता को खूंठी पर टांगकर पाकिस्तान अपने कब्जे वाले कश्मीर में उत्पात मचा रहा है। स्थानीय भोलेभाले नागरिकों पर सेना के माध्यम से अत्याचार कर रहा है। पाक अधिकृत कश्मीर में हाल ही में हुए चुनावों में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर धांधली का आरोप लगाते हुए जिस तरह के प्रदर्शन हो रहे हैं, उन प्रदर्शनों को पाकिस्तानी सरकार द्वारा सेना के माध्यम से हथियारों की दम पर दबाया जा रहा है। पाकिस्तानी सरकार और सेना ने स्थानीय मीडिया को स्पष्ट शब्दों में समझा दिया है कि पाकिस्तानी सेना द्वारा विरोधियों की आवाज दबाने के लिए किए जा रहे अत्याचारों की खबर लीक हुई तो परिणाम ठीक नहीं होंगे। एक ओर पाकिस्तान में जहां निर्दोषों पर किए जा रहे अत्याचारों पर मीडिया भीगी बिल्ली बनी बैठी है। वहीं जम्मू-कश्मीर में शांति और सौहार्द बहाल करने में जुटी सेना और सरकार को खलनायक के रूप में बदनाम करने की कोशिश कर रही है। इतिहास गवाह है कि हिन्दुस्तान ही नहीं किसी भी देश की मीडिया ने राष्ट्रहित में बड़े-बड़े आंदोलन किए हैं।

हिन्दुस्तान की आजादी की लड़ाई में मीडिया की उल्लेखनीय भूमिका इतिहास के पन्नों पर दर्ज है। ऐसे में राष्ट्रद्रोही पत्रकारिता को अंकुश लगाने सरकार को चाहिए कि अभिव्यक्ति के अधिकार की सीमा तय करे तथा जो भी राष्ट्रहित में निर्धारित इस सीमा रेखा को लांघने का प्रयास करे उस पर सख्ती से कार्रवाई की जानी चाहिए, क्योंकि भारतीय संविधान में भी अभिव्यक्ति की आजादी को राष्ट्रहित की सीमा रेखा लांघने का अधिकार नहीं दिया गया है।

Updated : 1 Aug 2016 12:00 AM GMT
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