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यह सब हिन्दू कब तक बर्दाश्त करेगा

यह सब हिन्दू कब तक बर्दाश्त करेगा

जयकृष्ण गौड़

यह हिन्दू मन की वेदना का सवाल है कि क्या सहिष्णुता, धर्मनिरपेक्षता और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा का दायित्व केवल हिन्दुओं का है, जो अल्पसंख्यक में बहुसंख्यक है, जो हजारों वर्षों से भारत में हैं, जो यहां पले बढ़े हुए उनका दायित्व क्या देश के प्रति नहीं है, १८५७ का स्वतंत्रता संग्राम हिन्दू मुस्लिमों ने लड़ा लेकिन १९४७ में ऐसा क्या हो गया कि मुस्लिम के साथ खड़े होकर जिन्ना के बहकावे में आकर मुस्लिमों ने मजहबी राष्ट्रीयता के भ्रम में देश को खंडित कर भारत का स्थायी दुश्मन तैयार कर दिया। जो मुस्लिम भारत छोड़ पाकिस्तान गये उनको वहां मुहाजिर कहा जाता है, उनको वहां के मुस्लिम स्वीकार करना नहीं चाहते। इसके बाद भी कश्मीर एवं अन्य स्थानों के मुस्लिमों को पाकिस्तान अधिक प्रिय है। कश्मीर घाटी में पाकिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगाये जाते है, अब तो वहां आईएस के झंडे फहराने वाले तत्व हंै। जम्मू-कश्मीर में पीडीपी भाजपा की सरकार है, इसके बाद भी वहां अलगाववादी हैं, जो पुलिस और सेना के जवान कश्मीर की रक्षा करते हैं, उन पर वहां पत्थर फेंके जाते हंै। जो करीब ढाई लाख हिन्दू कश्मीर घाटी से मुस्लिम गुंडों के अत्याचारों से पीडि़त होकर मरते पिटते हुए पलायन कर गये थे, वे शरणार्थी जीवन बिताने को बाध्य हुए लेकिन सेक्यूलरी का भ्रम पाल रहे राजनैतिक दलों ने उनका दर्द व्यक्त करने को भी साम्प्रदायिक माना। भाजपा ने जब इन हिन्दू पंडितों के दर्द को व्यक्त करना प्रारंभ किया तो उनकी इस पहल को साम्प्रदायिक कहा गया। कश्मीर घाटी में सैकड़ों हिन्दू मंदिरों को नष्ट भ्रष्ट किया गया, उस बारे में किसी ने आवाज नहीं उठाई, लेकिन बाबरी ढांचा, जो मस्जिद भी नहीं था, उसको मस्जिद बताकर मुस्लिम कट्टरपंथियों के साथ सेक्यूलरों ने हायतोबा करते हुए छाती पीटी। यह भी कहा गया कि बाबरी ढांचे के साथ सेक्यूलर ढांचा भी गिर गया है, इसका आशय यही है सेक्यूलरी को टिकाये रखना केवल हिन्दुओं का दायित्व है, चाहे देशद्रोही तत्व एवं मजहबी कट्टरपंथी हिन्दुओं को प्रताडि़त, देशद्रोहिता का तांडव खुले आम करे, लेकिन हिन्दुओं को सहिष्णुता के आधार पर देशद्रोहिता को भी बर्दाश्त करना चाहिए।

कश्मीर पंडितों को वापिस लाने की पहल भाजपा-पीडीपी की मेहबूबा सरकार ने की है। हिन्दू पंडित सुरक्षा के साथ कश्मीर घाटी में बसने को तैयार है। उनके लिए सैनिक कॉलोनी का प्रस्ताव है, लेकिन अभी से अलगाववादियों और देशद्रोही तत्वों ने हिन्दू पंडितों को बसाने का विरोध प्रारंभ कर दिया है। कश्मीर घाटी में हिंसा प्रारंभ हो गई है। जो कश्मीर घाटी हिन्दू संस्कृति का केन्द्र रही, जहां शंकराचार्य का मंदिर है, जहां हिन्दुओं के तीर्थ है उस कश्मीर घाटी को हिन्दू विहीन कर दिया गया है। वहां हिन्दू सुरक्षा के बिना सिर उठाकर जिन्दा नहीं रह सकता। सेक्यूलरी, हिन्दुओं के लिए आत्मघाती होती जा रही है।

अब सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में जहां, की जनसंख्या करीब बीस करोड़ है, वहां के कैराना में मुस्लिम गुडों के भय से ३६५ हिन्दुओं को पलायन करना पड़ा। इसकी सूची वहां के सांसद हुकुमसिंह ने तैयार की है। इसी प्रकार विश्व हिन्दू परिषद ने भी आरोप लगाया है कि देवबंद से भी चालीस हिन्दू परिवारों को पलायन हुआ है। उप्र की अखिलेश सरकार के लिए हिन्दुओं की पीड़ा को व्यक्त करना घोर साम्प्रदायिकता है। उनके आजम खां मंत्री है, जिन्होंने मुजफ्फर दंगे की आग भड़काई, वे सेक्यूलरी का प्रतीक है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का कहना है कि भाजपा चुनाव के समय धु्रवीकरण करना चाहते है। अखिलेश से यह सवाल है कि मुजफ्फर नगर, कैराना एवं देवबंद से जो हिन्दुओं का पलायन हो रहा है। उनके राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति जर्जर है, मथुरा में संगठित गिरोह ने दो पुलिस अधिकारियों की हत्या कर दी, साम्प्रदायिक संघर्ष की घटनाएं हो रही हैं, एक जाति समूह सरकार पार्टी के रूप में स्वयं को प्रस्तुत कर मनमाना व्यवहार करते हैं। इस स्थिति से निपटना अखिलेश यादव सरकार का काम है। इस बारे में आरोप बर्दाश्त कर समस्याओं को दूर करना राज्य सरकार का कार्य है। अल्पसंख्यक भी इस देश के है उन्हें देश का होकर रहना होगा। उनकी देश विरोधी बातों को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता, यह राज्य सरकारों का भी राज्य धर्म है। इसके विपरीत आचरण देशहित को प्रभावित करेगा। विकृत सेक्यूलर व्यवहार और तुष्टीकरण नीति से देश के अस्तित्व पर संकट आता रहा है। ऐसी सेक्यूलरी, ऐसा तुष्टीकरण और ऐसी सहिष्णुता अब वे अधिक समय तक बर्दाश्त नहीं कर सकते, जो देश से प्यार करते है। राष्ट्र निष्ठा को प्रमाणित करने की कसौटी कई बार आई है, लेकिन विकृत सेक्यूलरी से देश का नुकसान ही हुआ है।

उत्तर प्रदेश में आजम खान जैसे देशद्रोही तत्वों की वकालत करने वाले अखिलेश सरकार के प्रभावी मंत्री है। इसी प्रकार दक्षिण के राज्य आंध्र में मजहबी साम्प्रदायिकता का जहर फैल रहा है मजहबी साम्प्रदायिकता के नये अवतार ऑल इंडिया मज्लिस-ए इतेहदुल मुसलमीन के प्रमुख असादुद्दीन ओवैसी पैदा हुआ है। वे हैदराबाद के मुस्लिम क्षेत्र से सांसद है उनके छोटे भाई आंध्र विधान सभा के विधायक है। उन्होंने मुस्लिमों की सभा में खुलेआम कहा कि पुलिस को हटा लिजिये, हम हिन्दुओं को खदेड़ देंगे। उन्होंने श्रीराम, सीताजी और माता कौशल्या को लांछित करने वाली बाते कहीं। अपने श्रद्धा स्थानों को लांछित करने वाला और हिन्दुओं के खिलाफ बोलने वालों को क्या हिन्दू समाज बर्दाश्त करता रहेगा। आजादी के बाद से यह अपमान हिन्दू बर्दाश्त कर रहा है, क्या सहिष्णुता और सेक्यूलरी एक तरफा चलेगी। क्या हिन्दू ही अपनी भावना को आहत होते देखता रहेगा। ये सवाल हिन्दू के मन की वेदना है।

यह भी राष्ट्र हित की दृष्टि के मुद्दे है। जो जनसंघ के समय से ही उठते रहे है। कश्मीर को अलग पहचान बताने वाली धारा ३७० को समाप्त करने की मांग जनसंघ ने की। डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में सत्याग्रह और उनकी शेख अब्दुल्ला की जेल में संदिग्ध मृत्यु हो गई है। यह धारा समाप्त करना आज भी प्रासंगिक और देशहित में है, कश्मीर की जो स्थिति है, अलगाववादी और देश विरोधी तत्व जिस तरह भारत विरोधी गतिविधियों का केन्द्र कश्मीर बना हुआ है, चाहे आतंकवादियों को पाकिस्तान पाल रहा है लेकिन कश्मीर घाटी में भी आतंकियों को संरक्षण देने वाले तत्व प्रभावी है। इस समस्या का एक ही समाधान है कि अस्थाई धारा ३७० को समाप्त करने से अन्य राज्यों की तरह भारत का नागरिक कश्मीर जाकर बस सकेगा। फिर देशद्रोही और अलगाववादी तत्व प्रभावी नहीं हो सकते, फिर कश्मीर घाटी भी अन्य राज्यों के समान हो जायेगी। फिर हिन्दू पंडितों को कश्मीर घाटी में बसाने में कोई कठिनाई नहीं होगी। इसी प्रकार हिन्दुओं के श्रद्धा स्थानों पर जो अतिक्रमण हुआ है, उनको अतीत की बेडियों से मुक्त करने की मांग को साम्प्रदायिक कहा जाता है। श्रीराम जन्मभूमि पर हिन्दू मंदिर था, यह भी ऐतिहासिक सच्चाई है कि हमलावर बाबर ने अपने सिपहसालार के माध्यम से हिन्दुओं की भावना को आहत करने के लिए जन्म भूमि के मंदिर को नष्ट भ्रष्ट कर वहां बाबरी ढांचा खड़ा कर दिया गया था। वहां रामलला विराजित हैं, वहां भव्य मंदिर की मांग हिन्दू कर रहे है, लेकिन भूमि का मामला वर्षों से न्यायालय में उलझा हुआ है। अब इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में इसे रामजन्म भूमि माना है, अब सर्वोच्च न्यायालय में भूमि का मामला चल रहा है। हिन्दू इन मुस्लिमों से यह तो अपेक्षा कर सकता है कि रामजन्म भूमि पर मंदिर निर्माण के कार्य में अवरोध पैदा नहीं करे।

ऐसी सेक्यूलरी अधिक समय तक नहीं चल सकती कि हिन्दू अपना उत्पीडऩ बर्दाश्त करता रहे और सेक्यूलरी के नाम पर देशहित की बली होती रहे। इस स्थिति को बदलना होगा। केवल वोट केन्द्रित राजनीति किसी का भला नहीं कर सकती। इस सच्चाई को सेक्यूलर जमात को समझना होगा कि भारत की परम्परा, संस्कृति और आदर्श हिन्दुत्व का दर्शन है। इस सच्चाई को कोई मिटा नहीं सकता। इसके अनुसार ही भारत की राजनीति सार्थक है, राष्ट्रवादी प्रवाह ही इस समस्या का समाधान कर सकता है।

लेखक-राष्ट्रवादी लेखक और वरिष्ठ पत्रकार

Updated : 21 Jun 2016 12:00 AM GMT
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