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अब गंभीर बीमारी से नहीं होगी गरीब बच्चें की मौत

अब गंभीर बीमारी से नहीं होगी गरीब बच्चें की मौत
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जल्द शुरू होगा जिला हस्तक्षेत्र केन्द्र, नि:शुल्क मिलेगा इलाज

ग्वालियर। गरीब बच्चों की अब गंभीर बीमारी से मौत नहीं होगी। ग्वालियर सहित प्रदेश के सभी जिलों में सरकार की ओर से शीघ्र ही हस्तक्षेप केन्द्र खुलने जा रहे हैं। इन केन्द्रों में 17 वर्ष तक के किशोरों का नि:शुल्क इलाज होगा। ग्वालियर में यह केन्द्र मुरार स्थित जिला अस्पताल में शुरू भी हो गया है। हालांकि इस केन्द्र को अभी औपचारिक रूप से शुरू नहीं किया गया है। इस केन्द्र में जन्म के बाद बच्चों की पूर्ण जांच कर यह देखा जाएगा कि बच्चे को कोई बीमारी तो नहीं है। इसके साथ ही बच्चों का जल्द से जल्द उपचार शुरू किया जाएगा।

आमतौर पर मानसिक व शारीरिक विकृति के कारण प्रभावित बच्चों को व्यवहार जनित या फिर चलने-फिरने एवं भाषागत समस्याओं से जूझना पड़ता है। इस कारण जानकारी के अभाव में लोग उन्हें पागल करार देते हैं और उन्हें समझने की बजाय उनसे दूर रहने का प्रयास करते हैं। परिजन ऐसे बच्चों के उपचार के लिए राशि एकत्रित नहीं कर पाते हैं और उन्हें भाग्य भरोसे छोड़ देते हैं। अत: शासन द्वारा ऐसे बच्चे, जिनमें जन्म से ही कोई कमी होती है, उन्हें हस्तक्षेत्र केन्द्र में नि:शुल्क उपचार प्रदान किया जाएगा। इन केन्द्रों में शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों से आंगनबाड़ी केन्द्रों द्वारा बच्चों को रैफर किया जाएगा। इस केन्द्र में आंख, कान, नाक, गला, दांत, दिल सहित विभिन्न रोगों की जांच व उपचार, फिजियोथैरेपिस्ट, सामान्य लैब, रजिस्ट्रेशन कक्ष आदि केन्द्र में बनाए जाएंगे। यह जिले का पहला ऐसा केन्द्र होगा, जहां ऑडियोमेट्री मशीन से बच्चों के कानों की जांच, वैरा मशीन से बोलने की एवं वीजन मशीन से आंखों की रोशनी की जांच की जाएगी। इसके साथ ही जल्द से जल्द विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा उपचार शुरू किया जाएगा।

मंद बुद्धि बच्चें को देंगे शिक्षा

मानसिक मंदता का प्रभाव बच्चों में जन्म से दिखाई देता है। सामान्य तौर पर जब बच्चा दो से चार माह का होता है तो वह करवट लेना, मुस्कराना, आंखें घुमाना शुरू कर देता है। चार से आठ माह का बच्चा सिर स्थिर रखना, बैठना व बाद में घुटनों के बल चलना प्रारंभ कर देता है, लेकिन सामान्य बच्चे के उलट मेंटली रिटार्डेड बच्चे में उपरोक्त गतिविधियां डेवलपमेंटल माइल स्टोन के अनुसार न होकर उसके गामक एवं भाषा विकास की प्रक्रिया धीमी होती है। इन बच्चों में 15 वर्ष की उम्र के मानसिक मंदबुद्धि का बौद्धिक स्तर आई क्यू लेवल अपने से 5 वर्ष छोटे सामान्य बच्चे जैसा होता है, जिसके निदान के लिए शीघ्र हस्तक्षेप एवं शीघ्र उपचार है।

जन्म से ही उपचार जरूरी
जिला अस्पताल के आरएमओ डॉ. डी.डी. शर्मा ने बताया कि जिन बच्चों में जन्म से ही कोई कमी होती है, उनका अगर जन्म से ही उपचार शुरू कर दिया जाए तो उनकी बीमारी सही की जा सकती है।

बंद कमरे में होती है जांच
जिला हस्तक्षेत्र केन्द्र के नोडल अधिकारी डॉ. के.एन. शर्मा ने बताया कि बच्चों की ऑडियोमेस्ट्री जांच साउण्ड प्रूफ कमरे में की जाती है। कमरे को चारों तरफ से कार्ट बोर्ड से बंद किया जाता है, जिसमें जिन बच्चों को कम सुनाई या सुनाई नहीं देता हैं, उनकी जांच की जाती है। डॉ. शर्मा ने बताया कि यह मशीन जिले में सिर्फ जिला अस्पताल में ही है। इस मशीन से जांच के लिए गजराराजा चिकित्सालय से भी बच्चों को रैफर किया जाता है।

खेलने की भी होगी सुविधा
जिला हस्तक्षेत्र केन्द्र में उपचार कराने आने वाले बच्चों के खेलने के लिए झूले एवं खिलाने आदि भी रखे जाएंगे, जिससे बच्चों को उपचार के साथ-साथ मनोरंजन के लिए भी सुविधा होगी।

Updated : 9 May 2016 12:00 AM GMT
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