पानी पर सियासत

पानी पर सियासत

लातूर की तर्ज पर बुंदेलखंड की प्यास बुझाने के लिए भेजी गई ट्रेन पर सियासत शुरू हो गई है। सूखे के जूझ रहे बुंदेलखंड के लिए समय-समय पर केन्द्र से मदद मांगने वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने पानी की ट्रेन को बगैर देर किए लौटाने की घोषणा कर अपनी सियासी मंशा को उजागर कर ही दिया। लातूर के प्रयोग को अगर बुंदेलखंड में दोहराया जाता तो बुंदेलखंड की प्यास बुझती, इसके ठीक उलट अखिलेश सरकार के एक मंत्री शिवपाल यादव ने यह कह कर कि सभी जिलों में पेयजल व्यवस्था के लिए प्रदेश सरकार सक्षम है, स्पष्ट कर दिया कि सपा का ध्यान बुंदेलखंड के संकट से ज्यादा २०१७ के चुनाव पर है।

उसे भय है कि केंद्र व विपक्षी दल यह संदेश देने में कामयाब रहेंगे कि प्रदेश सरकार पानी मुहैया कराने में ठीक से काम नहीं कर रही है। हालांकि पानी की ट्रेन भेजने के पीछे रेल मंत्रालय की ऐसी कोई मंशा नहीं है। दरअसल यह बुंदेलखंड के जनप्रतिनिधियों की मांग थी जिस पर रेल मंत्रालय ने तत्परता दिखाई। बुंदेलखंड के कुछ भाजपा सांसदों ने लातूर की तरह बुंदेलखंड में पानी की ट्रेन भेजने की मांग रखी थी जिसे रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा ने गंभीरता से लिया। उत्तर प्रदेश के रवैए पर केंद्रीय रेल मंत्री सुरेेश प्रभु स्पष्ट कर चुके हैं कि वह पानी पर कोई राजनीति नहीं करना चाहते हैं। राज्य सरकार की मदद के लिए बुंदेलखंड पानी की ट्रेन भेजी गई थी। केन्द्र का गंगा सफाई अभियान सफाई अखिलेश सरकार की आंख की पहले से ही किरकिरी बना हुआ है।

अब पानी की ट्रेन के मामले ने अखिलेश सरकार को और डरा दिया। डर यही है कि श्रेय केन्द्र की मोदी सरकार को न मिल जाए। केन्द्र की हर कार्य को राजनीति के चश्मे से देखने की सपा की फितरत ने सूखे से जूझ रहे बुंदेलखंड के लोगों को एक बार फिर उनके भाग्य के भरोसे छोड़ दिया। सूखे से जूझ रहे बुंदेलखंड से लोगों का पलायन रोकने में सपा सरकार कोई ठोस उपाय धरातल पर नहीं ला पाई। लोगों के पास रोजगार नहीं है और खाद्यान्न संकट बना हुआ है। किसान लगातार आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे हैं। पानी के लिए देश बहुत हद तक मॉनसून पर निर्भर है, पिछले दो सालों से कमजोर मॉनसून ने हालात और बिगाड़ दिए। उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड का क्षेत्र जो पहले से ही सूखे की मार से जूझ रहा है, इन गर्मियों ने यहां भयावह हालात पैदा कर दिए हैं। सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो देश के 256 जिलों में सूखे का असर है। इनमें भारत की लगभग एक-चौथाई आबादी रहती है। सूखे से निपटने में केन्द्र पूरी तत्परता से जुटा है। इन हालात में पानी पर राजनीति ठीक नहीं है।

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