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मेडिकल वेस्ट बिगाड़ रहा कर्मचारी राज्य बीमा अस्पताल की सेहत

मरीजों के स्वास्थ्य के साथ हो रहा है खिलवाड़

ग्वालियर। चिकित्सीय कचरा न सिर्फ पर्यावरण बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी ङ्क्षचता का विषय है। निजी अस्पतालों की बात क्या करें जब शासकीय अस्पतालों तक में रोजाना इकट्ठा होने वाले चिकित्सीय कचरे और उसके खतरों के मामले में घोर लापरवाही बरती जा रही है। यहां तक कि जिस वार्ड में मरीज भर्ती रहते हैं, उन्हीं वार्डों के बाहर मेडिकल वेस्ट बाहर गैलरी में ही डाल दिया जाता है, जिसके कारण मरीजों सहित उनके साथ अस्पताल में आने वाले परिजनों में भी संक्रामक रोग होने का खतरा बना रहता है। यही स्थिती लोको स्थित कर्मचारी राज्य बीमा चिकित्सालय में है। जहां नियमों को धता बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है।

इस अस्पताल का मेडिकल वेस्ट सफाई कर्मचारियों द्वारा अस्पताल परिसर में छोड़ दिया जाता है। अस्पताल प्रशासन की लापरवाही का आलम यह है कि वार्ड के बाहर ही बड़ी मात्रा में बायो मेडिकल वैस्ट खुले में डाल दिया जाता है जो कई दिनों तक ऐसे ही पड़ा रहता है और बाद में कचरा बीनने वालों द्वारा उठाया जाता है। मेडिकल वेस्ट को इस तरह खुले में रखना आम लोगों के स्वास्थय के लिए बेहद घातक होता है, पर स्वास्थ्य सेवाएं देने वाला अस्पताल इस बात से भी अंजान मालूम पड़ता है।

नष्ट करने के सख्त निर्देश की अनदेखी:-
पर्यावरण संरक्षण एक्ट 1986 में अस्पताल में मेडिकल वेस्ट के प्रबंधन को लेकर स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं। मेडिकल वेस्ट यानी कि अस्पताल में इस्तेमाल होने के बाद कूड़ा बन गई चीजें जैसे सिरिंज, पाइप एवं ब्लेड आदि सेहत के लिए बेहद खतरनाक बताई जाती हंै। जिसके चलते बायो मेडिकल वेस्ट से निपटान के लिए सभी अस्पतालों का मेडिकल वेस्टेल इन्सयूलेटर में समाप्त करने के सख्त निर्देश दिए जा चुके हैं।

दो श्रेणियों का होता है कचरा
मेडिकल वेस्टेज को आमतौर पर जैविक चिकित्सीय कचरे को संक्रामक और गैर-संक्रामक दो श्रेणियों में बांटा जाता है, लेकिन संक्रामक कचरे का निपटान वैज्ञानिक तरीके से नहीं किया गया तो वह दूसरे गैर-संक्रामक कचरे को भी दूषित कर देता है। खुद डॉक्टर इस बात को मानते हैं कि इससे फ्यूरांस और डायोक्सिन जैसे कई तरह के प्रदूषक तत्व पैदा होते हैं जो कैंसर, मधुमेह, प्रजनन और शारीरिक विकास संबंधी परेशानियों की वजह बन सकते हैं। इसी वजह से अस्पतालों से निकलने वाले कचरे को सुरक्षित तरीके से नष्ट कराने के लिए जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन एवं निपटान अधिनियम 1998 लागू किया गया। जिसके तहत अस्पतालों के लिए अनिवार्य है कि वे पर्यावरण के अनुकूल रहें।

चार रंगों के थैलों में डाला जाता है कचरा
मेडिकल कचरे को अलग अलग रंगों के थैलों में डाला जाता है, जिससे सबका अलग तरह से निस्तारण होता है, लेकिन इस अस्पताल में थैले तो दूर की बात है यहां किसी भी वार्ड में कचरे को डालने के लिए कोई भी कूड़ादान नहीं रखा गया है।

*पीले रंगों के थैलों में सर्जरी में कटे हुए शरीर के भाग, लैब के सैम्पल, खून से यक्त मेडिकल की सामग्री जैसे विभिन्न कचरे को डाला जाता है, फिर इन्हें जलाया जाता है या बहुत गहराई में दबा देते हैं।
*लाल रंग के थैले में दस्ताने, कैथेटर, आई.वी.सेट, कल्चर प्लेट को डाला जाता है।
*नीले थैले में गत्ते के डिब्बे, प्लास्टिक के बैग जिनमे सुई, कांच के टुकड़े या चाकू रखा गया हो उनको डाला जाता है।
*काले रंग के थैले मेंं हानिकारक और बेकार दवाइयां, कीटनाशक पदार्थ और जली हुई राख डाली जाती है।

रोज आते हैं 300 से अधिक मरीज
बीमा अस्पताल में प्रतिदिन 300 से अधिक मरीज उपचार के लिए पहुंचते हैं, लेकिन अस्पताल प्रबंधक की लापरवाही के कारण इन मरीजों में संक्रमण बीमारियां फैलने का खतरा बना रहता है।

इन्होंने कहा
अगर बीमा अस्पताल में मेडिकल कचरे को खुले में फेंका जा रहा है, तो शनिवार को मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. अनूप कम्ठान को जांच करने के निर्देश दुगंा।

डॉ. संजय गोयल
जिलाधीश ग्वालियर

बीमा अस्ताल श्रम अस्पताल के अंतर्गत आता है, मेरे द्वारा जिलाधीश को भी अवगत कराया जाएगा।

डॉ. अनूप कम्ठान
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी

Updated : 14 May 2016 12:00 AM GMT
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