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भारत में हर साल पैदा होता है 18.5 लाख टन ई-कचरा

भारत में हर साल पैदा होता है 18.5 लाख टन ई-कचरा
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भारत में हर साल पैदा होता है 18.5 लाख टन ई-कचरा

बेंगलुरु | भारत में हर साल 18.5 लाख टन ई-कचरा पैदा होगा। एक अध्ययन में कहा गया है कि देश में निकलने वाले ई-कचरे में सबसे बड़ा हिस्सा मुंबई और दिल्ली-एनसीआर का है। इसमें कहा गया है कि सालाना आधार पर ई-कचरे में 25 प्रतिशत की दर से इजाफा हो रहा है। इस तरह 2018 तक ई-कचरे का आंकड़ा 30 लाख टन पर पहुंच जाएगा।

एसोचैम और फ्रॉस्ट एंड सुलिवन के संयुक्त अध्ययन में कहा गया है कि 1.20 लाख टन के साथ ई-कचरे में मुंबई सबसे आगे है। 98,000 टन के साथ दिल्ली-एनसीआर दूसरे स्थान पर है। वहीं चेन्नई में हर साल 67,000 टन, कोलकाता में 55,000 टन, अहमदाबाद में 36,000 टन, हैदराबाद में 32,000 टन और पुणे में 26,000 टन ई-कचरा निकलता है।

अध्ययन में कहा गया है कि खराब ढांचे, कानून और रूपरेखा की वजह से भारत में कुल ई-कचरे में से मात्र ढाई प्रतिशत की रिसाइक्लिंग हो पाती है। इसमें कहा गया है कि ई-कचरे की वजह से प्राकृतिक संसाधन नष्ट होते हैं, पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है और साथ ही यह उद्योग में काम करने वाले लोगों के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर डालता है।

इसमें कहा गया है कि करीब 95 प्रतिशत ई-कचरे का प्रबंधन असंगठित क्षेत्र और स्क्रैप डीलरांे द्वारा किया जाता है। एसोचैम के महासचिव डी एस रावत ने कहा कि भारत में करीब 5 लाख बाल श्रमिक विभिन्न ई-कचरा गतिविधियों में लगे हैं। उन्होंने कहा कि यह चिंता की बात है कि देश में ई-कचरे का प्रबंधन अवैज्ञानिक तरीके से स्क्रैप डीलरों द्वारा किया जाता है। वे बिना उचित तरीका अपनाए रेडियोएक्टिव सामग्री का प्रबंधन करते हैं। पूर्व में पश्चिम दिल्ली के मायापुरी में इस तरह का मामला आ चुका है।

Updated : 22 April 2016 12:00 AM GMT
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