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सार्थक परिणाम लाएगी प्रधानमंत्री की यात्रा

सार्थक परिणाम लाएगी प्रधानमंत्री की यात्रा


*डॉ. रहीस सिंह

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पांच दिवसीय दौरे के आरम्भ में ब्रसेल्स की यात्रा के तत्पश्चात अमेरिका के लिए रवाना हो गये। इसके बाद वे रियाद (सऊदी अरब) जाएंगे। इस यात्रा का केवल कूटनीतिक महत्व नहीं है बल्कि इसमें आर्थिक, सामरिक और शांति के साथ-साथ आंतरिक व वाह्य सुरक्षा के विषय भी शामिल हैं। यदि इन विषयों पर कोई निर्णायक पहल इस यात्रा के परिणाम के रूप में सामने आयी तो इससे न केवल भारत को लाभ मिलेगा बल्कि शेष दुनिया भी किसी न किसी रूप से लाभान्वित होगी। हालांकि लगभग एक सप्ताह पहले ही ब्रसेल्स में हुए सिलसिलेवार धमाकों से वहां व्यापक असुरक्षा का भाव पनपा और कुछ समूहों ने सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया जिससे कानून एवं व्यवस्था की स्थिति भी जटिल हो गयी है लेकिन इस सबके बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लंबे समय से लंबित भारत-यूरोपीय संघ (ईयू) शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने का निर्णय लिया। इस आधिकारिक दौरे से पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ब्रसेल्स हमले का जिक्र करते हुए बेल्जियम के लोगों की जीवटता और भावना को नमन किया और ब्रसेल्स के लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होने का आश्वासन दिया। इससे जाहिर होता है कि प्रधानमंत्री का ब्रसेल्स दौरा संवेदनात्मक कूटनीतिक के साथ-साथ आर्थिक व सामरिक हितों के उद्देश्यों पर आधारित है।
प्रधानमंत्री ने अपनी यात्रा से पहले स्पष्ट तौर पर यह कहा कि बेल्जियम के साथ भारत के प्रगाढ़ सम्बंध हैं और ये ऐसे सम्बंध हैं जो समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं। उल्लेखनीय है कि यूरोप में बेल्जियम भारत का दूसरा बड़ा व्यापारिक साझीदार है और यहां पर बड़े पैमाने पर भारतीय अनिवासी रहते हैं जिनमें सबसे प्रमुख हैं हीरा कारोबारी। प्रधानमंत्री ने ब्रसेल्स पहुंचकर बेल्जियम के प्रधानमंत्री चाल्र्स मिशेल से मुलाकात की और फिर 13वीं इण्डिया-ईयू शिखर सम्मेलन में शामिल हुए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और यूरोपीय परिषद (यूरोपियन काउंसिल) के राष्ट्रपति डोनाल्ड टस्क और यूरोपीय कमीशन के जीन क्लॉड जंकर से 13वें इंडिया-ईयू समिट के दौरान ब्रसेल्स में मुलाकात की। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के अनुसार वार्ता 'सकारात्मक एवं सौहार्दपूर्ण माहौलÓ में सम्पन्न हुयी। विचार विमर्श के आरम्भ में मुख्य फोकस अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर रहा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले सप्ताह आतंकवादी हमलों पर यूरोपीय संघ के लिए अपनी संवेदना व्यक्त की। प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए यूरोपीय यूनियन के साथ सहयोग की इच्छा व्यक्त की और कहा कि दोनों तरफ से 2004 के बाद से भागीदारी बढ़ी है जबकि यूरोपीय पक्ष से टस्क का कहना था कि भारत ईयू का सबसे महत्वपूर्ण साझेदारों में से एक है और ईयू एजेंडा 2020 निकट भविष्य की साझेदारी के लिए परिभाषित करेगा। इस विमर्श में अफगानिस्तान का संक्रमण और अफगानिस्तान में विकास एजेंडे के विषय पर भारत की प्रतिबद्धता भी हिस्सा बनी। अन्य विषयों में व्यापार, जलवायु परिवर्तन, प्रवास तथा भारतीय व यूरोपीय संसद के बीच सहयोग बढ़ाने पर व्यापक समझौते सम्बंधी विषय भी शामिल थे। दोनों पक्षों में इस बात पर सहमति प्रकट की कि लचीला दृष्टिकोण व्यापक आधार वाले व्यापार एवं निवेश समझौते (ब्रॉडबेस्ड ट्रेड एण्ड इन्वेस्टमेंट एग्रीमेंट; बीटीआईए) को परिणामों तक पहुंचाएगा। इसके साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत में आवास और अक्षय ऊर्जा सहित बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश और सहयोग के लिए ईआईबी किफायती ऋण की संभावना पर चर्चा भी की। इण्डिया-ईयू शिखर सम्मेलन के बाद प्रधानमंत्री एक्सपो में गये जहां उन्होंने भारतीय समुदाय के लगभग 5000 लोगों को सम्बोधित किया और फिर वहां से परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मेलन के लिए वाशिंगटन डीसी के लिए रवाना हो गये।
दरअसल यूरोप लगातार जिस उथल-पुथल से गुजर रहा है, उसमें प्रमुख कारक के रूप में अर्थव्यवस्था, आतंकवाद, आंतरिक सुरक्षा हैं जबकि भारत आर्थिक मोर्चे पर बेहतर स्थिति में है लेकिन आतंकवाद, आंतरिक सुरक्षा एवं वाह्य सुरक्षा के मामले में उसे अभी और तैयारी करनी है। इस दृष्टि से भारत और यूरोप के सम्बंध अन्योन्याश्रित हितों से प्रेरित व संचालित हो सकते हैं। लेकिन इसके लिए अभी भारत को काफी होमवर्क करने की जरूरत है। माना जा रहा है कि भारत और यूरोपीय संघ के सम्बंधों में उस समय थोड़ा सा तनाव आ गया था जब 28 देशों के इस समूह ने जब अप्रैल 2015 में नरेन्द्र मोदी के फ्रांस, जर्मनी और कनाडा दौरे के समय उनके ब्रसेल्स के संक्षिप्त दौरे से सम्बंधित नयी दिल्ली के प्रस्ताव को मंजूरी देने से इन्कार कर दिया था। लेकिन प्रधानमंत्री के इस दौरे के बाद स्थितियां बदलती हुयी दिख रही हैं। वहां जो वातावरण दिखा उससे लग रहा है कि ब्रसेल्स नई दिल्ली के साथ व्यापक साझेदारी चाहता है। प्रधानमंत्री ने वहां जो संवेदना प्रकट की और सहयोग के लिए हाथ बढ़ाया, बेल्जियम को इसकी नितांत आवश्यकता थी। उल्लेखनीय है कि बेल्जियम का एंटवर्प शहर वैश्विक हीरा व्यापार का सबसे बड़ा केन्द्र है जहां भारतीय व्यापारियों की संख्या अच्छी खासी है। इनसे मुलाकात भारत के लिए कई प्रकार के डिवीडेंड दे सकती है। हालांकि बेल्जियम के साथ भारत के व्यापार में भुगतान संतुलन भारत के पक्ष में नहीं है लेकिन फिर भी व्यापार की अपार संभावनाएं हैं लेकिन भारत आतंकवाद से पहले से ही पीडि़त है और बेल्जियम ही नहीं अब पूरा यूरोप आतंकवाद की गिरफ्त में आ चुका है। इस स्थिति में भारत और बेल्जियम व्यापार के साथ-साथ आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई के लिए बेहतर सहयोगात्मक रणनीति बना सकते हैं। जिस प्रकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ब्रसेल्स में भारतीय पक्ष को रखा उससे यह बात तो तय है कि भारत और ब्रसेल्स एक स्थायी एवं लम्बी साझेदारी करने की स्थिति में हैं। रही बात यूरोपीय यूनियन की तो जिस तरह से यूरोपीय यूनियन आर्थिक संकट से गुजर रहा है, उसमें उसे पूंजी के साथ-साथ बाजार की आवश्यकता भी है। दुनिया जानती है कि भारत एक उभरती हुयी ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसके पास एक विशाल बाजार और विशाल मध्यम वर्ग है जो मांग की वृद्धि के साथ सातत्यता को बनाए रखने में समर्थ है। स्वाभाविक है कि यूरोपियन यूनियन के लिए भारत हितकारी सिद्ध होगा ऐसी स्थिति में यूरोपियन यूनियन भी भारत की अनदेखी नहीं कर सकता। लेकिन अभी तक यूरोपीयन यूनियन पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर अपना नजरिया स्पष्ट नहीं कर पाया है जिससे भारत पीडि़त है। इसलिए भारत को चाहिए कि ईयू पर इस संदर्भ में कूटनीतिक व मनोवैज्ञानिक दबाव बनाए।
31 मार्च को प्रधानमंत्री ब्रसेल्स से वाशिंगटन के लिए रवाना हो गये जहां उन्हें चौथे परमाणु सुरक्षा सम्मेलन में शामिल होना है। इस सम्मेलन में कई राष्ट्र और वैश्विक संगठनों के प्रतिनिधि मौजूद रहकर परमाणु सुरक्षा के खतरे को लेकर महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा करेंगे और उन उपायों व तरीकों पर चर्चा करेंगे जिससे वैश्विक परमाणु सुरक्षा ढांचे को मजबूत बनाया जा सके। इसमें विशेषकर इस बात पर चर्चा अधिक केन्द्रित होगी कि 'नॉन स्टेट एक्टर्सÓ की पहुंच से परमाणु सामग्री को किस प्रकार सुरक्षित किया जा सके। वाशिंगटन से लौटते हुए प्रधानमंत्री रियाद (सऊदी अरब) पहुंचेंगे जिसके लिए सऊदी अरब के शाह सलमान बिन अब्दुल अजीज अल सउद पहले ही उन्हें निमंत्रण दे चुके हैं। सऊदी अरब कई दृष्टियों से भारत के लिए महत्वपूर्ण है। प्रथम-भारत-सऊदी अरब द्विपक्षीय व्यापार (2014-15 में) 39 अरब डॉलर के आसपास है। द्वितीय- वह भारत में कच्चे तेल का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। तृतीय-सऊदी अरब में 29.6 लाख से अधिक भारतीय नागरिक रह रहे हैं और वहां के प्रवासियों में सबसे अधिक संख्या भारतीयों की है। चतुर्थ-पाकिस्तान की परमाणु परियोजना से लेकर अन्य क्षेत्रों में सऊदी धन लगा हुआ है जो पाकिस्तान को इस रूप में मजबूत कर रहा है कि वह भारत को नुकसान पहुंचाने में कामयाब हो सके। यहां तक पाकिस्तानी आतंकवाद को भी लम्बे समय तक उससे मदद मिलती रही लेकिन अब वह आतंकवाद विरोधी मुहिम का हिस्सा है इसलिए नरेन्द्र मोदी-शाह सलमान वार्ता आतंकवाद विरोधी व्यवस्था को विस्तृत बनाने और ऊर्जा व्यापार के क्षेत्र में निवेश सहित कई मुद्दों पर सार्थक परिणामों वाली होगी, ऐसी उम्मीद की जा सकती है।

Updated : 2 April 2016 12:00 AM GMT
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