बोझ कम हो रहा है फिर भी परेशान हो रहे हैं पार्षद

जल व्यवस्था प्रशासन के हाथों में जाने से भड़के पार्षद

शिवपुरी। शहर के विभिन्न वार्डों के प्रभावित इलाकों में जल का परिवहन अब नगरपालिका के अधिकारियों और कर्मचारियों के जिम्मे रहेगा तथा पार्षद अपने वार्ड में मॉनीटरिंग का कार्य करेंगे और देखेंगे कि उनके वार्ड में ठीक ढंग से पेयजल सप्लाई हो रही है अथवा नहीं। इस तरह का निर्णय जिले की विधायक और प्रदेश सरकार की मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया के निर्देश के बाद प्रशासन और नगर पालिका ने लिया है।

इस नई व्यवस्था से पार्षदों का बोझ कम हो रहा है, लेकिन आश्चर्य जनक रूप से इसके बाद भी वह परेशान और व्यथित नजर आ रहे हैं। इसी गुस्से में भाजपा पार्षदों ने जहां मुख्य नगर पालिका अधिकारी रणवीर सिंह को उनके कार्यालय में घेर कर खरी खोटी सुनाई। वहीं कुछ कांग्रेस पार्षदों ने अपनी बैठक में नपाध्यक्ष मुन्नालाल कुशवाह और उपाध्यक्ष अन्नी शर्मा से कहा कि जल व्यवस्था पार्षदों के हाथों से जानी नहीं चाहिये। नहीं तो हम इस्तीफा दे देंगे। सवाल यह है कि बोझ कम होने के बाद भी पार्षद क्यों बौखला रहे हैं? नई व्यवस्था लागू करने से पार्षदों की कार्यप्रणाली अवश्य शंका के घेरे में आ गई है और यह सवाल उठने लगा है कि यदि ठीक ढंग से वार्डों में पेयजल की सप्लाई होती और पानी को भ्रष्टाचार तंत्र में नहीं बदला जाता तो क्यों जल व्यवस्था उनसे छीनी जाती।

तत्कालीन नगरपालिका अध्यक्ष रिशिका अष्ठाना के कार्र्यकाल से वार्डों में पेयजल परिवहन की व्यवस्था पार्षदों के हवाले की गई और मुन्नालाल कुशवाह ने भी इस व्यवस्था को कायम रखा। सोच शायद यह रही होगी कि पार्षद अपने वार्ड के भूगोल से परिचित हैं और उन्हें पता है कि कहां पेयजल संकट है और कहां नहीं। इस तरह से प्रभावित इलाकों में वह पेयजल की सप्लाई दे सकते हैं। लेकिन इसके बाद भी वार्र्डों में पेयजल सप्लाई के नाम पर लाखों रूपए फूंकने के बाद भी पेयजल संकट जारी रहा। यह आरोप लगाता रहा कि पार्षद अपने विरोधियों की अनदेखी कर उनके क्षेत्र में पानी का बटबारा नहीं कर रहा। यह आरोप भी लगा कि पार्षद पेयजल सप्लाई करने वाले टेंकर ठेकेदारों से सांठ गांठ कर भ्रष्टाचार में अपने हाथ रंग रहे हैं। लेकिन हद तो तब हो गई जब कुछ पार्षदों ने अपने खुद के टेंकर जल सप्लाई में लगा दिए।
नगरपालिका एक टेंकर पर प्रति चक्कर 190 रूपए का भुगतान करती है और 24 घंटे में आठ टैंकरों का भुगतान प्राप्त किया जा सकता है।

इस तरह से प्रतिमाह पेयजल सप्लाई के नाम पर एक टैंकर को 45 हजार रु. का भुगतान होता है। जिस वार्ड में दो या इससे अधिक टैंकर लगे हैं उनका भुगतान भी उसी अनुपात में बढ़ जाता है। इसी गणित से पिछली गर्मियों में एक-एक वार्ड में दो-दो तीन-तीन टैंकर लगाए गए लेकिन फिर भी कई वार्डों में जनता प्यासी रही। यह तय है कि ईमानदारी से पेयजल का परिवहन किया जाए तो 24 घंटे में एक टैंकर छह चक्कर से अधिक नहीं लगाता। इस तरह से दो चक्करों का पैसा सीधे जेब में जाता है। कुछ पार्षद तो आठ चक्कर में से मुश्किल से दो, तीन, चार चक्कर ही लगवाते हैं। इससे स्पष्ट है कि पेयजल परिवहन कतिपय पार्षदों की अवैध कमार्ई का एक बड़ा साधन है।

इसी कारण अवचेतन में वे पार्षद सिंध जलावर्धन योजना के क्रियान्वयन के विरोधी हैं, यदि सिंध का पानी शिवपुरी आ गया तो फिर उनकी उस अवैध कमाई का क्या होगा? पानी जब सिर से ऊपर निकल गया और करोड़ों रुपया पेयजल सप्लाई के नाम पर खर्च करने के बाद भी जनता प्यासी रही तो सोच समझ कर ठीक निर्णय लिया गया कि पार्षदों के हाथों से इस व्यवस्था को खींच कर नपा प्रशासन के हाथों में सौंपा जाए और पार्षदों को मॉनीटरिंग का काम दिया जाए। आखिर इस नई व्यवस्था में आपत्ति क्या है?

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