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दुर्दशा का शिकार केन्द्रीय पुस्तकालय

दुर्दशा का शिकार केन्द्रीय पुस्तकालय
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जिलाधीश को देखने की फुर्सत नहीं, 11 माह से पद रिक्त, प्रशासन बेखबर

ग्वालियर। शहर के ऐतिहासिक स्थानों को देखने के लिए देश-विदेश से ख्याति प्राप्त लोग यहां आते हैं लेकिन ग्वालियर के जिलाधीश को इन स्थानों से कोई लगाव नहीं है। स्थिति यह है कि जिलाधीश डॉ.संजय गोयल ने हेरिटेज में शामिल महाराज बाड़ा स्थित मध्य भारत की 88 वर्ष पुरानी सबसे बड़े शासकीय केन्द्रीय पुस्तकालय को अब तक नहीं देखा है। पुस्तकालय में 11 माह से क्षेत्रीय ग्रंथपाल का पद रिक्त होने के सवाल पर उनका कहना है कि यह शासन का काम है। हम फिर से पद भरने के लिए पत्र लिख देंगे।

प्रशासन की बेरुखी और उदासीनता के कारण ये प्राचीन पुस्कालय अब अपना आस्तिव खोता नजर आ रहा है। उल्लेखनीय है कि पुस्तकालय को संभालने के लिए पिछले 11 माह से क्षेत्रीय ग्रंथपाल का पद रिक्त है। ये हैरत की बात है।कि लगभग एक लाख किताबों के खजाने को संभालने के लिए यहां का स्टॉफ ही अपनी मेहनत और समर्पित भाव से लगा हुआ है।

इस पुस्तकालय की स्थापना वर्ष 1928 में तत्कालीन महाराज माधौराव सिंधिया ने शहर के लोगों को पठन-पाठन में रुचि पैदा करने के लिए की थी। इससे पहले इस भवन में न्यायालय संचालित था। समय के साथ-साथ शासकीय केन्द्रीय पुस्तकालय का रूप विस्तारित होता गया,आज इस पुस्तकालय में सभी विषयों की लगभग एक लाख पुस्तकों का संग्रह है। बताया जाता है कि राजमाता विजयाराजे सिंधिया और पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी भी किताबों में रुचि होने के कारण अध्ययन के लिए यहां आते थे।

अब तक क्षेत्रीय ग्रंथपाल का पद रिक्त
जून 2015 में क्षेत्रीय ग्रंथपाल निरंजन सिंह सेवानिवृत हुए थे। उसके बाद से अब तक प्रशासन ने इस पद पर किसी की नियुक्ति नहीं की है। तत्कालीन जिलाधीश पी. नरहरि ने क्षेत्रीय ग्रंथपाल का प्रभार जिला परियोजना समन्वय अधिकारी केसी शुक्ला को सौंपा था। इसके साथ ही नये क्षेत्रीय ग्रंथपाल की नियुक्ति के लिए भी कार्रवाई के निर्देश दिए थे। इस बीच उनका स्थानांतरण इंदौर हो गया। उनके बाद से अब तक क्षेत्रीय ग्रंथपाल के रिक्त पद को न भरना प्रशासन की उदासीनता का प्रतीक है।

मात्र 7 कर्मचारियों के भरोसे है पुस्तकालय
लापरवाही का आलम ये है कि कुछ वर्ष पूर्व शासकीय केन्द्रीय पुस्तकालय को मध्य भारत के सबसे बड़े पुस्तकालय का पुरस्कार कोलकाता में मिला था। अब ये हालत है कि सिर्फ सात कर्मचारियों के भरोसे ही केन्द्रीय पुस्तकालय संचालित हो रहा है। जबकि वर्तमान में यहां 10 कर्मचारियों के खाली रिक्त पदों को भरने की आवश्यकता है। इनमें ग्रंथपाल और बुकलिफ्टर की सबसे ज्यादा आवश्यकता है। जिन्हें किताबों की पूरी समझ और भाषा पर अच्छी पकड़ हो।

गरीब विद्यार्थियों के लिए वरदान
शहर के गरीब और लाचार विद्यार्थियों के अध्ययन के लिए सालों से शासकीय केन्द्रीय पुस्तकालय वरदान साबित हो रहा है। नाममात्र की सदस्यता पर पुस्तकालय में सुबह से लेकर शाम तक महंगी किताबों को खरीदने में असमर्थ कॉलेज के छात्र-छात्राएं स्वस्थय माहौल में अध्ययन प्राप्त कर रहे हैं। लेकिन महत्वपूर्ण पद रिक्त होने के कारण उन्हें पुस्तकों से सम्बन्धित महत्वपूर्ण जानकारी नहीं मिल पाती।

प्रशासन का ढुलमुल रवैया
जिला प्रशासन के अधिकारियों का रवैया हमेशा से ही शासकीय केन्द्रीय पुस्तकालय के प्रति लापरवाही भरा रहा है। पुस्तकालय में क्या कमी है,स्टॉफ की क्या परेशानी है,बिजली ,पानी से जिला प्रशासन को कोई सरोकार नहीं है। सरोकार है तो सिर्फ पुस्तकालय के वित्त मामले से। जैसे पार्किंग ठेके से मिली राशि का,यहां से प्राप्त आय का। जबकि यहां किताबों के लिए कोई बजट नहीं है। यहां पर कार्ररत लोग ही समर्पित भाव से विद्यार्थियों को गाइड कर रहे हैं। भोपाल से किसी तरह बजट स्वीकृत कराते हैं। ताकि उन्हें कोई परेशानी न हो। इस बार भी पौने दो लाख की किताबों की खरीदी की गई है।

ये है वर्तमान स्टाफ
पद नाम
एकाउंट हरीश शर्मा
कम्प्यूटर प्रोग्रामर विवेक सोनी
सहायक वर्ग 2 अनीता ओडिय़ा
सहायक वर्ग 2 सरोज अतरोलिया
सहायक वर्ग 3 नीलम बाजपेयी
सहायक वर्ग 3 मुनीष गौतम
सहायक वर्ग 3 सुरेश मिश्रा
सहायक वर्ग 3 बंसत राय

जिलाधीश नरहरि ने शुरू कराया था कॉम्पटीशन कॉर्नर
वर्ष 2012 में तत्कालीन जिलाधीश पी. नरहरि ने केन्द्रीय पुस्तकालय में आकर गरीब विद्यार्थियों को महंगी कोचिंग की फीस न भर पाने के कारण प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी के लिए कॉम्पटीशन कॉर्नर का शुभारंभ कराया था। इसी का परिणाम है कि बीते सालों में मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग की परीक्षा में शहर के विद्यार्थियों ने पुस्तकालय में घंटों तक शिक्षा प्राप्त कर अपना चयन पक्का किया। वर्तमान में स्थिति यह है कि कॉम्पटीशन कॉर्नर में लगभग 700 पंजीयन हो चुके हैं। स्थानाभाव के कारण फिलहाल 150 छात्र-छात्राएं यहां विभिन्न परीक्षाओं की तैयारी करते हैं। लेकिन क्षेत्रीय ग्रंथपाल ना होने के कारण यहां के स्टाफ को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

क्या कहते हैं जिलाधीश

पिछले 11 माह से क्षेत्रीय ग्रंथपाल का पद रिक्त होने के सवाल पर जिलाधीश डॉ. गोयल का कहना है कि नियुक्ति करना शासन का काम है, मैं समीक्षा बैठक में इस सम्बन्ध में शासन को पत्र लिखूंगा। एक अन्य प्रश्र के जवाब में उनका आश्चर्यजनक जवाब था कि वे यहां आने के बाद अब तक पुस्तकालय नहीं गए। एक लाख किताबें हैं, क्षेत्रीय ग्रंथपाल का पद महत्तवर्पूण होता है, इस सवाल पर उनका कहना था कि श्री नरहरि तो इमारत को कंडम घोषित कर गए थे। पहली प्राथमिकता पुस्कालय के शिफ्टिंग की है। आप इसकी जानकारी लोकनिर्माण विभाग से ले सकते हैं।

Updated : 27 March 2016 12:00 AM GMT
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