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दवाओं के अत्यधिक इस्तेमाल से बढ़ रही है बीमारी : गोखले

दवाओं को लेकर विज्ञान व स्वास्थ्य मंत्रालयों में होना चाहिए तालमेल

झांसी। सीएसआईआर के इंस्टीटयॅूट आफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलॉजी के डायरेक्टर डा. राजेश एस गोखले ने कहा कि दवाओं के अत्यधिक इस्तेमाल के कारण देश में एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी बीमारी दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। आने वाले दिनों में हालात और गंभीर होने के आसार हैं। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि विभिन्न रोगों के उपचार में काम आने वाली दवाओं के प्रयोग के संबंध में केंद्रीय स्वास्थ्य और विज्ञान तकनीकी मंत्रालयों के बीच पारस्परिक समन्वय और वैचारिक तालमेल होना चाहिए, ताकि देश के लोगों को सही दवा उचित मात्रा में मिले, लेकिन अपने देश में अभी तक इन दोनों मंत्रालयों के बीच उचित तालमेल नहीं है। डा. गोखले बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के गांधी सभागार में जीनोमिक्स एंड प्रोटियोमिक्स इन बायो मेडिकल रिसर्च विषय पर आयोजित चार दिवसीय कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में जुटे शोधार्थियों, विशेषज्ञों और विद्यार्थियों को संबोधित कर रहे थे।
इंस्टीटयूट ऑफ बायोमेडिकल साइंस और इन्नोवेशन सेंटर के तत्वावधान में आयोजित कार्यशाला में डा. गोखले ने टीबी के उपचार में प्रयुक्त होने वाली दवाओं का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें से अधिकांश आज के परिवेश में कारगर नहीं रह गई हैं, लेकिन फिर भी स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी इनका प्रयोग रोगियों के उपचार में कर रहे हैं। इसी कारण अब टीबी की बीमारी और जटिल रूप धारण कर रही है। उन्होंने अमेरिका में प्रकाशित एक खबर का उल्लेख भी किया, जिसमें सुपर चाज्र्ड टीबी को मेड इन इंडिया बताया गया है। डा. गोखले ने कहा कि दवाओं के संबंध में सही नीति न होने के कारण निर्माता अपने लाभ के लिए अंधाधुंध उत्पादन कर रहे हैं। चिकित्सक भी उसे ही रोगियों के उपचार के लिए लिखे जा रहे हैं। समाज की सोच में इस तरह बदलाव लाना होगा कि लोग नए विचार और उपाय को आत्मसात करें। इससे पहले उन्होंने जीनोम साइंस, शेपिंग द लाइफ ऑफ टुमारो विषय को पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से रेखांकित किया। उन्होंने डीएनए की संरचना, जीनोम सिक्वेंसिंग और जीनोम रिपेयर मैकेनिज्म समेत विविध विषयों के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी।
डा. गोखले ने कहा कि अगला दशक जीनोमिक्स का ही होगा। लोग उन्हीं दवाओं का प्रयोग करेंगे जो वास्तव में उनके रोगों का सही ढंग से उपचार कर सके। उन्होंने विकास के लिए तीन बातें महत्वपूर्ण बताईं। पहली बात यह कि किसी समस्या को सरलता से सोचा और समझा जाए। दूसरी अहम बात यह कि सही गति से उस समस्या के निराकरण के लिए काम किया जाए। तीसरा यह कि उत्कृष्ट प्रयास किए जाएं। उन्होंने विवि में अच्छे माहौल और संसाधनों की उपलब्धता के लिए कुलपति को बधाई भी दी। उन्होंने लोगों के प्रश्नों के उत्तर भी दिए।
कार्यशाला के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कुलपति और हिंदी के विद्वान प्रो. सुरेंद्र दुबे ने कहा कि यदि विद्यार्थी अपनी मातृभाषा के माध्यम से शोध करें तो और बेहतर नतीजे प्राप्त होंगे। उन्होंने चिंता भरे लहजे में कहा कि विज्ञान के विद्यार्थियों की बहुत अधिक ऊर्जा अभी अनुवाद में ही खप जाती है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी के पैरोकारों ने दुनिया भर में यह भ्रम फैलाया कि विज्ञान की भाषा अंग्रेजी है जो कि निराधार है। जापान, चीन, फ्रांस और जर्मनी के लोगों ने अपनी भाषाओं में ही अपने देश में विज्ञान को नए आयाम दिए हैं। अपने देश में इस तथ्य पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। प्रो. दुबे ने जापान का उदाहरण दिया कि वहां अंग्रेजी बोलने पर पानी का एक गिलास भी देने वाला कोई नहीं मिलेगा। ऐसा नहीं कि वहां के लोग अंग्रेजी नहीं जानते हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि कार्यशाला देश और समाज के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
इस अवसर पर विज्ञान संकाय के अधिष्ठाता प्रो. एसपी सिंह, प्रो. जीएल शर्मा, प्रो. जीपी राय ने भी विचार रखे। इन सभी ने कार्यशाला की उपयोगिता बताई। शुरुआत में अतिथियों ने मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण किया। साथ ही दीप प्रज्ज्वलित किया गया। विद्यार्थियों ने सरस्वती वंदना पेश की। अतिथियों का गरमजोशी से स्वागत किया गया। इन सभी को स्मृति चिह्न भी भेंट किए गए। आयोजन समिति के सचिव डा. रामवीर सिंह ने सभी अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया। उदघाटन सत्र में कुलानुशासक प्रो. एमएल मौर्य, प्रो. वीके सहगल, प्रो. वीपी खरे, डा. लवकुश द्विवेदी, डा. बलवीर सिंह, शिवशंकर यादव, मेहर प्रकाश, डा. पूनम शर्मा, डा. इकबाल खान, डा. पूनम मेहरोत्रा, डा. गजाला, डा. डीके भट्ट, डा. सौरभ श्रीवास्तव, उमेश शुक्ल, सतीश साहनी समेत अनेक लोग उपस्थित रहे।
इन्नोवेशन सेंटर में चले द्वितीय सत्र में एनबीआरआई, लखनऊ की डा. मनीषा मिश्रा ने मेथडोलाजी आफ प्रोटियोमिक्स विषय पर विचार रखे। उन्हें स्मृति चिह्न देकर सम्मानित भी किया गया। इससे पहले डा. जीएल शर्मा ने भी विचार रखे। बाद में सभी प्रतिभागियों ने इन्नोवेशन सेंटर में प्रायोगिक गतिविधियों में हिस्सा लिया।

Updated : 18 March 2016 12:00 AM GMT
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