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मूक-बधिरों को आवाज़ देती ग्वालियर की बेटी

मूक-बधिरों को आवाज़ देती ग्वालियर की बेटी
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“मूक-बधिरों को आवाज़ देती ग्वालियर की बेटी”

*नवीन सविता

ब हम अपने इरादों को साथ लेकर, चुनौतियों से जूझते हुए आगे बढऩे लगते हैं तो राहे स्वत: ही बनने लगती है। स्वदेश स्टोरी के माध्यम से हम आपको बताना चाहते है कि कैसे ग्वालियर की बेटी ने मूक-बधिरों की जिंदगी को संवारने का बीड़ा उठाया है।

मेघा गुप्ता
ग्वालियर निवासी 23 वर्षीय युवती मेघा गुप्ता, जिसके माता-पिता न तो सुन सकते है और न ही बोल सकते हैं। मेघा अपने माता-पिता के न बोलने और न ही सुन सकने की समस्या से हर दम जूझती रही है, और अपने माता-पिता की परेशानी को बेहद करीब से देखते हुए वह बड़ी हुई, और जब समझ आई तो देखा कि उनके माता-पिता कितनी कठिन जिंदगी जी रहे है। अपने माता-पिता की परेशानी को देखते हुए मेघा के मन में यह विचार आया कि उनके माता-पिता जैसे ही न जाने कितने ऐसे लोग हैं जो इस समस्या से जूझ रहे हैं। इसी समस्या को देखते हुए मेघा ने सोचा कि क्यों न मूक-बधिरों के लिए काम किया जाए।
मेघा ने स्वदेश स्टोरी को बताया कि,
बात 2010 की है जब मैं 18 वर्ष की थी, मेरे पिता ग्वालियर डेफ फ्रेंडशिप क्लब के प्रेसिडेंट थे। उन्होंने मूक-बधिरों के लिए शहर के एक निजी विद्यालय में एक दिवसीय वर्कशॉप का आयोजन किया था। उसमें सम्मिलित होने का अवसर मुझे भी मिला, वहां पर बहुत सारे मूक-बधिर आये हुए थे। उनसे मैं सांकेतिक भाषा में बात कर रही थी, चूंकि घर पर भी मैं अपने माता-पिता से सांकेतिक भाषा में बात करती थी, तो इसका मुझे अनुभव था। कार्यक्रम में कोई भी हियरिंग इंटरप्रेटर (अनुवादक) नहीं था जो कार्यक्रम में उपस्थित हियरिंग व्यक्तियों से संवाद कर सके। वहां पर उपस्थित अन्य लोगों ने मुझे बात करते हुए देखा तो अचंभित रह गए कि कैसे एक युवती सांकेतिक भाषा का उपयोग कर मूक-बधिरों को समझाने के लिए प्रयास कर रही है। वहां पर उपस्थित पदाधिकारियों ने मेेरे पापा से बोला कि मेघा को इस कार्यक्रम के लिए इंटरप्रेटर बना देते है। कार्यक्रम के लिए इंटरप्रेटर की आवश्यकता भी थी तो पापा तैयार हो गये, और मैंने-
"बिना किसी तैयारी के 4 घंटे तक वर्कशॉप में 300 डेफ के लिए इंटरप्रेटर की भूमिका निभाई"
सभी ने मुझे प्रोत्साहित किया, और कहा कि आपने अपनी भूमिका का निर्वहन बहुत अच्छे से किया ये सुन कर मुझे बहुत खुुशी हुई।
मेघा के माता-पिता, मेघा के भविष्य की चिंता में रहते थे, कि बेटी अच्छी सी नौकरी करे जिससे उसका भविष्य सुनिश्चित हो जाये, मेघा ने माता-पिता के कहने पर बैंक में नौकरी के लिए परीक्षा की तैयारी करना शुरू कर दी। लेकिन मूक-बधिरों के लिए कुछ करने का जज्बा मेघा के मन-मस्तिष्क में हमेशा रहता था। मेघा बैंक की तैयारी करने के साथ-साथ चिंतन भी करती रही कि कैसे मूक-बधिरों के लिए काम की शुरुआत की जाए। सामान्यत: अपने भविष्य की चिंता में डूबे रहने वाली मेघा का चयन IBPS क्लर्क के लिए हो गया।
अब मेघा के लिए दो रास्ते थे या तो घर वालो की मर्जी से चल कर बैंक की नौकरी करूं और अपना भविष्य बनाऊं या फिर मूक-बधिरों के लिए काम करू। काफी दिनों तक सोचने के बाद मेघा ने फैसला किया कि बैंक ज्वाइन न करके मूक-बधिरों के लिए काम करुँगी और इसके लिए मेघा ने विस्तृत कार्ययोजना बनाई। माता -पिता के मना करने के बावजूद मेघा ने इस ओर कदम बढ़ा दिए और मूक-बधिरों की सेवा करने की ठानी...
मेघा मूक-बधिरों के लिए अच्छे कार्य करने के लिए एक कदम और आगे बढ़ी,
वर्ष 2012 में ग्वालियर डेफ फ्रेंडशिप क्लब के कुछ पदाधिकारियों के साथ मिल कर मध्य-प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के मूक-बधिरों के लिए 3 दिवसीय कार्यशाला के आयोजन की योजना तैयार की, सब कुछ तय होने के बाद मेघा को उम्मीद थी कि आयोजन सफल होगा। लेकिन एक डर यह भी था कि इतने बड़े आयोजन को संभालेंगे कैसे? इस बात को लेकर मेघा हमेशा चिंता में रहती थी कि पदाधिकारी तो मूक-बधिर है और वो सामान्य व्यक्तियों के साथ कैसे संवाद कर पाएंगे। लेकिन आयोजन की रुपरेखा को मूर्त रूप देने के लिए मेघा के सारथी बने प्रतीक गुप्ता, नम्रता गुप्ता और कुछ सामाजिक संस्थायें जिनके सहयोग से लक्ष्मीबाई इंस्टिट्यूट ऑफ फिजिकल एज्यूकेशन, ग्वालियर में 1000 मूक-बधिरों के कार्यशाला का आयोजन सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। जिसमें मेघा ने कार्यक्रम के प्रबंधन के साथ-साथ समस्त मूक-बधिरों की इंटरप्रेटर भी बनी।
मेघा ने बताया कि,
"इतना अच्छा कार्यक्रम होने के बाद भी मेरे पापा नहीं चाहते थे कि में सम्पूर्ण रूप से मूक-बधिरों के लिए काम करूं"
लेकिन मैं अपनी जिद पर अड़ी हुई थी, और तभी मैंने अपनी बी. एस. सी. की पढ़ाई के साथ-साथ मुंबई के अली यावरजंग नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर हियरिंग इम्पेयर्ड से सांकेतिक भाषा (साइन लैंग्वेज) का कोर्स करने के लिए पापा को बताया लेकिन वह राजी नहीं हुए, तभी मैंने अपने सहयोगियों के माध्यम से पापा को मनाया और मुझे
"साइन लैंग्वेज का कोर्स करने के लिए घर से अनुमति मिल गई। इसलिए यह दिन मेरे लिए बहुत खुशी वाला दिन था"
वर्ष 2013 में सांकेतिक भाषा (साइन लैंग्वेज) का कोर्स करने के बाद मेघा ने ग्वालियर आकर सबसे पहले एक सर्वे किया जिसमें यह जानने की कोशिश की गयी कि ग्वालियर में ऐसे कितने मूक-बधिर हैं जो साइन लैंग्वेज का कोर्स करना चाहते है, यह जानने के बाद मेघा कुछ समाज सेवियों से मिली और उनके सहयोग से मूक-बधिरों को नि:शुल्क सांकेतिक भाषा (साइन लैंग्वेज) की शिक्षा देने की कार्ययोजना बनाई। मेघा ने मूक-बधिरों के लिए अपने घर से
शुरूआत
की, साथ ही उनके लिए डेफ एजुकेशन एण्ड मल्टी टास्क सोसाइटी नामक संस्था का गठन किया।
मेघा गुप्ता घर पर मूक-बधिरों को सांकेतिक भाषा की शिक्षा प्रदान करती हुई

उसके बाद मेघा ने मूक-बधिरों के लिए कुछ और अच्छा करने की सोची। मेघा के मन में आया कि क्यों न मूक-बधिरों को पर्यटन स्थलों (टूरिस्ट प्लेसेस) की जानकारी एवं एक टूरिस्ट गाइड की ट्रेनिंग दी जाए जिससे पर्यटन स्थलों (टूरिस्ट प्लेसेस) पर मूक-बधिरों को नौकरी मिल सके। इसी को ध्यान में रखते हुए मेघा ने ग्वालियर शहर के जयविलास पैलेस (संग्रहालय) में 40 दिवसीय ट्रेनिंग प्रोग्राम का आयोजन किया जो कि 9 अप्रैल 2013 से शुरू होकर 20 मई, 2013 तक चला,
उद्देश्य
था मूक-बधिरों को नौकरी मुहैया करवाना।
ट्रेनिंग होने के उपरांत जैसा मेघा ने सोचा था वैसा नहीं हुआ और मूक-बधिरों को किसी भी पर्यटन स्थल पर नौकरी नहीं मिली। इस वजह से मेघा को बहुत हताशा हुई। लेकिन मेघा ने सकारात्मकता और तत्परता दिखाते हुए हताशा को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया, मेघा ने अपने स्तर पर मूक-बधिरों को नौकरी दिलवाने की कोशिश की और इसमें भी सफलता नहीं मिली। मेघा ने फिर भी हिम्मत नही हारी, और अपनी कार्ययोजना के तहत पूरे
समर्पण
के साथ संस्था में रोजगारोन्मुखी (जॉब ओरिएंटेड) कोर्स शुरू किये जैसे -
1. कंप्यूटर कोर्स
2. मोबाइल रिपेयरिंग कोर्स
3. वोकेशनल कोर्स- डांस, पेंटिंग , आर्ट वर्क सम्बंधित
4. प्लेग्रुप क्लासेस , इत्यादि
वर्तमान समय में मेघा द्वारा संस्था में छात्रों की कार्यकुशलता को निखारने के लिए निरंतर कार्य किया जा रहा है। यह संस्था जब शुरू हुई थी तब इसमें 15 छात्र थे और वहीं आज संस्था में लगभग 130 छात्रों को मेघा अपनी सेवाएं प्रदान कर रही है।
संस्था में छात्रों की संख्या का ग्राफ

मेघा ने बताया कि,

इतना सब कुछ करने के बाद भी जिस हिसाब से मूक-बधिरों को नौकरी मिलनी चाहिए वो नहीं मिल रही है, संस्था में लगभग 20 ऐसे छात्र है जो नौकरी कर सकते है। लेकिन कोई भी संस्थान उन्हें नौकरी नहीं दे रहे हैं।

मेघा कहती है,

"प्रयास करते हुए थोडा संयम, समर्पण और लगातार मेहनत करें तो कामयाबी जरूर मिलेगी"

*****


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Updated : 18 March 2016 12:00 AM GMT
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