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मैं रहूं या ना रहूं पर कला जिंदा रहे

पुलिस की नौकरी से अधिक दिया कला को महत्व, शिल्पकार गोविंद सिंह से

स्वदेश से की बातचीत
ग्वालियर। कबाड़ से आकर्षक प्रतिमाएं उकेरने वाले ग्वालियर के शिल्पकार गोविंद सिंह नागवंशी को यह कला अपनी दादी और पिता से विरासत में मिली है। वे इन दिनों ग्वालियर व्यापार मेले के झूला सेक्टर के समीप शिल्पग्राम मेले में पेपरमेशी आर्ट की ईकोफ्रेंडली प्रतिमाएं, पानी के झरने समेत अन्य सामग्री बेचने के लिए आए हैं। पुलिस की नौकरी छोड़ कला के इस क्षेत्र में काम करने वाले श्री नागवंशी का कहना है मैं रहूं या ना रहूं पर कला जिंदा रहना चाहिए।1994 में ग्वालियर में आईजी एनके सिंह ने पेपरमेशी शिल्पकार नागवंशी की कला से प्रभावित होकर उन्हें आरक्षक बना दिया। इसके पीछे कैदियों को पेपरमैशी की कला का प्रशिक्षण दिलाना था। 2006 तक सबकुछ ठीक चला लेकिन कला को देश के कोने-कोने तक पहुंचाने के जुनून में इस शिल्पकार ने पुलिस की नौकरी छोड़ दी। पिता स्टील फाउंड्री में नौकरी करने के साथ ही क्ले आर्ट मॉडल बनाते थे। गोविंद ने उनसे मॉडल बनाना सीखा और कला को जमाने के समय के हिसाब से बदल दिया।
बालाजीधाम में बना है 144 फुट का झरना
शिल्पकार गोविंद नागवंशी ने बताया कि बहोड़ापुर स्थित बालाजी धाम मंदिर में शनिदेव दरबार में लगभग 144 फुट का झरना बनाया है। उन्होंने बताया कि उन्होंने विभिन्न स्थानों पर जाकर लगभग 50 से 70 हजार तक के झरने बनाए हैं।
झरना बनाने के लिए श्री नागवंशी लोहे के तार, सीमेंट, सरिया, पत्थर के टुकड़े, ईंट तथा रंग आदि का उपयोग करते हंै। इन झरनों को बनाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण वस्तु प्रकृति प्रदत्त वे छोटे-छोटे पत्थर होते हंै जो घने जंगलों से बीन कर लाए जाते हंै। उन्होंने बताया कि सबसे पहले इन्हें तेजाब से धोया जाता है फिर उन्हें एमसील या सीमेंट से जोड़कर मनचाहा आकार दिया जाता है, इसे चलित अवस्था में लाने के लिए एक इलेक्ट्रोनिक मोटर का उपयोग किया जाता है। यह झरना इस प्रकार बनाया जाता है कि इसमें पानी की बर्बादी नहीं होती।
कल्पना पर आधारित है पूरा काम
स्वदेश से चर्चा में गोल पहाडिय़ा, तिघरा रोड निवासी पेपर मैशी शिल्पकार एवं झरना कलाकार, गोविंद सिंह ने बताया कि वह पूरा काम अपनी कल्पना शक्ति से करते हैं, क्योंकि यह कला कल्पना पर आधारित है। इसके लिए वह सारी आवश्यक सामग्री एकत्र करके इसे कल्पनाओं द्वारा आकार देते हंै। फिर इसे पेपर पर स्कैच करते हैं व जिस जगह झरना बनवाना होता है वह ग्राफ डाला जाता है। नक्शा तैयार होने के बाद इसे साकार करने का कार्य किया जाता है।
लागत नहीं, मेहनत की होती है कीमत
श्री नागवंशी ने बताया कि झरना बनाने में लागत तो न के बराबर होती है, क्योंकि इसमें कोई भी ऐसा सामान नहीं लगता है जो बहुत अधिक महंगा हो। उन्होंने बताया कि एक झरना बनाने में लगभग 15 से 20 दिन या उससे अधिक भी समय लग सकता है। श्री नागवंशी ने बताया कि उनके द्वारा बनाए झरनों की कीमत लगभग दो हजार से लेकर दस हजार रूपए तक है।
क्या है पेपर मैशी
पेपर मेशी भारत में प्राचीन पारंपरिक कला है। इसमें लुगदी, खडिय़ा, धावड़े का गोंद, मुल्तानी मिट्टी, फेविकोल, चॉक पाउडर, इमली बीज, उड़द दाल, मैथीदाना पाउडर आदि मिलाकर मूर्तियां बनाई जाती हैं। ये मूर्तियां पर्यावरण सुधार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। नागवंशी के स्टॉल पर टेबल-लैंप, फ्लॉवर पॉट, शो-पीस, पानी के झरने, सुपारी-अखरोट पर श्रीगणेश प्रतिमाएं आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं।

Updated : 7 Feb 2016 12:00 AM GMT
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