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भिण्ड-इटावा रेललाइन के शुभारंभ से चम्बल विकास की ओर

भिण्ड| दिसंबर 1899 को ब्रिटिश साम्राज्य के प्रभावी प्रशासक भारत के गवर्नर जनरल लार्ड कर्जन ने ग्वालियर से भिण्ड छोटी रेल लाइन का शुभारंभ किया। यह भिण्ड के लिए एक बहुत बड़ी घटना थी। उन दिनों में देश में ही नहीं विश्व के कई देशों में रेललाइन नहीं थी। इस रेल लाइन ने हलचल तो पैदा की परंतु अंधे मोड़ पर खत्म होने वाली रेल लाइन भिण्ड के विकास का माध्यम नहीं बन सकी। आजादी के बाद जब सब जगह भारत में रेल लाइन बिछाने का काम चल रहा था तब 1985 में गुना-इटावा रेल लाइन परियोजना पर कार्य शुरू हुआ। इस परियोजना में रेल लाइन की दूरी लगभग 350 किमी है जिसे लगभग 600 करोड़ रुपए की धनराशि से पूरा किया गया।

इस परियोजना में भी भिण्ड राजनीतिक उपेक्षा का शिकार रहा जहां पूरी योजना भिण्ड-इटावा के दुर्गम क्षेत्र से शुरू होना थी इसकी शुरुआत 31 साल पहले गुना से की गई। शिवपुरी से ग्वालियर और ग्वालियर से भिण्ड पुरानी छोटी लाइन होने के कारण इस परियोजना पर काम तेज हो सकता था। भिण्ड-इटावा की 35 किमी की दूरी को रेललाइन से तय करने में 15 वर्ष से अधिक लगे।
भिण्ड-इटावा रेल सेक्शन पूरा होने पर ही गुना-इटावा रेल लाइन परियोजना की पूर्णता हुई है। इस रेल लाइन का लोकार्पण निश्चित रूप से भारतीय रेल को एक ऐसा मार्ग देता है जो कई शहरों की दूरी को कम कर मुख्य मार्गों का यातायात दबाव कम करेगा। भिण्ड एक ओर इटावा से जुड़ रहा है तो दूसरी ओर उदी जंक्शन के माध्यम से इसका संपर्क आगरा, दिल्ली, अहमदाबाद, जयपुर और अजमेर से होगा। दूसरी तरफ पूर्व की ओर कानपुर, लखनऊ, बनारस और कलकत्ता से भिण्ड जुड़ जाएगा और उत्तर की दिशा में नएं निर्माणाधीन इटावा-मेनपुरी, एटा, अलीगढ़ एवं बरेली से आवागमन होगा जो टुंडला पर रेलगाडिय़ों के दबाव को कम करेगा। दक्षिण की ओर इटावा-इन्दौर रेल लाइन, महू-खंडवा के चौड़ीकरण से सीधा मुंबई से जुड़ जाएगा। भिण्ड, ग्वालियर के लोगों को मुंबई जाने के लिए भोपाल-इटारसी का चक्कर नहीं लगाना होगा।


भिण्ड जिले के विकास का मार्ग बुंदेल खण्ड के पिछड़ेपन से भी अवरुद्ध है। बुंदेल खण्ड मप्र के हिस्से में ललितपुर, टीकमगढ़, छतरपुर, खजुराहो, पन्ना, रीवा, सीधी, सिंगरौली के लिए रेल लाइन विकास से भविष्य उज्ज्वल है। परंतु महोबा-भिण्ड वाया उरई रेल मार्ग के अभाव में यह क्षेत्र पिछड़ेपन की जंजीरों में बंधा हुआ है। भिण्ड-महोबा रेल लाइन केवल बुंदेलखण्ड के लिए नहीं वरन भारतीय रेल के लिए एक वरदान साबित हो सकता है। महोबा से खजुराहो जुड़ चुका है। यदि खजुराहो को कटनी से जोड़ दिया जाए तो यह मार्ग पूर्व में पटना, कलकत्ता और दक्षिण में बिलासपुर, रायपुर और पश्चिम में इटारसी, मुंबई मार्ग से जुड़कर भारतीय रेल के दबाव के क्षेत्र नागपुर, इटारसी, झांसी, आगरा आदि को आसान बना सकता है। इससे कई क्षेत्रों में असाधारण रूप से दूरियां कम हो जाएंगी और यात्रियों एवं माल का आवागमन आसान हो जाएगा।


उपरोक्त विशेषण से स्पष्ट है कि भिण्ड-इटावा रेल लाइन भिण्ड को एक ऐसी यातायात की धुरी दे रहा है जो भारतीय रेल में आवागमन का केन्द्र बन सकता है। भारत सरकार के बड़े संस्थानों को यहां स्थापित करने के लिए सुविधा होगी और चंबल के विशाल बीहड़ों में फल उद्यान के जरिए यह भारत का सबसे अधिक विकसित एवं समृद्ध क्षेत्र बनने की संभावनाओं से भरपूर है। भिण्ड शिक्षा के क्षेत्र में भी बड़ी संस्थाओं का केन्द्र बनने में सफल होगा। 27 फरवरी का यह दिन भिण्ड के लिए 21वीं सदी का दरवाजा खोल रहा है। यहां विकास की अपार संभावनाएं हैं। इसके लिए भिण्ड के लोगों को एकजुट होकर कर्तव्य की पराकाष्ठा और हौसले के साथ इस चुनौती को स्वीकारना होगा। निश्चित ही एक स्वर्णिम भविष्य आगे हमारी प्रतीक्षा कर रहा है।
डॉ. भागीरथ प्रसाद, सांसद, भिण्ड

Updated : 26 Feb 2016 12:00 AM GMT
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