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मणिपुर आर्थिक नाकेबंदी के चक्रव्यूह में फिर उलझा

मणिपुर आर्थिक नाकेबंदी के चक्रव्यूह में फिर उलझा
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मणिपुर आर्थिक नाकेबंदी के चक्रव्यूह में फिर उलझा


मणिपुर सरकार ने 28 अक्टूबर 2016 को दो जिलों सदर हिल्स और जिरिबाम का प्रस्ताव रखा जिसमें नागा यूथ फेडरेशन ने 30 अक्टूबर, को 24 घंटे बन्द का आव्हान रखा और 1 नवम्बर से इम्फाल, दीमापुर एन.एच.-2 व इम्फाल जिरिबाम एन.एच. 37 आर्थिक नाकेबन्दी शुरू कर दी। नागा यूथ फेडरेशन की मांग थी, कि इन जिलों में नागाओं का क्षेत्राधिकार है और उनसे सलाह लिये बिना जिला क्यों बनाया, आर्थिक नाकेबन्दी के दौरान चन्देल जिले के लोकचाद गांव में नागा विद्रोही समूह ने फायरिंग के दौरान मणिपुर पुलिस के तीन जवान मार दिये और 9 बन्दूकें उठाकर ले गये। दूसरी घटना तामेंललांग जिले के नागकोउ पुलिस स्टेशन पर हमला कर दिया जिसमें 14 लोग घायल हो गए। इस दौरान पुलिस ने नागा विद्रोही समूह के अध्यक्ष व सचिव को गिरफ्तार कर लिया। इसी बीच मणिपुर सरकार ने सात नये जिलों की घोषणा कर दी।
नागा नेताओं को साथ शामिल करके सदर हिल्स का नाम बदल कर काईपोउ हिल्स रख दिया। अब नागा नेताओं की मांग सरकार के साथ यह थी कि नागा विद्रोही समूह के अध्यक्ष व सचिव को गिरफ्तार किया है उनको बिना कोई चार्ज लगाए छोड़ दिया जाए। लेकिन कुछ जिलों को लेकर नागा नेताओं में असन्तोष का भाव यह भी था कि सात नये जिले बनाते समय या नागाओं के विषय में निर्णय लेते समय हमें शामिल क्यों नहीं किया जाता है। नागा विद्रोही समूह का मानना है कि मणिपुर सरकार ने सात नये जिले बनाते समय हमसे कोई सलाह नहीं ली।

आज 60 दिन की आर्थिक नाकेबन्दी के बाद मणिपुर राज्य को देश के बाकी हिस्सों से अलग कर दिया। रोजमर्रा व खाने पीने की वस्तुओं की राज्य में भारी किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। गैस 3000 रूपये, पैट्रोल 200 रू. ली चावल 60 से 65 रू. किलो, दाल 175 रू. किलो में भी नहीं मिल पा रही है। बस व ऑटो वाले लोगों से कई गुना ज्यादा पैसे वसूल रहे है। आने-जाने के लिये पैदल व साइकिल का सहारा है। अस्पतालों में आक्सीजन की कमी है तो वहीं जीवन रक्षक दवाएं भी खत्म होने के कगार पर हैं। 16 अपै्रल 2010 में भी मणिपुर के नागा बहुल क्षेत्रों में दो राष्ट्रीय राजमार्गों की आर्थिक नाकेबंदी कर नागा संगठनों ने मणिपुर को देश के बाकी हिस्सों से काट दिया था। उस दौरान भी मणिपुर के हालात काफी खराब हो गये थे। 24 लाख भारतीयों की जान खतरे में थी और मणिपुर सरकार जनता को राहत पहुंचाने के लिये कुछ खास नहीं कर पा रही थी और आज फिर हालात वैसे ही हो गये हंै।

वास्तव में इस नौटंकी की सच्चाई यह है कि एन.सी.एन. हृ.स्.ष्ट.रू.(ढ्ढ.रू.) का नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल और नागालैण्ड उत्तर पूर्व राज्यों का एक खतरनाक आतंकवादी संगठन है, जो उत्तर पूर्व में जितने भी आतंकवादी संगठन चल रहे हैं सभी पर इसी आतंकवादी संगठन का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हाथ है वह, वहाँ पर जितनी भी जातीय हिंसा होती है सब इसी के द्वारा षड्यंत्र पूर्वक कराई जाती है जिससे वहाँ पर धर्मान्तरण व अलगाववाद को बढ़ावा मिल सके। इस संगठन को चीन, अमेरिका, फ्रान्स, ब्रिटेन आदि देशो से धन व हथियारों के रूप में मदद मिलती है। इसके पास ऐसे हथियारों का जखीरा है, जो हथियार भारतीय सेना के पास भी नहीं मिलेंगे। इस संगठन से जुड़े हुए लोग हथियारों की तस्करी ड्रग्स, चरस, गांजा वेश्यावृत्ति (लड़कियों को खरीदना, बेचना) अन्य आतंकवादी संगठनो को सैन्य प्रशिक्षण भूटान व म्यामार के जंगलों में देता है उसके एवज में उन आतंकवादी संगठनो से रूपये लेता है, व जाली नोटों के कारोबार से जुड़े हुए हैं। जाली नोट भारत के अन्दर घुसपैठियों के माध्यम से भारत में भेजे जाते हैं। इस सब व्यापार में लगे हुए लोगो को एक फिक्स कमीशन (अलग-अलग व्यापार के अनुसार) एन.एस.सी.एन (आई.एम.) आतंकवादी संगठन को देना होता है। नागालैण्ड में इस आतंकवादी संगठन की न केवल समानातर सरकार चलती है बल्कि टैक्स के रूप में नागरिकों से भारी मात्रा में पैसा भी वसूल कर रही है। वहाँ के नागरिकों को डबल टैक्स देना होता है। आतंकवादी संगठन दो गुटों में बंटा हुआ है एक का नेतृत्व ईसाक मुइवा करता है जो मणिपुर के उखरूल जिले के सोमड्रोल गांव का रहने वाला है दूसरा गुट एस.एस. खापलांग के द्वारा चलाया जाता है जो मूलत: म्यांमार का रहने वाला है। इसाक मुईवा गुट भारत से पूरी तरह से अलगाववाद चाहता है जबकि खापलांग गुट भारत के साथ रहते हुए कुछ मामलों में स्वतंत्रता चाहते हैं।

विभाजन के समय अरूणाचंल, मेघालय, नागालैण्ड और मिजोरम असम के ही भाग थे। 1956 ई. के शुरू. में नागाहिल्स में हुए सशस्त्र विद्रोह को सैनिक अभियान चलाकर कानून व्यवस्था कायम की गई। 1961 में नागाहिल्स को नागालैण्ड नाम दे दिया गया, जो 1 दिसम्बर 1963 को असम से पृथक होकर भारत का 16वाँ राज्य बना।

मणिपुर भारत में विलय 15 अक्टूबर 1949 को ही हो गया था। स्वतंत्रता के पूर्व मणिपुर राज्य सत्ता के अधीन था जिनके आखिरी राजा महाराजा बोधचन्दे्र थे। मणिपुर 1956 तक यूनियन टेरीटरी के रूप में था। 21 जनवरी 1972 को मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया। वह मणिपुर नागाओं का कोई नामो निशान नहीं था।

नागालैण्ड को राज्य का दर्जा मिलने के बाद से ही नागाओं का भारत से पूर्ण रूप से अलगाववाद पर भारत सरकार से समय-समय पर हिंसा के रास्ते अपनी मांगों को रखते रहे है। विस्तारवादी नीति के तहत नागालैण्ड से सटे हुये मणिपुर को चार जिले चन्देल जिला जिसका क्षेत्रफल 3.313 कि.मी. उखरूल -4594 कि.मी., सेनापति 3271 कि.मी., तामेंलांग 4391 कि.मी. की है। असम के 5 जिले जिसका कुल क्षेत्रफल 24343 कि.मी है और अरूणाचल प्रदेश का 83743 कि.मी. मिलाकर वह अपना क्षेत्रफल बढ़ाकर ग्रेटर नागालैण्ड की मांग कर रहा है। अपनी मांग में बताया है कि लोकतन्त्र के अनुसार सभी नागाओं को एक साथ रहने का जन्म सिद्ध अधिकार है।
वास्तव में मणिपुर राज्य में तीन जातियों का प्रभुत्व है। मैतैई जो मणिपुर के प्लेन एरिया में निवास करती है, और 65: हिन्दू है जो मूलत: भगवानकृष्ण के मानने वाले है। दूसरा, कूकी जाति है जो पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करती है जो कुछ ईसाई धर्म को मानते है और कुछ आदिवासी, तीसरी नागा जाति है, जो पूर्ण रूप से ईसाई धर्म को मानने लगी है। नागा जाति मणिपुर में भले ही संख्या में ज्यादा नहीं है परन्तु मणिपुर सरकार पर जबरदस्त दबाव बनाकर कुछ भी करा सकती है। क्यों कि मणिपुर आने का रास्ता इम्फाल-दीमापुर एन.एच.2 और इम्फाल जिरिबाम एन.एच. 37 से होकर आता है। इसमें जो दीमापुर जिला है वह असम राज्य का हिस्सा है जो नागालैण्ड राज्य बनाते समय नागालैण्ड को नहीं दिया गया था। आज भी वोट को लेकर वहाँ की जनता पर जबरदस्त दबाव बनाकर नागालैण्ड विधानसभा नगर पालिका व अन्य चुनाव में नागालैण्ड चुनाव के अंतर्गत आते हंै, क्योंकि दीमापुर से मणिपुर राज्य को कभी भी घेरने में नागाओं को परेशानी न हो। इसी कारण जब भी अपनी मांग मनवानी होती है, नागा विद्रोही समूह एन.एच.2 व एन.एच. 37 पर आर्थिक नाकेबन्दी कर अपनी बात मनवाने में सफल हो जाते हैं। कूकी और नागाओं में सीमा पार अवैध धन्धों को लेकर विवाद बना रहता है परन्तु जब कभी भी मैतैई जाति के खिलाफ कूकी और नागा एक हो जाते है। मैतेई जाति मणिपुर अपने वर्चस्व को लेकर, अपनी संस्कृति, परम्परा को लेकर काफी चिन्तित है क्योंकि वहाँ का सारा व्यापार मारवाडिय़ों के हाथ में आ जाने से मैतेई समाज की परेशानियाँ बढ़ गई हैं। मैतेई जाति का मानना है कि मणिपुरी व अन्य लोग बाहर से आकर हमारे व्यापार पर कब्जा करते जा रहे है। इसलिए वह मणिपुर में हमेशा से इनर लाइन परमिट की व्यवस्था की मांग कर रही है।

नागा विद्रोह समूह ने काउन्टर ब्लाकेज शुरू कर दिया है। जिसमें, नागा क्षेत्रों से आने वाली खाद्य सामग्री जैसे सब्जी, चावल, तेल, दुध, व अन्य वस्तुये मैतैई क्षेत्रों में ना जा पाएं। जे.सी.बी. से रास्ते ही खोद डाले गये है। जिसमें मणिपुरियों ने परेशान होकर एक संगठन बनाया है। जिसका नाम गुडविल मिशन रखा है जो नागाओं के एरिये में जाकर शान्ति का प्रचार कर रहा है। जिसमें प्रमुख रूप से मैतेई कूकी, मुस्लिम जालियांग आदि जातियां शामिल हंै। काउन्टर ब्लाकेज से मणिपुर सरकार की नाक में दम कर रखा है। अब मणिपुर सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती 2017 के चुनाव में सरकार को बचाना और आम जनता को राहत देना है। क्योंकि ऐसे वक्त पर मणिपुर सरकार का यह निर्णय घातक सिद्ध हो रहा है। अब जनता मणिपुर सरकार को दोषी मान रही है और उनकी नाराजगी का सामना भी करना पड़ रहा है।
वास्तव में आर्थिक नाकेबन्दी से मणिपुर की राजनीति में भूचाल सा आ गया है। क्योंकि 2017 में मणिपुर राज्य के चुनाव जो होना है। मणिपुर में वर्तमान में कांग्रेस की सरकार है। मणिपुर राज्य में प्रमुख रूप से तीन दल है। पहला कांग्रेस जो 41 सींटों के साथ सत्ता में है दूसरी नेशनल पीपुल्स फ्रन्ट (एन.पी.एफ.) जो नागा क्षेत्रों के सहारे टिका हुआ है। नेशनल पीपुल्स फ्रन्ट केन्द्र में एन.डी.ए. के साथ में है। तीसरा दल वही भाजपा 1 सीट के साथ और मैतेई हिन्दू वोटों के सहारे अपना दावा ठोक रही है। राजनीतिक स्तर पर देखें तो मैतेई समाज व कूकी समाज नागा को अपना नहीं मानता क्योंकि नागाओं ने मणिपुरियों के नाक में दम कर रखा है। नेशनल पीपुल्स फ्रन्ट नागाओं का बनाया हुआ दल है जिसका हेड क्वार्टर नागालैण्ड के कोहिमा जिले में है। केन्द्र में एन.डी.ए. के साथ होने से मैतेई व कूकी ये मानने लगे हैं कि नागाओं ने केन्द्र के साथ मिलकर आर्थिक नाकेबंदी को अन्जाम दिया जिससे वर्तमान कांग्रेस सरकार की छवि धूमिल हो और भाजपा का रास्ता साफ हो। वैसे तो नागा जिसकी केन्द्र में सरकार रहती है उसके साथ हो जाते हैं। लेकिन मणिपुर में भाजपा और नेशनल पीपुल्स फ्रन्ट का गठजोड़ होने की चर्चा जोरों पर है। अगर ऐसा होता है तो मैतेई और कूकी पूरी तरह से अलग हो जाएंगे और भाजपा को बहुत कम में ही सन्तोष करना पड़ सकता है। परन्तु ऐसा नहीं होता है तो नरेन्द्र भाई मोदी की नोटबंदी के सहारे भाजपा असम की तरह मणिपुर में भी सरकार बना सकती है। क्योंकि वहां की आर्थिक नाकेबंदी से मणिपुर की जानता को काफी परेशानियों का सामना झेलना पड़ रहा है।

इस पूरी घटना की वास्तविकता चाहे जो हो या राजनीतिक ड्रामा हो परन्तु मणिपुर की भोली भाली जनता को यह दंश झेलना पड़ रहा है।
लेखक- उत्तर पूर्व मंत्रालय के सदस्य हैं।


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Updated : 31 Dec 2016 12:00 AM GMT
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