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भगदड़ न मचे, यह जिम्मेदारी आयोजकों की

वाराणसी में जय गुरुदेव आध्यात्मिक सत्संग में भगदड़ मचने का जो यह हादसा हुआ है, उसमें जवाबदेही आयोजकों की भी तय होनी चाहिये। मुआवजे की घोषणा करना एक मानवीय सरोकार है तथा लापरवाही के लिये कथित तौर पर जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों को ठहराया जाना एक प्रशासनिक या स्वाभाविक प्रक्रिया है। हादसे की मजिस्ट्रियल जांच कराने का आदेश दिया जाना भी एक घिसा-पिटा फंडा है, जो प्राय: हर घटना-दुर्घटना के बाद अपनाया जाता है लेकिन सवाल यह उठता है कि भविष्य में ऐसा कोई भी हादसा नहीं होगा तथा आयोजक भी अपनी जिम्मेदारी समझेंगे, इस बात की गारंटी कौन देगा?

वा राणसी में एक धार्मिक आयोजन के दौरान भगदड़ मचने से करीब दो दर्जन लोगों की मौत के बाद ऐसे आयोजनों के औचित्य पर ही सवाल खड़े होने लगे हैं। वाराणसी में हुआ यह हादसा कोई पहला मामला नहीं है, जिसमें लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। देश में आये दिन ऐसे आयोजनों में शामिल होने वाले लोगों को हादसे का शिकार हो जाना पड़ता है। कहीं कोई मेला आयोजित हो या किसी धार्मिक आयोजन में लोग शामिल होने जाएं तो ऐसी स्थिति में शासन, प्रशासन के साथ-साथ आयोजकों की यह महती जिम्मेदारी है कि वह संबंधित आयोजन में पहुंचने वाले लोगों की संख्या के हिसाब से संपूर्ण व्यवस्थाएं चाक-चौबंद कर लें। बाकी तो फिर कोई भी हादसा होने के बाद उसकी जिम्मेदारी लेने की पहल किसी भी पक्ष द्वारा नहीं की जाती तथा बेगुनाह लोग ऐसे आयोजनों की भेंट चढ़ जाते हैं।

मेला हो या कोई भी धार्मिक आयोजन या अन्य तरह का जन समागम।अगर लोगों को ऐसे आयोजनों में शामिल होने के कारण बेमौत मरना पड़े तो यह बेहद दुखद और त्रासदीपूर्ण है तथा ऐसे आयोजनों से कोई भी क्रांति नहीं होने वाली है। अगर आयोजक संपूर्ण तरह के पुख्ता प्रबंध पहले से नहीं कर सकते तो फिर वह ऐसे कोई आयोजन करते ही क्यों हैं? लोगों को सुरक्षित उनके घर में ही रहने दिया जाये। मेले या धार्मिक आयोजन करके आखिर कतिपय लोग धनार्जन ही तो करते हैं अर्थात् ऐसे आयोजनों से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी न किसी को आर्थिक लाभ ही तो होता है। हालाकि जनमानस का धर्मानुराग जरूरी है तथा उन्हें धार्मिक कार्यक्रमों में शामिल भी होना चाहिये लेकिन अपनी जिंदगी की सलामती का ध्यान भी रखना चाहिये। वरना कोई भी समागम या आयोजन समाज पर कहर बनकर टूटे तथा लोगों की जिंदगी ही ऐसे कार्यक्रमों में कुर्बान हो जाए, तो यह हालात बेहद दुखदायी हैं।
वाराणसी में जय गुरुदेव आध्यात्मिक सत्संग में भगदड़ मचने का जो यह हादसा हुआ है, उसमें जवाबदेही आयोजकों की भी तय होनी चाहिये। मुआवजे की घोषणा करना एक मानवीय सरोकार है तथा लापरवाही के लिये कथित तौर पर जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों को ठहराया जाना एक प्रशासनिक या स्वाभाविक प्रक्रिया है। हादसे की मजिस्ट्रियल जांच कराने का आदेश दिया जाना भी एक घिसा-पिटा फंडा है, जो प्राय: हर घटना-दुर्घटना के बाद अपनाया जाता है लेकिन सवाल यह उठता है कि भविष्य में ऐसा कोई भी हादसा नहीं होगा तथा आयोजक भी अपनी जिम्मेदारी समझेंगे, इस बात की गारंटी कौन देगा? सवाल यह उठता है कि क्या मुआवजे की घोषणा कर देने से या पुलिस अधिकारियों को सस्पेंड कर देने से मृत लोग जिंदा हो जाएंगे? बताया जा रहा है कि जयगुरुदेव के उत्तराधिकारी पंकज ने हादसे के बाद दूसरे दिन भी उक्त कार्यक्रम में अपना प्रवचन जारी रखा।

पंकज ने हादसे को दैव इच्छा करार दिया है तो इससे ऐसे लोगों की मानसिकता का अंदाजा लगाया जा सकता है। लोग उक्त आयोजन में शामिल होने पहुंचे तथा अव्यवस्था व हादसे का शिकार होकर काल के गाल में समा गये तो इसमें कौन सी दैव इच्छा हुई, इसे तो मानवजनित त्रासदी कहा जाना चाहिये। आयोजकों में संवेदनहीनता इस तरह हावी रही कि उन्होंने हादसे के बाद कार्यक्रम को स्थगित करने की जहमत भी नहीं उठाई। यहां यह उल्लेखनीय है कि कुछ माह पूर्व मथुरा के जवाहरबाग कांड के मुख्य आरोपी रहे रामवृक्ष यादव और पंकज के बीच गहरा कनेक्शन है क्यों कि दोनों ही जय गुरुदेव के शिष्य रहे हैं तथा उनके बीच का उत्तराधिकार एवं संपत्ति का विवाद काफी चर्चित रहा है। जय गुरुदेव के निधन के बाद संपत्ति के लिए सबसे ज्यादा विवाद जय गुरुदेव के शिष्य रामवृक्ष यादव और पंकज यादव के बीच ही हुआ था। बाद में विरासत संभालने के लिए पंकज को उत्तराधिकार मिल गया। वहीं उत्तराधिकार नहीं मिलने पर रामवृक्ष यादव अलग गुट बनाकर 2014 में लगभग 200 लोगों के साथ मथुरा पहुंच गया। उसने प्रशासन से वहां रहने के लिए दो दिन की इजाजत ली। रामवृक्ष यादव शुरुआत में जवाहरबाग में एक छोटी सी झोपड़ी बना कर रहता था। लेकिन बाद में मथुरा के जवाहरबाग की 270 एकड़ जमीन पर उसने अवैध कब्जा कर लिया था। यहां यह सब उल्लेख करने का आशय यह है कि पंकज जैसे लोग कोई साफ सुथरे इंसान नहीं हैं। मांसाहार न करने व नशे के सेवन से दूर रहने का उपदेश देना तो अच्छी बात है लेकिन जरा मानवीय सरोकार भी तो होना चाहिये।

Updated : 18 Oct 2016 12:00 AM GMT
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