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भारत की प्रकृति राजनैतिक नहीं सांस्कृतिक है

भारत की जीवन पद्वति नर से नारायण बनाने की है: सोलंकी

भोपाल। हरियाणा पंजाब के राज्यपाल प्रो. कप्तान सिंह सोलंकी ने कहा कि मानव शरीर में प्राण से जीवन का अस्तित्व होता है। भारत आर्यावत का प्राण धर्म है। धर्म जीवन पद्धति है। सम्प्रदाय अथवा पंथ पूजा व उपासना से तात्पर्य नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत की प्रकृति सांस्कृतिक है राजनैतिक नहीं। इसी विशिष्ठता के बल पर भारत का दुनिया मे मान और सम्मान रहा है। सांस्कृतिक समृद्धि ने भारत को सराहना दिलायी है। हमें अपने संस्कृति के मूल्यों को सहेजकर आगे बढ़ाना है। संस्कृति को पीढ़ी दर पीढ़ी ले जाने में साहित्य संवाहक बनता है। प्रो. सोलंकी अर्चना प्रकाशन के रजत जयंती समारोह के अवसर पर देश के मूर्धन्य पत्रकारों को सम्मानित कर रहे थे। समारोह की अध्यक्षता सांसद प्रभात झा ने की। उन्होंने कहा कि भारत की विशिष्ठता उसकी सांस्कृतिक समृद्धि में है हमें अपनी सांस्कृतिक विरासत को निरंतर कायम रखकर मानव धर्म की प्रतिष्ठा दुनिया में करना है। समारोह समिति के अध्यक्ष डॉ. देवेन्द्र दीपक ने प्रो. सोलंकी, सांसद प्रभात झा, डॉ. गोविन्द प्रसाद शर्मा, डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री, डॉ. यशवंत गोपाल भावे, श्री नंदकिशोर शुक्ल, सांसद आलोक संजर, लालसिंह आर्य और अतिथियों का स्वागत किया। ओमप्रकाश गुप्ता और माधवसिंह दांगी ने रजत जयंती समारोह के अवसर पर वर्ष भर की कार्ययोजना से अवगत कराया। प्रकृति के विपरीत वह विकास नहीं कर सकता। महाभारत में भारत की प्रकृति का दिग्दर्शन युधिष्ठिर करते हंै इसलिए उन्हें धर्मराज कहा गया और इसके विपरीत दुर्योधन को मानव प्रकृति का प्रतिकूल स्वरूप माना गया। उन्होंने कहा कि भारत की जीवन पद्वति नर से नारायण बनाने की है। अन्य मुल्कों के जन्मदाता वहां के राजा महाराजा रहे है, लेकिन भारत की साज संवार साधु संतों अध्यात्म के प्रणेताओं ने की है, इसलिए भारत की प्रकृति राजनैतिक नहीं सांस्कृतिक है। उन्होंने जन जन से आग्रह किया कि वे अपने सांस्कृतिक मूल्यों को पहचाने।
उन्होंने सचेत किया कि हम संक्रमण काल से गुजर रहे है हमें अपने सांस्कृतिक मूल्यों आचार विचार परंपराओं, पद्धतियों को रेखांकित करते हुए इस परंपरा को आने वाली पीढ़ी को सौंपना है। साहित्य हमारी विरासत को संजोता संवारता है। अर्चना प्रकाशन ने इस दायित्व को भलीभांति संभाला है। अर्चना प्रकाशन के आयोजक बधाई के पात्र है। आइडिया ऑफ हिन्दुस्तान के मूल स्वरूप को बदलने का प्रयास किया गया।

हमें इसके प्रति खबरदार रहना है : डॉ अग्निहोत्री
इस अवसर पर बोलते हुए मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. कुलदीप अग्निहोत्री ने कहा कि 1857 से भारत में अवनति का प्रयास अंग्रेजों द्वारा आरंभ किया गया और यह धारणा फैलायी गयी कि भारत नेशन राष्ट्र नहीं है, लेकिन यदि इतिहास पर गौर करें तो इसके विपरीत निष्कर्ष निकलता है कि तमाम विविधताओं के बावजूद आद्य शंकराचार्य और गुरू नानक ने समूचे देश को पग पग नापा। सांस्कृतिक और वैचारिक परंपराओं को निरंतरता देकर विष्व गुरू के राह पर आगे बढऩा है।


सांस्कृतिक एकता हमें जोड़ती है: डॉ. गोविन्द शर्मा
डॉ. गोविन्द शर्मा ने कहा कि भारतीय गौरव की पुर्नस्थापना का अनुष्ठान रामानंद ने ही आरंभ कर दिया था। बाद में यह क्रम चला। महात्मा गांधी, अरविन्द जी इसके संवाहक बनें। इस अनुष्ठान का मतलब हमें अपने को पहचानना है। संस्कृति को आत्मसात करना है। उन्होंने याद दिलाया कि 1948 में पं. नेहरू ने कहा था कि संस्कृति हमें जोड़ती है, इसलिए सांस्कृतिक एकता को बनाए रखना है। उन्होंने कहा कि अमेरिका में एक प्रश्न पूछा गया था कि हू आर बी। जवाब आया था कि भाई एंगलो सेक्षन आफ पीपुल। भारत में यदि यही प्रश्न पूछा जायेगा तो इसका उत्तर होगा वी आर हिन्दु। संस्कृति से हम सब हिन्दु है। इस सांस्कृतिक मूल को पहचानते हुए हमें चुनौती को अवसर के रूप में बदलना है और सांस्कृतिक पुर्नजागरण का संदेश जन जन तक पहुंचाना है।

Updated : 10 Jan 2016 12:00 AM GMT
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