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मेड़ नाली पद्धति से सोयाबीन की बुवाई करें किसान

भोपाल। रिज एण्ड फरो मेढ़ नाली पद्धति से सोयाबीन की खेती करने पर वर्षा की अनिश्चितता का फसल पर विपरीत प्रभाव नही पड़ता है। आशय है कि कम या अधिक बरसात अथवा फिर वर्षा के बीच से लंबा अंतराल होने पर भी सोयावीन की पैदावार कम नही होती बल्कि और बढ जाती है। रिज एण्ड फरो पद्धति से सोयाबीन की उत्पादकता में 25 से 50 प्रतिशत तक बढोत्तरी प्राप्त की जा सकती है। किसानों को रिज एण्ड फरो पद्धति से सोयाबीन की फसल बोने की सलाह दी गई है।सीडड्रिल में टायल के पीछे रिज एण्ड फरो अटैचमेंट लगाकर इस पद्धति में बोनी की जाती है।
मेड़ नाली पद्धति से बुवाई मेड़ों पर की जाती है। मेड़ों के बीच लगभग 15 सेमी गहरी नाली बनाई जाती है। इसका फायदा यह होता है कि तेज वर्षा होने के समय पौधों के गिरने की संभावना कम हो जाती है। बुवाई के दौरान ही मिट्टी की मेड बन जाती है और मेड क मध्य में बीज की बुवाई एक साथ हो जाती है।
अंकुरण के बाद नाली को अंत में मिट्टी के द्वारा बांध दिया जाता है। जिससे बरसात के पानी का भूमि में संरक्षण होता है। साथ ही अधिक वर्षा के समय इन नालियों से अतिरिक्त वर्षा का जल खेत के बाहर निकाला जा सकता है। इससे संबधित जानकारी के लिए अपने क्षेत्र के कृषि विस्तार अधिकारी से संपर्क करें।

Updated : 26 July 2015 12:00 AM GMT
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