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जनमानस

पर्यावरण में ही सुरक्षित है जीवन


मानव प्रकृति का सबसे अधिक बुद्धिमान व्यक्ति माना जाता है। वह जिस पर्यावरण में रहता है, वहां के संसाधनों का भरपूर उपयोग करता है। मानव का प्रत्येक पहलू पर्यावरण द्वारा प्रभावित होता है तथा समयानुकूल उसे प्रभावित भी करता है।
प्रारम्भिक अवस्था में मानव ने प्राकृतिक सीमाओं में रहकर ही विकास किया किन्तु जैसे-जैसे वह सभ्य होता गया, उसका क्षेत्र भी बढ़ता गया तथा वह प्राकृतिक सीमाओं में बंधकर न रह सका और उसका उल्लंघन करने लगा। जैसे ही जनसंख्या बढऩा प्रारम्भ होती है उसके भोजन के लिए तलाश प्रारम्भ हो जाती है जिसे विभिन्न रूपों में प्राप्त किया जाता है। यहीं से मानव संसाधनों का दोहन प्रारम्भ हो जाता है। मानव जंगलों को साफ करके उसमें कृषि-कार्य प्रारम्भ कर देता है और उद्योग धंधों का विकास करता है। इस प्रकार प्राकृतिक संसाधनों का भरपूर प्रयोग करता है। जिससे वे कम होने लगते हैं। जो संसाधन समाप्त होते जाते हैं, उनकी जगह दूसरे संसाधनों का उपयोग करने लगता है। यह क्रम लगातार चलता रहता है इस कारण पर्यावरण में असंतुलन उत्पन्न होता है।
अधिकाधिक फसल उत्पादन हेतु मिट्टी में रासायनिक खादों का प्रयोग किया जाता है तथा कीटनाशी रसायनों का प्रयोग किया जाता है। वनों की अत्याधिक कटाई तथा बढ़ते औद्योगीकरण के कारण विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों को जन्म मिलता है मानव प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर लम्बे समय तक अपना अस्तित्व बनाए रख सकता है किन्तु उसने अपने स्वार्थवश प्राकृतिक संसाधनों का आवश्यकता से अधिक उपयोग किया है अत: पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ गया है। इसके परिणाम स्वरूप उसका अस्तित्व खतरे में पड़ता जा रहा है अर्थात् मानव स्वयं अपनी मौत को बुलावा दे रहा है। अत: आवश्यकता है कि हम अब भी सावधान हो जाएं तथा प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग बेरहमी से न करें तथा उन्हें संरक्षित कर भविष्य को सुरक्षित करें अर्थात इनका सम्यक उपयोग करें।

मोहिनी शर्मा, ग्वालियर

Updated : 22 Dec 2015 12:00 AM GMT
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