Home > Archived > याचिका हमने दायर की है, इन्हें राहत कैसे मिल सकती है

याचिका हमने दायर की है, इन्हें राहत कैसे मिल सकती है

ग्वालियर। डीआरडीओ परिसर की 200 मीटर की परिधि में आने वाले किसी भी भू-खंड पर निर्माण और भवन के पुनर्निर्माण की अनुमति नहीं मिल पा रही है। कारण, केन्द्र का वह नियम जिसमें सुरक्षाकारणों का हवाला देते हुए निर्माण पर प्रतिबंध लगा रखा है। इसके चलते जिन लोगों ने कई वर्ष पूर्व उक्त क्षेत्र में जमीन खरीदी थी, आज वे संकट में हैं । यहां तक की प्रशासन भी उनकी मदद नहीं कर पा रहा है। ऐसा ही एक मामला समाचार पत्र समूह के प्रबंधन का है जिसे जिलाधीश ग्वालियर ने 2014 में लगभग 6 करोड़ 35 लाख रुपए की राशि अवार्ड की थी लेकिन आज तक उन्हें एक रुपए का भी भुगतान नहीं किया गया। वहीं उच्च न्यायालय ने भी समूह के आवेदन पर सुनवाई करते हुए उन्हें किसी भी प्रकार की सहायता करने से मना कर दिया। न्यायालय ने कहा कि वे जिलाधीश के समक्ष अपना अभ्यावेदन प्रस्तुत करें और जिलाधीश केन्द्र के पक्ष सुनने के बाद उनके आवेदन का निराकरण करें।
डीआरडीओ परिसर के आस पास जिन लोगों के भूखंड थे, जब उन्होंने उस पर निर्माण करने के लिए संबंधित विभाग से अनुमति मांगी तो विभाग ने केन्द्र के नियमों का हवाला देते हुए अनुमति देने से मना कर दिया। तब भू-थखण्ड स्वामियों ने जिलाधीश न्यायालय में शरण ली और जिलाधीश ने कई भू-खण्ड स्वामियों को नियमानुसार राशि अवार्ड की। जिलाधीश के उक्त आदेश को केन्द्र सरकार ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी है । ऐसे ही एक प्रकरण की सुनवाई न्यायमूर्ति आलोक अराधे के न्यायालय में हुई जिसमें एक समाचार पत्र समूह के प्रधान संपादक ने केन्द्र की याचिका में इंटरवीनर का आवेदन देते हुए कहा कि जिलाधीश ने उन्हें छह करोड़ 35 लाख की राशि अवार्ड की थी। चूंकि इसमें समय लग रहा है, ऐसे में पूरी राशि ना देते हुए कुछ राशि का ही भुगतान किया जाए। उनके अभिभाषक ने बताया कि उन्हें राज्य सरकार ने सिटी सेन्टर क्षेत्र में 10,400 वर्ग फीट जमीन फ्री होल्ड पर 30 साल के लिए लीज पर दी है। इसके लिए उन्होंने लगभग 2 करोड़ की राशि जमा भी की है। उनके आवेदन का विरोध करते हुए सहायक महान्यायवादी विवेक खेडकर ने तर्क दिया कि उन्होंने जिलाधीश के आदेश को चुनौती देते हुए याचिका दायर की है, ऐसे में किसी अन्य को राहत कैसे दी जा सकती है। यदि इंटरवीनर को किसी भी प्रकार की राहत चाहिए तो वे पृथक से याचिका प्रस्तुत कर सकते है। इस पर इंटरवीनर ने अपना आवेदन वापस ले लिया।
उप-पंजीयक को अवमानना का नोटिस
ग्वालियर। उच्च न्यायालय ने उप-पंजीयक को अवमानना का नोटिस जारी करने के आदेश दिया है। उप- पंजीयक श्रीराम चतुर्वेदी को चार सप्ताह में अवमानना नोटिस का जवाब देना है। मामला टोपी बाजार स्थित विवादित भूमि का है जिसके संबंध में 28 अप्रैल 2015 को उच्च न्यायालय ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। इस संबंध में जानकारी देते हुए अभिभाषक डीपीएस भदौरिया ने बताया कि पूर्व में मोहन प्रसाद दुबे ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर करते हुए मांग की थी कि पवन पाठक द्वारा फर्जी तरीके से टोपी बाजार स्थिति संपत्ति का अपने पक्ष में नामांतरण करवा लिया है, उसे निरस्त करने के लिए नगर निगम को निर्देशित किया जाए साथ ही इस याचिका के निराकृत होने तक जमीन को खुद-बुर्द करने पर रोक लगाई जाए। इस पर न्यायालय ने 28 अप्रैल को यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। कुछ माह बाद उप-पंजीयक ने अतिरिक्त महाधिवक्ता कार्यालय से अभिमत मांगा जिसमें उनसे ये कहा गया कि न्यायालय ने विवादित भूमि की खरीद फरोख्त पर किसी भी प्रकार की रोक नहीं लगाई है। इस पूरे घटनाक्रम में खास बात ये रही इस प्रकरण में शासन का कोई लेना-देना नहीं था। इसके बाद भी अतिरिक्त महाधिवक्ता कार्यालय से अभिमत मांगा गया। उक्त अभिमत के आधार पर उप-पंजीयक ने 26 सितम्बर 2015 को 30 से अधिक रजिस्ट्रियां कर दी। इसकी जानकारी लगते ही मोहन प्रसाद दुबे ने अवमानना याचिका दायर की जिस पर न्यायालय ने उप-पंजीयक को अवमानना का नोटिस जारी करते हुए जवाब मांगा है।

Updated : 19 Dec 2015 12:00 AM GMT
Next Story
Top