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भारतीय शिक्षण मंडल के राष्ट्रीय अधिवेशन का समापन

भारतीय शिक्षण मंडल के राष्ट्रीय अधिवेशन का समापन
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शिक्षा के पूरे विमर्श को ही बदलना है: देशपांडे


ग्वालियर। इस तीन दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन में जो विमर्श हुआ है, वह पथ प्रदर्शक है। इसी विमर्श को लेकर हमें गतिमान बनना है। हमें ध्येयवाद के आधार पर शिक्षा व्यवस्था की पुनरर्चना करना है। भ्रम जाल को निरस्त करते हुए सनातन परम्परा और धरा से जुड़ी शिक्षा व्यवस्था को लाना है। आगामी 10 से 15 सालों में इस देश की शिक्षा के पूरे विमर्श को ही बदलना है। यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्पर्क प्रमुख एवं प्रसिद्ध शिक्षाविद् अनिरुद्ध देशपांडे ने आईपीएस कॉलेज में आयोजित भारतीय शिक्षण मंडल के तीन दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन के समापन सत्र में मुख्य वक्ता की आसंदी से कही।
श्री देशपांडे ने कहा कि तत्व चिंतन संगठन के माध्यम से ही आमजन तक पहुंचता है। संगठन ही परिवर्तन का वाहक है और कार्यकर्ता उसके साधक हैं। एक कार्यकर्ता के रूप में हम सभी को इस तीन दिवसीय विमर्श को देश की जनता तक पहुंचाना है। हालांकि चुनौतियां बहुत हैं, लेकिन हमें उनका आकलन कर नई शिक्षा नीति और समाज का पुनर्निर्माण करना है। यदि हम संकल्पित होकर काम करेंगे तो आने वाले समय में हम निश्चित रूप से अपने बच्चों को आनंददमयी शिक्षा प्रदान कर सकेंगे। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद से ही हमारे इतिहास को लेकर भ्रमजाल फैलाया जाता रहा है। हमें हमेशा से यही पढ़ाया जाता रहा है कि आर्य बाहर से आए थे, आर्य आक्रमणकारी थे, हम पराभूत हैं। यह भ्रमजाल शिक्षा से लेकर विद्यार्थियों तक पहुंच गया। इससे समाज में विवेध उत्पन्न हो गया, जबकि सत्य यह है कि आर्य न तो बाहर से आए थे और न ही वे आक्रमणकारी थे। इस भ्रमजाल को मिटाने के लिए ऐसी शिक्षा व्यवस्था की जरूरत है, जो समाज को एक सूत्र में बांधकर रखे। शिक्षा में बदलाव से ही इस भ्रमजाल को तोड़ा जा सकता है।
श्री देशपांडे ने कहा कि कई स्कूलों में अंग्रेजी के अलावा किसी अन्य भाषा में वार्तालाप करना भी प्रतिबंधित है। यह हमारा मानस बदलने का प्रयास है। हमें अपनी भाषा के प्रति स्वयं में अभिमान जागृत करना होगा। हमारी प्राथमिक शिक्षा मातृ भाषा में हो। इसकी शुरुआत हमें अपने परिवार से करना होगी। समरसता का संस्कार भी इसी आयु से आता है। मातृ भाषा में शिक्षा से ही समरसता का संस्कार आता है और संस्कार से ही मनोरचना उत्पन्न होती है।
कार्यक्रम में भारतीय शिक्षण मंडल के महामंत्री वामनराव गोगटे भी प्रमुख रूप से उपस्थित थे। प्रारंभ में अधिवेशन के सह संयोजक कमलनाथ जैन ने तीन दिवसीय अधिवेशन का प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। समापन सत्र से पूर्व खुले सत्र में भारतीय शिक्षण मंडल के राष्ट्रीय सहसंगठन मंत्री मुकुल कानिटकर ने उपस्थित लोगों के प्रश्नों के उत्तर दिए। इस अधिवेशन में देश के विभिन्न राज्यों से आए 1264 प्रतिनिधि एवं शिक्षाविद् शामिल हुए, जिनमें 226 महिलाएं शामिल थीं।
हम अपनी परम्परा नहीं छोड़ सकते: छीपा
विशिष्ट अतिथि भारतीय शिक्षण मंडल के राष्ट्रीय अध्यक्ष मोहनलाल छीना ने कहा कि यहां तीन दिन तक जो चर्चा हुई है, उसे होता हुआ हम तभी देख पाएंगे, जब हम स्वयं उसे लागू करेंगे। उन्होंने कहा कि हमारी अपनी कुछ परम्पराएं हैं, जो हमें हमारे बुजुर्गों ने दी हैं, जिन्हें हम किसी भी कीमत पर छोड़ नहीं सकते। उन्होंने कहा कि गर्भ से लेकर अंतिम संस्कार तक क्या-क्या संस्कार होना चाहिए। इसमें किस तरह का प्रयोग हो सकता है। इस पर यदि हम गंभीर चिंतन-मंथन करेंगे तो जरूर हम देश के समक्ष भारतीय शिक्षा का प्रारूप रख सकेंगे। उन्होंने संस्कृति संवर्धन, समय व तनाव प्रबंधन पर ध्यान देने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि संगठन इकाइयों की मासिक बैठक, प्रांत कार्यकारिणी में विमर्श, अभ्यास वर्ग, प्रवास, आंतरिक अंकेक्षण, सदस्यता अभियान आदि गतिविधियां नियमिति रूप से चल रही हैं या नहीं। इसका ध्यान प्रत्येक इकाई को रखना है। यदि कहीं कोई विचलन है तो उसमें तत्काल सुधार करने का प्रयास करें। उन्होंने कार्यकर्ताओं को अपने दायित्वों का बोध कराते हुए कहा कि हमें आमजन तक यह संदेश पहुंचाना है कि हम अपनी मातृ भाषा में शिक्षा प्राप्त करके भी अपना भविष्य उज्जवल बना सकते हैं। इसी दृष्टि से अटल विहारी वाजपेयी हिन्दी विश्वविद्यालय ने चिकित्सा और अभियांत्रिकी शिक्षा के पाठ्यक्रम तैयार किए हैं, जो संभवत: अगले वर्ष से प्रारंभ होंगे।
यह प्रस्ताव हुए पारित
- भातीय शिक्षण मंडल की प्रारंभ से ही यह मांग रही है कि शिक्षा व्यवस्था शिक्षकों व शिक्षाविदों के हाथ में हो। इसके लिए स्वायत्त शिक्षा संचालन आयोग बनाने की आवश्यकता है। शासन द्वारा आर्थिक सहायता हेतु व्यवस्था बनी रहे, लेकिन प्राथमिक से उच्च शिक्षा तक के प्रबंधन, प्रवेश, पाठ्यक्रम, मूल्यांकन आदि के लिए केन्द्र, राज्य, जिला स्तर तक आयोग की संरचना हो। उसमें शिक्षा शास्त्री व समाज शात्री अधिक संख्या में हों। अत: भारत को विश्व गुरु के रूप में पुनस्र्थापित करने हेतु केन्द्र एवं राज्य स्तर पर स्वायत्त शिक्षा संचालन आयोग की तुरंत स्थापना की जाए। राज्य आयोग की शाखाएं जिला स्तर पर भी हों।
- दूसरे प्रस्ताव में सरकार, विश्वविद्यालयों, शिक्षाविदों, औद्योगिक घरानों, शोध कर्ताओं एवं समाज से आह्वान किया गया है कि शुद्ध भारतीय ज्ञान परम्परा के आधार पर युगानुकूल, समाजोपयोगी एवं राष्ट्र की धारणा के लिए आवश्यक अनुसंधान को प्रोत्साहन दें तथा उसके लिए आर्थिक एवं अन्य व्यवस्थापरक उपयुक्त सुविधाएं प्रदान करें। भारत केन्द्रित पुनरुत्थान के लिए अनुसंधान ही समस्त शैक्षिक गतिविधियों का केन्द्र बने।

Updated : 22 Nov 2015 12:00 AM GMT
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