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प्रशासन के अधीन हो फिलहाल चेम्बर


विशेष प्रतिनिधि/ ग्वालियर। किसी भी लोकतांत्रिक समाज में राज्य या प्रशासन का हस्तक्षेप न्यूनतम हो, यह एक स्वस्थ प्रक्रिया है। फिर चेम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज जैसा मंच तो निर्विवाद रूप से क्षेत्र विशेष के उद्योगपति, व्यापारी ही संचालित करें, यही अपेक्षित भी है, वांछनीय भी। पर चेम्बर चुनाव के दौरान जो रात के अंधेरे में नंगा नाच हुआ, उसे सिर्फ एक दुर्घटना मानना एक फिर भूल हो सकती है। अत: यह आवाजें चेम्बर के अंतरखाने से भी आ रही हैं और बाहर तो हैं ही कि वैकल्पिक व्यवस्था होने तक चेम्बर का नियंत्रण प्रशासन के आधीन हो और उसमें प्रशासक की नियुक्ति कर दी जाए। ऐसा करना सुखद तो नहीं है, पर वर्तमान हालातों में अनिवार्य अवश्य लगता है।
उल्लेखनीय है कि चेम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज संख्या के लिहाज से बेहद छोटी सी संस्था है, पर इसका महत्व बेहद है। वस्तुत: यही एक ऐसा मंच है, जहां पर राजनेता, प्रशासन एवं व्यवसायी वर्ग एक साथ सहजता से औपचारिक, अनौपचारिक संवाद कर सकता है। निश्चित रूप से यही वजह है कि जहां-जहां चेम्बर ने सकारात्मक भूमिका का निर्वहन किया, वह क्षेत्र आज आर्थिक जगत में अग्रिम पंक्ति में है। ग्वालियर अंचल में चेम्बर के अंदर कलुषित राजनीति एवं षड्यंत्रों का दौर किस प्रकार और कैसे शुरू हुआ, उसकी चर्चा आगे पर फिलहाल उद्योगपति श्री आनंद छापरवाल के शब्दों में यह सही है कि फिलहाल चेम्बर एक तमाशा बनकर रह गया है। यही कारण है कि प्रतिष्ठित व्यवसायी अजय बंसल यह कह रहे हैं कि चेम्बर में प्रशासक की नियुक्ति कर दी जाए और यह मांग या आवाज सिर्फ श्री बंसल की नहीं है, चेम्बर के तटस्थ सदस्य स्वयं चाहते हैं कि गंदगी हटाने के लिए चेम्बर की वर्तमान गंभीर परिस्थितियों को देखकर प्रशासन तुरंत संज्ञान ले। शहर के शुभचिंतकों की जानकारियों पर भरोसा करें तो जो खबरें आ रही हैं, वे बेहद चौंकाने वाली एवं खतरनाक हैं। कारण, जो 23 अक्टूबर की रात में हुआ, वह ऐसा लगता है पूर्व नियोजित था। यह जांच होनी ही चाहिए कि हथियार लाने वाले हाथ किसके थे और उन पर किसका हाथ था? यह भी जांच का विषय होना ही चाहिए कि चेम्बर के चुनाव में इतना बेतहाशा पैसा क्यूं फूंका गया? आयकर विभाग को भी चाहिए कि वह इस पर कड़ा संज्ञान ले। क्या मंच का उपयोग निजी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए हो रहा है? इस पर स्वयं चेम्बर को आत्म निरीक्षण करना चाहिए। वहीं प्रशासन को चाहिए कि वह गहराई से जांच करे कि आखिर यह सब खेल क्या है? कारण, ग्वालियर अंचल में उद्योग ठप है। व्यवसाय में कोई खास प्रगति नहीं है, पर जमीनों का कारोबार जबरदस्त चल रहा है। यही समय है कि उनकी पड़ताल की जाए और शहर में एक स्वस्थ वातावरण बनाने का प्रयास किया जाए। तब तक चेम्बर का नियंत्रण प्रशासन करे। इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। अच्छा हो हाउसों की परम्परा को ही समाप्त कर चेम्बर के सदस्य स्वयं ही अपने नुमाइंदे चुनें और उन्हें नेतृत्व प्रदान करें, पर आज हालात कड़वाहट के हैं और इसके लिए प्रतीक्षा करनी होगी, पर प्रयास शुरू किए जा सकते हैं।

Updated : 26 Oct 2015 12:00 AM GMT
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