नई दिल्ली | मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) वी एस संपत कल पदमुक्त हो जाएंगे। अपने छह साल से कुछ कम के घटनाओं से भरे कार्यकाल में कभी कभार ही वह विवादों में फंसे। इस दौरान दो लोकसभा चुनाव और सभी राज्यों में कम से कम एक बार विधानसभा चुनाव भी हुआ। चाहे आईएएस में हों या आयोग में, हमेशा लो प्रोफाइल रहने वाले वीरावल्ली सुंदरम संपत कल 65 साल के हो रहे हैं। संविधान के तहत इस पद के लिए यह निर्धारित उपरी आयु सीमा है। पांच चरण में होने वाले लोकसभा चुनाव के अंत में मार्च 2009 में आयुक्त का पदभार ग्रहण करने वाले संपत पिछले साल मई में आम चुनाव संपन्न होने के बाद सीईसी के तौर पर पदमुक्त हो रहे हैं। उनके इस कार्यकाल में पिछले दिसंबर में जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव हुआ जहां सर्द मौसम और आतंकी खतरे के बावजूद रिकार्ड वोटिंग हुयी। 1975 बैच के आंध्रप्रदेश कैडर के अधिकारी संपत जिलाधिकारी बने और उन्होंने राज्य प्रशासन के विभिन्न विभागों में काम किया। 90 के दशक में राज्य में बिजली सेक्टर में बड़े पैमाने पर हुए सुधार का रास्ता उन्होंने ही तैयार किया। बाद में संपत केंद्र में आए और ग्रामीण विकास और बिजली मंत्रालयों में सचिव बने। इसके बाद पदोन्नत होकर वह चुनाव आयोग पहुंचे। बहरहाल, 2014 लोकसभा चुनाव के दौरान भी वह दो बार विवाद में घिरे। पहला जब वाराणसी में एक सांप्रदायिक रूप से संवदेनशील इलाके में नरेंद्र मोदी की जनसभा को उन्होंने अनुमति नहीं दी और दूसरा जब अहमदाबाद में मतदान वाले दिन एक मतदान केंद्र के नजदीक एक प्रेस सम्मेलन को संबोधित करते हुए मोदी ने भाजपा का चुनाव चिहन प्रदर्शित किया। मोदी वाराणसी से उम्मीदवार थे। वाराणसी के फैसले से भाजपा नाराज हो गयी, लेकिन संपत जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक के फैसले के पक्ष में खड़े रहे, जिन्होंने रैली आयोजित करने के खिलाफ उत्तर प्रदेश और गुजरात पुलिस के पेशेवराना परामर्श का पालन किया। अहमदाबाद वाली घटना में एक अलग मामला था। स्थानीय अदालत ने अपराध शाखा की क्लोजर रिपोर्ट मंजूर कर ली, जिसमें कहा गया था कि मोदी ने चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन नहीं किया। उस समय मोदी भाजपा की तरफ प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे। अपने कार्यकाल में संपत ने 2012 में राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति के चुनाव का भी नेतृत्व किया। लंबे समय तक चरमपंथ से प्रभावित रहे जम्मू कश्मीर और माओवाद प्रभावित झारखंड में मतदान वाले दिन बिना किसी हिंसा के शांतिपूर्ण तरीके से विधानसभा चुनाव करावना भी उनकी एक अहम उपलब्धि रही। जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव में रिकॉर्ड 66 प्रतिशत मत पड़े, जो राज्य के लिए सर्वोच्च था। संपत के कार्यकाल में चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण द्वारा चुनावी खर्चे का गलत ब्यौरा देने पर पूछा कि क्यों नहीं उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया जाए। 25 विज्ञापनों में उनका नाम, निर्वाचन क्षेत्र और उनकी तस्वीरें प्रमुखता से प्रकाशित हुयी थी। मामले में अब दिल्ली उच्च न्यायालय में अपील हुयी है जिसने चुनाव आयोग के फैसले पर रोक लगा दी। संपत के कार्यकाल में चुनाव आयोग ने कई महत्वपूर्ण फैसले किये जिसमें मतदाता के दरवाजे तक फोटो के साथ मतदाता पहचान पर्ची का वितरण, लोकसभा चुनावों में अब तक के सबसे ज्यादा, 11 घंटे मतदान की इजाजत और मतदान में भागीदारी के लिए लोगों के बीच जागरुकता बढ़ाने के लिए भारतीय सूचना सेवा अधिकारियों से जागरूकता पर्यवेक्षक की नियुक्ति के फैसले शामिल रहे। इससे बड़ी संख्या में मतदाता घरों से निकले और 2014 के लोकसभा चुनाव में मतदान का रिकार्ड 66.4 प्रतिशत को छू गया जबकि इससे पहले 2009 में यह 58.9 प्रतिशत ही रहता था। सात लोकसभा क्षेत्रों में वेरिफायबल वोटर पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) की शुरुआत और सोशल मीडिया को मीडिया कानून और नियमन के दायरे में लाने का भी फैसला अहम रहा। इसकी बदौलत 83.40 करोड़ वोटरों में से 55.38 करोड़ ने मतदान किया। 2009 में 71.69 करोड़ मतदाताओं में से 41.73 करोड़ ने मतदान किया था। पांच साल में वोटरों की संख्या में 16.34 प्रतिशत का इजाफा हुआ। लोकसभा चुनावों को देखने के लिए 37 देशों के प्रतिनिधि भारत आए थे।
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मुख्य चुनाव आयुक्त वीएस संपत कल होंगे पदमुक्त
Updated : 2015-01-14T05:30:00+05:30
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