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जनमानस

बेटा मत बनना किसान


कल एक खबर पढ़ी, पढ़कर हृदय को मर्मान्तक पीड़ा हुई, आंखें नम हो गई, खबर है मेडक तैलगाना के एक गांव में एक किसान अपने सात वर्ष के बेटे के स्कूल गया, चाय पिलाई पांच रुपए देकर कहा मन लगाकर पढऩा और उसके बाद अचानक कहा बेटा किसान मत बनना, शिक्षिका कृष्णा से मिला और चला गया, आधे घण्टे के बाद खबर मिली कि उक्त किसान ने आत्महत्या कर ली है।
भारत जैसे कृषि प्रधान देश में अगर इस तरह किसान आत्म हत्यायें कर जीवन लीला समाप्त करेंगे तब देश का भविष्य क्या होगा? सियासी वादों इरादों और योजनाओं के बावजूद देश में किसान आत्महत्या करने पर विवश है। 2001 से 2011 तक लगभग देश के 90 लाख किसानों ने खेती छोड़ शहरों में मजदूरी से नाता जोड़ लिया है।
हमारे देश के किसानों की दशा और दिशा सुधारने की कोई ठोस रणनीति क्यों नहीं बनी है। क्या योजनाओं का लाभ किसानों तक पहुंच रहा है। इसकी चिंता देश के रहनुमाओं को है। किसान आत्महत्याएं न करें, इसके लिए पेट से पत्थर बांधकर न सोये ऐसे सार्थक प्रयास होने चाहिए।

कुंवर वीरेन्द्र सिंह विद्रोही, ग्वालियर

Updated : 21 July 2014 12:00 AM GMT
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