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ज्योतिर्गमय

मन की शक्ति


मन को जितना अधिक स्वच्छ और सुंदर रखा जाए वह उतना ही अधिक स्वस्थ और स्फूर्तिवान होता है। जिस प्रकार बगीचे की स्वच्छता, सुंदरता और हरियाली मन को तरोताजा और उत्साहित कर देती है उसी प्रकार सकारात्मक भावनाओं के साथ निर्मल मन व्यक्ति के व्यक्तित्व को जीवंत कर देता है, उसे खूबसूरत, परोपकारी और करुणामय बना देता है। मन के सात्विक भावों के माध्यम से व्यक्ति शारीरिक बीमारियों पर भी काबू कर सकता है। कहते हैं कि पहले इंसान का मन बीमार होता है और फिर शरीर। मन उस समय बीमार होता है जब उसमें आध्यात्मिकता का लोप हो जाता है। लोग ईष्र्यालु, झगड़ालु, लोभ और क्रोध सरीखी नकारात्मक प्रवृत्तियों के कारण मानसिक रूप से बीमार होते हैं और फिर मन की ये कुत्सित प्रवृत्तियां शरीर पर नजर आने लगती हैं। इस कारण व्यक्ति बीमार हो जाता है। हालांकि जीवाणु और विषाणु से पैदा होने वाली बीमारियां और अन्य संक्रामक रोगों के चलते भी व्यक्ति बीमार पड़ता है, लेकिन व्यक्ति के बीमार पडऩे का एक कारण नकारात्मक मानसिक प्रवृत्तियां भी हैं। अध्यात्म के साथ शुद्ध व सात्विक प्रवृत्तियों वाला मन भी व्यक्ति के जीवन को सफल बनाता है। मन मस्तिष्क और पूरे शरीर को नियंत्रण में रखता है। जोस सिल्वा अपनी पुस्तक यू द हीलर में लिखते हैं कि मन, मस्तिष्क को संचालित करता है और मस्तिष्क शरीर को और इस तरह शरीर आदेश का पालन करता है। मस्तिष्क उपचार के लिए एक इंद्रिय है।
मस्तिष्क की न्यूरॉन कोशिकाएं मन में उठने वाले विचारों के अनुसार कार्य करती हैं। यदि विचार और कार्य सकारात्मक होते हैं तो कोशिकाएं प्रफुल्लित होकर कार्य को अंजाम देती हैं। इसके विपरीत मन में उठने वाले दूषित विचारों से कोशिकाएं मंद और सुस्त पड़ जाती हैं। व्यक्ति को रोगों से घबराए बिना अपने मन को कमजोर नहीं पडऩे देना चाहिए। मन के माध्यम से हमेशा स्वस्थ और प्रेरक विचारों से रोगों का सामना करना चाहिए। जब मन आध्यात्मिक रूप से सद्वृत्तियों के साथ आचरण करता है तो वह व्यक्ति के कार्य और लक्ष्य को भी ऊंचाई और सफलता के शीर्ष पर स्थापित कर देता है। 

Updated : 30 April 2014 12:00 AM GMT
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