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ज्योतिर्गमय

समय-संपदा


शक्तियों की धारा को निरर्थक और हानिकारक कार्यो की दिशा में न ले जाकर उसे सार्थक व कल्याणकारी कार्यो में लगाना श्रेयस्कर है। इसके लिए समय का संयम रखना परम आवश्यक है। वास्तव में समय एक ऐसी संपदा है, जो चली जाए तो पुन: लौटकर नहीं आती। समय रूपी संपदा की कीमत पर कोई भी सफलता प्राप्त की जा सकती है। समय का सदुपयोग करने वाले पुरुष कभी भी निराश नहीं होते। सफलता स्वयं उनके चरण चूमती है। समय का पालन प्रकृति प्रदत्त नियमों में प्रमुख है। सूर्य समय से निकलता है और समय से अस्त होता है। विश्व में जितने भी महापुरुष हुए हैं वे सदैव समय के सच्चे पुजारी रहे हैं। इसके विपरीत जो आलसी होते हैं वे जीवन में चूक कर जाते हैं। कभी-कभी कार्य में असफल या कार्य न कर पाने वाले व्यक्ति समय न मिल पाने का बहाना बनाकर अपने मन को धोखा देने का प्रयत्न करते हैं। प्रभु ने प्रत्येक व्यक्ति के साथ समानता का व्यवहार किया है, क्योंकि दिन में कार्य करने के लिए सभी के पास चौबीस घंटे उपलब्ध हैं। बस एक ही कारण है-समय की अव्यवस्था। इसी कारण समय अनुपयोगी कार्यो में लग जाता है।
जो समय का सदुपयोग नहीं कर पाते, वे जीवन जीते नहीं, बल्कि काटते हैं। जीवन की सफलता इसी में है कि जितने दिन जिएं उसका एक-एक पल सार्थक व्यतीत हो। जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। विवेकशील और सदाचारी व्यक्ति प्रत्येक क्षण को मूल्यवान समझकर उसका सदुपयोग करते हैं। जीवन में कुछ कर गुजरने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने किसी भी कार्य को कल पर न छोड़े।

जीवन में सफलता के लिए जहां परिश्रम व पुरुषार्थ का महत्व है वहां समय का सामंजस्य उससे भी अधिक आवश्यक है। श्रम तभी संपत्ति बनता है, जब समय का सही समायोजन किया गया हो। नियत समय पर काम करने से शरीर और इंद्रियों को उसका अभ्यास व आदत पड़ जाती है और मन को भी बड़े सुख की अनुभूति होती है। मनुष्यों की प्रगति के मार्ग में अनियमितता की आदत अत्यंत बाधक है। सुनियोजित दिनचर्या का पालन करने वाले व्यक्ति एक के बाद एक प्रगति की सीढ़ी चढ़ते चले जाते हैं।

Updated : 19 March 2014 12:00 AM GMT
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