जनमानस
स्वाभिमान का प्रतीक है वंदेमातरम
राष्ट्रीय स्वाभिमान और देशभक्ति वह अनुभूति है, जो किसी भी देश के नागरिक के मन में जोश और उमंग भर कर उसे अपने देश के प्रति आत्मस्वाभिमान की भावना से भर देता है। ऐसी ही जोश, उमंग एवं स्वाभिमान की भावना से परिपूर्ण है हमारा राष्ट्रीय गीत 'वंदेमातरम। यह गीत भारत की सनातनी संस्कृति, संस्कारों एवं स्वाभिमान से भरपूर है। इसी प्रकार 'जन गण मन का राष्ट्रगान हमें आत्म गौरव पूर्ण संप्रभुत्व स्वतंत्र राष्ट्र के नागरिक होने का गौरव प्रदान करता है। दोनों में कोई अंतर नहीं है, परन्तु हमारे देश के कुछ कथाकथित राजनैतिक दल, उनके स्वनाम धन्य तुष्टिकरण के पैरोकार नेता तथा मजहब और पंथों के ठेकेदार 'वंदे मातरम को इस कारण सम्मान नहीं देते हैं कि कहीं उनका परम्परागत वोट बैंक, जिनके कंधों पर यह लोग साठ सालों से अपनी सत्ता की पालकी उठवा रहे हैं, नाराज न हो जाएं। तुष्टिकरण एवं छद्म साम्प्रदायिकता के नागफांस में जकड़े हुए यह सत्ताभोगी इतने भयाक्रांत रहते हंै कि 'वंदेमातरम इन लोगों को हिन्दू भगवाकरण तथा हिन्दुत्व का छिपा हुआ एजेण्डा लगता है। इसी कारण ये छद्मवादी वंदेमातरम से न केवल दूरी बना कर चलते हैं, बल्कि आवश्यकता पडऩे पर इस राष्ट्रीय गीत का कड़ा विरोध भी कर के देश का अपमान करने से भी बाज नहीं आते। इसी कारण दिल्ली उच्च न्यायालय को विगत दिनों एक जनहित याचिका पर भारत सरकार को यह निर्देश देना पड़ा कि भारत सरकार राष्ट्रगान 'जन गण मन के समान ही राष्ट्रीगीत 'वंदेमातरम को भी पूर्ण सम्मान देने के लिए 'राष्ट्रीय सम्मान अधिनियम 1971Ó में संशोधन कर देश की सभी राज्य सरकारों को आवश्यक निर्देश जारी करे।
अब यह विचार किया जाना चाहिए कि राष्ट्रीय स्वाभिमान और देश भक्ति के इन दोनों प्रतीकों ''वंदेमातरम एवं जन गण मन में देश की कथित धर्मनिरपेक्ष सरकारें एवं इस देश के यह कथाकथित संगठन एवं राजनैतिक दल भेदभाव एवं हिन्दू भगवाकरण को क्यों देखते हैं। क्या वंदेमातरम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का गीत है। क्या वंदेमातरम के रचनाकार वंकिमचंद चट्टोपाध्याय कट्टर हिन्दूवादी गीतकार थे। क्या भारत माता के प्रति सम्मान और श्रद्धा में गाया गया कोई गीत या आयोजन जाति, धर्म एवं पंथ का प्रतीक होता है। अगर नहीं तो उसको सम्मान देने में मजहबी एवं पंथीय भावना राष्ट्रीय भावना से ऊपर क्यों है। यह सरकारों और देश के नीति नियंताओं के लिए सोचनीय विषय नहीं है कि न्यायालय को इस प्रकार के निर्णय देने पड़ रहे हैं। सरकार और देश के कथाकथित राजनैतिक दल एवं मजहबी संगठन देश में इस प्रकार की अपमानजनक कार्यवाहियां क्यों करते हैं कि उनकी राष्ट्रीय निष्ठा बार-बार विवादित हो कर चर्चा का विषय बन जाती है।
दिलीप कुमार मिश्रा, ग्वालियर