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ज्योतिर्गमय

शब्द शक्ति 


मौन वाणी का संयम है। जब वाणी शब्दों के माध्यम से प्रकट होती है, तो वह गहरा प्रभाव छोड़ती है। जैसे जीवन का अंतिम सत्य मृत्यु है वैसे ही वाणी का अंतिम सत्य मौन है। अक्षर को ब्रह्म कहा गया है। अक्षर से शब्द बनता है और शब्द ही वाणी का विन्यास है। मनुष्य के एक-एक शब्द उसके व्यक्तित्व का प्रत्यक्षीकरण है। जीभ वाणी का माध्यम है। सुनने वाला आनंद विभोर भी हो सकता है। अगर जीभ के माध्यम से गलत शब्द निकल गए तो व्यक्ति बुरी तरह आहत भी हो जाता है। सारे खेल शब्दों के हैं। आधुनिक मनोविज्ञान भी मानता है कि शब्दों का व्यक्ति के मन-मस्तिष्क पर प्रबल प्रभाव पड़ता है। कोई शख्स किसी को अपशब्द कहता है, तब वह दूसरा शख्स उत्तेजित हो जाता है। जब हम किसी से प्रेमपूर्वक बात करते हैं तो वह दूसरा व्यक्ति प्रसन्न हो जाता है। दुनिया के विभिन्न धर्मो की प्रार्थनाएं ऊर्जावान शब्दों का सुंदर संगठन ही हैं। मंत्र शक्ति को महान माना जाता है। मंत्र शक्ति की यह शक्ति शब्दों के सुंदर समन्वय व संगठन से ही संबंधित है। कभी आपने सोचा है कि संगीत हमें रुचिकर क्यों लगता है। वैज्ञानिकों के अनुसार संगीत के प्रभाव का असर मनुष्यों पर ही नहीं, बल्कि वनस्पतियों पर भी पड़ता है। संगीत भी सुर-लय व ताल के साथ शब्दों का सुंदर संगठन ही है।
हम बिना विचारे जिन शब्दों का प्रयोग करते हैं और किसी को अकारण दुखी करने का दोषी बन जाते हैं। जीभ पर अगर विवेक का नियंत्रण न हो, जीभ अगर मर्यादा में न रहे तो अकारण हम तमाम दुश्मन पैदा कर लेते हैं। महाभारत की द्रौपदी ने एक बार दुर्योधन को शब्दों से घायल किया था और दूसरी बार अपने स्वयंवर में कर्ण को भी शब्दों से आहत किया था। इसका परिणाम कितना भयंकर हुआ। हम अपने जीवन में सुंदर शब्दों के प्रयोग से मित्रों और प्रशंसकों की संख्या बढ़ा सकते हैं और कड़े शब्दों के प्रयोग से हजार दुश्मन पैदा करते हैं। इसीलिए महावीर कहते हैं सम्यक वाणी बोलो और नानक कहते हैं कि अगर अच्छी वाणी नहीं बोल सकते हो, तो मौन रहना बेहतर है, क्योंकि मौन में वाणी का दुरुपयोग नहीं होता और कंटीले शब्दों से कोई घायल भी नहीं होगा। हमारा धर्म यही है कि हम अपने कार्यों और वाणी से किसी को दुखी न करें। यह भी एक प्रकार का तप है। 

Updated : 6 Dec 2014 12:00 AM GMT
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