श्रीहरिकोटा। भारत की नवीनतम पीढ़ी के रॉकेट जीएसएलवी एमके-3 का पहला प्रायोगिक प्रक्षेपण किया गया। यह देश का सबसे भारी रॉकेट है। इसे इसरो ने श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से आज सुबह 9.30 बजे प्रक्षेपित किया ।
इस रॉकेट पर कुल 160 करोड़ रुपए खर्च हुए है। नई पीढ़ी के प्रक्षेपण यान के विकास और अंतरिक्ष से धरती पर लौटने की तकनीक हासिल करने के लिए इसरो ने यह सफल परीक्षण किया है। यान अपने साथ एक मानव रहित क्रू मॉड्यूल भी साथ लेकर गया है। इस परीक्षण में अंतरिक्ष से लौटने की तकनीक का भी परीक्षण किया जा रहा है। 630 टन वजनी यह यान करीब 3.65 टन वजनी क्रू-मॉड्यूल लेकर जा रहा है। यह इसरो का यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजने की योजना का हिस्सा है ।
इसरो का ये अत्याधुनिक रॉकेट चार टन या उससे अधिक वजन के सैटेलाइट ले जाने में सक्षम है। इसकी लांचिंग से भारत की अंतरराष्ट्रीय भूमिका को भी बल मिलेगा और इसरो अपनी इस क्षमता से अन्य अंतरिक्ष एजेंसियों के भारी सैटेलाइट लांच कर, इसका व्यावसायिक इस्तेमाल कर सकेगा। इसरो को अंतरिक्ष में अपना मानव मिशन भेजने के लिए अन्य तकनीकें भी उसे विकसित करनी हैं। यदि 1600 डिग्री सेल्सियस तक गरम वायुमंडल से कैप्सूल को सकुशल धरती पर वापस लाया जा सका तो इसका मतलब होगा कि इसरो ऐसा कैप्सूल बनाने में सक्षम है जो इतनी विपरीत परिस्थितियों को भी झेल सकता है।
गौरतलब हो कि ऐसे कैप्सूल में ही अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजा जाता है। हालांकि इस प्रयोग के सफल रहने के बाद भी इसरो को अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने में लगभग पांच साल लगेंगे
भारत ने किया सबसे वजनी रॉकेट जीएसएलवी-मार्क3 का सफल परीक्षण
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Updated : 2014-12-18T05:30:00+05:30
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