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क्या अभी भी नस्लवादी है अमेरिका?



माइकल ब्राउन एवं ऐरिक गार्नर की मौत के प्रकरण में ग्रैण्ड ज्यूरी के फैसलों के विरोध में होने वाले प्रदर्शनों के कारण अमेरिका सहित पूरी दुनिया में यह चर्चा शुरू हो गई है कि क्या अमेरिका को अभी भी रंगभेद एवं नस्लवाद जैसी सामाजिक बुराइयों से पूरी तरह निजात नहीं मिल पाई है? इसके उत्तर में मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि जिस देश का राष्ट्रपति बराक ओबामा हो उस देश पर कम से कम नस्लवाद का आरोप लगाना उचित प्रतीत नहीं होता है। लेकिन फिर भी दोनों घटनाओं को नस्लवाद से जोड़कर देखने का प्रयास किया जा रहा है। क्योंकि मरने वाले अश्वेत हैं जिन्हें श्वेत पुलिस कर्मियों ने मारा है तथा ग्रैण्ड ज्यूरी द्वारा दोनों ही प्रकरणों में मारने वाले पुलिस वालों को दोषी नहीं माना गया है। इतने हिंसक प्रदर्शनों एवं आन्दोलनों के बावजूद भी वहां के गवर्नर अथवा राष्ट्रपति द्वारा कोई दखल न देना इस बात का प्रमाण है कि वे ग्रैण्ड ज्यूरी के फैसले से सहमत हैं। अमेरिका में हथियार बिना लायसेन्स के मिलते हैं जिसके कारण आये दिन फायरिंग की घटनायें होती रहती हैं इसलिए वहां के कानून ने पुलिस वालों को विशेष अधिकार दिये हुए हैं। काफी हद तक ये विशेष अधिकार ही ऐसी घटनाओं के लिए जिम्मेदार हैं। जब तक अमेरिका शस्त्र लायसेन्स कानून के संबंध में कठोर निर्णय नहीं लेगा तब तक ऐसी घटनाओं को रोकना बहुत मुश्किल होगा एवं जब तक ऐसी घटनायें घटती रहेंगी तब तक अमेरिका पर ऐसे आरोप लगते रहेंगे। जबकि लगभग सभी का यह मानना है कि अब अमेरिका में रंगभेद एवं नस्लवाद के लिए कोई जगह नहीं है। दुनिया के सबसे ताकतवर, विकसित एवं लोकतांत्रिक देश होने के बावजूद अमेरिका को अभी भी दुनिया से बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है एवं आज नहीं तो कल अमेरिका को हथियारों के लिए लायसेन्स व्यवस्था लागू करनी ही पड़ेगी। ओबामा ने इसकी शुरूआत भी की थी लेकिन हमेशा की तरह शस्त्र लॉबी के दबाव के कारण प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पाई।
प्रो. एस. के. सिंह, ग्वालियर

Updated : 12 Dec 2014 12:00 AM GMT
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