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जनमानस

मंगलयान से बढ़ा भारत का गौरव

भारतीय अंतरिक्ष ऐजेंसी (इसरो) का मंगलयान अभियान जिसे मार्क आर्बिटर मिशन के नाम से जाना जाता है, भारत की प्रथम मंगल उड़ान में ही सफलता के झंडे गाडऩे वाला अभियान था। दूसरे देशों की तुलना में कम खर्च (लगभग 450 करोड़ रुपए) व कम समय में इसरो का यह सफल प्रयास भारत को विश्व में गौरवान्वित करने वाला प्रयास है। मंगल पर पहुंचने वाला भारत एशिया का प्रथम राष्ट्र बन गया है।
मंगलग्रह की यह यात्रा वास्तव में इसरो के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि है जिस पर सभी देशवासियों को गर्व महसूस हो रहा है। हम भारतीय विज्ञान से एक अनोखा रिश्ता रखते हैं खासकर खगोल विज्ञान से। क्योंकि हर ग्रह को हम पूजते हैं, उसे दैवीय स्वरूप में देखते हैं और आज उसी लाल माटी के देवता पर हम पहुंच गए। ज्योतिष में ग्रहों का महत्वपूर्ण स्थान होता है कहा जाता है कि जिस मंगल उच्च या नीच का होता है उसके साथ जीवन में हमेशा ही उथल-पुथल रहती है। ऐसे मंगल देव पर आज हम अपना खोजी यान भेजकर सारे संसार में सराहनीय हो गए हैं।
यह यान अपनी सफलता के साथ भारत को, उसकी राकेट लांचिग सिस्टम की विश्वसनीयता, उसकी रचना, उसके आपरेशन प्रणाली आदि में, स्थापित करने एक मील का पत्थर साबित होगा। लाल ग्रह पर जीवन की सम्भावनाओं व अन्य वैज्ञानिक क्रियाकलापों में यह यान काफी मददगार साबित होगा। इस यान द्वारा आंतरिक अंतरिक्ष सम्प्रेषण, नेवीगेशन, मिशन प्लानिंग और उसके प्रबन्धन में बहुत सहयोग प्राप्त होगा। यह सफलता भारत को सांप-सपेरों के देश से वैज्ञानिक देश के रूप में परिवर्तन की एक बड़ी कहानी है। जिसके लिए इसरो के सभी वैज्ञानिक खासकर वो जो इन मिशन में दिन-रात लगे रहे, समस्त देशवासियें की ओर से बधाई के पात्र हैं। इस महान वैज्ञानिकों से देश का नाम आगे ऐसे ही रोशन करने की उम्मीद हमेशा हर भारतीय को रहेगी। इससे हमारी राष्ट्रभक्ति की भावना को भी बल मिला है। यह सभी का मिशन था, भारत का मिशन था और आगे भी ऐसी ही भावना से हम आगे बढ़ेंगे।

ब्रह्मजीत सिंह कुशवाह, ग्वालियर

Updated : 8 Oct 2014 12:00 AM GMT
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