ज्योतिर्गमय
आत्म-साक्षात्कार का सूत्र
मनुष्य को मानव जीवन के तीन शत्रुओं- काम, क्रोध तथा लोभ से अत्यंत सावधान रहना चाहिए।
जो व्यक्ति जितना ही इन तीनों से मुक्त होगा, उतना ही उसका जीवन शुद्ध होगा। तब वह वैदिक साहित्य में आदिष्ट विधि-विधानों का पालन कर सकता है और मानव जीवन के विधि-विधानों का पालन करते हुए वह अपने आपको धीरे-धीरे आत्म साक्षात्कार के पद पर प्रतिष्ठित कर सकता है।वैदिक साहित्य में कर्म तथा कर्मफल की विधियों का आदेश है, जिससे मनुष्य शुद्धि की अवस्था (संस्कार) तक पहुंच सके। सारी विधि काम, क्रोध तथा लोभ के परित्याग पर आधारित है। इस विधि का ज्ञान प्राप्त करके मनुष्य आत्म-साक्षात्कार के उच्च पद तक उठ सकता है और इस आत्म-साक्षात्कार की पूर्णता भक्ति में है।
प्रत्येक व्यक्ति को इन विधि-विधानों का पालन करना होता है। यदि कोई इनका पालन न करके काम, क्रोध और लोभवश स्वेच्छा से कार्य करता है, तो उसे जीवन में कभी सिद्धि प्राप्त नहीं हो सकती। दूसरे शब्दों में, भले ही मनुष्य ये सारी बातें सिद्धांत के रूप में जानता रहे, लेकिन यदि वह इन्हें अपने जीवन में नहीं उतार पाता, तो वह अधम जाना जाता है। मनुष्य योनि में जीव से आशा की जाती है कि वह बुद्धिमान बने और सर्वोच्च पद तक जीवन को ले जाने वाले विधानों का पालन करे।
किन्तु यदि इनका पालन नहीं करता, तो उसका अध:पतन हो जाता है। लेकिन फिर भी जो विधि-विधानों तथा नैतिक सिद्धांतों का पालन करता है, किन्तु अंततोगत्वा परमेश्वर को समझ नहीं पाता, तो उसका सारा ज्ञान व्यर्थ जाता है और यदि वह ईश्वर के अस्तित्व को मान भी ले, किन्तु यदि वह भगवान की सेवा नहीं करता, तो भी उसके प्रयास निष्फल हो जाते हैं। अतएव मनुष्य को चाहिए कि अपने आप को कृष्णभावनामृत तथा भक्ति के पद तक ऊपर ले जाए, तभी वह परम सिद्धावस्था को प्राप्त कर सकता है, अन्यथा नहीं।