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ज्योतिर्गमय

मन ही बंधन मन ही मोक्ष

जहां 'मैं नहीं हूं वहां मोक्ष है. जहां 'मैं हूं वहां बन्धन है। मन ही मनुष्य का बंधन और मोक्ष का कारण है।
मनुष्य अपने ही मन के बन्धन से बंधता है, अपने ही मन से मोक्ष पाता है। जब आप सुखी महसूस करते हो तो बंधन महसूस नहीं होता। बंधन से सुख नहीं हो सकता. सुख में हम होते नहीं, आनन्द में हम होते नहीं। इसलिये वहां आनन्द की चाह है, मिटने की चाह है।
तो छोटा 'मैं मिटकर बड़े 'मैं को उपलब्ध कर लेता है। जैसे साबुन के बुलबुले के भीतर जो आकाश है, वह फटते ही बड़े आकाश में मिल जाता है। उसी तरह जो मन इस घट के भीतर होता है, उसके फूटते ही वह अनंत आकाश में मिल जाता है। 'मैं कुछ हूं जब यह समझते हैं तो बंधन है। 'मैं कुछ भी नहीं हूं यह समझ में आते ही छोटा 'मैं टूट जाता है।
जब छोटा 'मैं टूटता है तो बड़े 'मैं का उदय होता है। अहम माने 'मैं कुछ हूं। तो जहां 'मैं होता है, वहां बंधन है। जहां 'मैं नहीं होता, वहां मोक्ष है। इसलिए कोई कह नहीं सकता कि मुझे मुक्ति मिल गई या मुझे मोक्ष चाहिए। यह भी कहना गलत है कि मुझे मोक्ष चाहिए। या तो मोक्ष हो सकता है या तुम हो सकते हो. यह चुनौती है।
दोनों में एक ही हो सकता है, दोनों नहीं. यदि तुम मिटो, तो वहां ज्ञान हो जाएगा, मोक्ष मिल जाएगा। जब तुम होते हो तो अपने राग-द्वेष, इच्छा द्वेष, सुख दुख, संघात, चेतना धृति में बंधे रहोगे। मुझे यह नहीं चाहिए, वो नहीं चाहिए। मैं यह हूं, मैं वह हूं। इस तरह की भावनाएं जब तक होंगी, तब तक मोक्ष नहीं है। ऐसे बन जाओ जैसे तुम हो ही नहीं, ऐसे जियो जैसे तुम हो ही नहीं। यही जीवन मुक्ति है।
हर व्यक्ति को जितना हम तैयार कर सकते हैं, उतना तैयार करते हैं. उसे आगे भेजते हैं। कई गुरुओं से शिक्षा तो लेते हैं, फिर जब आत्म ज्ञान मिल जाता है तो सब पूर्ण हो जाता है. तब कहते हैं सद्गुरु मिल गये. सद्गुरु ने पूर्ण कर दिया, मंजिल तक पहुंचा दिया, तृप्त कर दिया, शान्त कर दिया। बात सही है, तुम सब में एक को देखो और एक में सबको देखो।
गुरु के पास आते हैं तो गुरु में ही सबको देखो, ब्रह्मा-विष्णु-महेश, शिव शक्ति, माता-पिता, सबको उनमें देखो, फिर सबमें गुरु को देखो। यह प्रेम पथ का, ज्ञान पथ का रहस्य है।

Updated : 10 Sep 2013 12:00 AM GMT
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