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रुपये में गिरावट का कारण, अटकलबाजी या आर्थिक?

रुपये में गिरावट का कारण, अटकलबाजी या आर्थिक?
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नई दिल्ली |
रुपये के लगातार हो रहे अवमूल्यन का कारण क्या है? अटकलबाजी या आर्थिक? विशेषज्ञों के मुताबिक इसके कई कारण हैं। लेकिन कारण चाहे जो भी हो, अधिकतर विशेषज्ञ मानते हैं कि इसमें और गिरावट हो सकती है। जनवरी में रुपया प्रति डॉलर 55 के स्तर पर था, अभी यह 18 फीसदी नीचे 65 के स्तर पर है। ब्रिटेन के पाउंड स्टर्लिग के मुकाबले यह 100 के स्तर से भी नीचे चला गया है।पिछले सप्ताह रुपये में करीब पांच फीसदी गिरावट दर्ज की गई। कुछ विश्लेषक जहां यह मानते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचनागत खामियों के कारण रुपये का अवमूल्यन हो रहा है, वहीं कुछ अन्य मानते हैं कि इसका कारण अटकलबाजी तथा बाहरी है। देश में डिलायटी के वरिष्ठ निदेशक अनीस चक्रवर्ती ने कहा, "अवमूल्यन का कारण सिर्फ मनोवैज्ञानिक नहीं हैं। इसका ठोस आर्थिक कारण है।" उन्होंने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था में संरचनागत समस्याओं के कारण निवेश और विकास बाधित हो रहा है और इसे ठीक करने से शेयर बाजार तथा रुपये की गिरावट थम सकती है। उन्होंने कहा कि चालू खाता घाटा पिछले पांच सालों में 10 गुणा बढ़ गया है। चालू खाता घाटा का मतलब यह है कि निर्यात से देश को जितनी राशि मिल रही है, उससे कहीं अधिक राशि आयात के कारण बाहर जा रही है। 2007-08 में यह घाटा आठ अरब डॉलर था, जो 2012-13 में 90 अरब डॉलर हो गया। इस घाटे से विदेशी पूंजी भंडार पर दबाव बढ़ता है। विदेशी पूंजी भंडार का उपयोग भारतीय रिजर्व बैंक रुपये में स्थिरता बनाए रखने में करता है। चालू खाता घाटा सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के 4.8 फीसदी तक पहुंच गया है। वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने गुरुवार को कहा था कि रुपये में जरूरत से ज्यादा गिरावट हुई है। यह अस्थायी है। वहीं ब्रोकर कंपनी कासा के सलाहकार सिद्धार्थ शंकर ने कहा, "इसमें अफवाह की अधिक भूमिका है और यह जरूरत से ज्यादा हो चुका है। पिछले कुछ महीने में ऐसा कोई आर्थिक विकास नहीं हुआ है, जिससे ऐसी अस्थिरता पैदा होनी चाहिए।" डायचे बैंक और कई थिंक टैंक मानते हैं कि रुपये में और गिरावट आ सकती है। जर्मनी के बैंक ने कहा कि एक महीने या कुछ अधिक समय में रुपया डॉलर के मुकाबले 70 के स्तर पर पहुंच सकता है। हालांकि साल के अंत तक इसमें मजबूती लौट सकती है।

Updated : 25 Aug 2013 12:00 AM GMT
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