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नफरत फैलाने वाले भाषणों पर सर्वोच्च न्यायालय की केंद्र को फटकार

नफरत फैलाने वाले भाषणों पर सर्वोच्च न्यायालय की केंद्र को फटकार
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नई दिल्ली | राजनीतिज्ञों और सामाजिक तथा धार्मिक संगठनों के नेताओं के नफरत फैलाने वाले भाषणों पर रोक लगाने के लिए दिशानिर्देश तय करने की मांग कर रही एक याचिका पर उच्चतम न्यायालय ने आज केंद्र सरकार से प्रतिक्रिया मांगी। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति अल्तमस कबीर की अगुवाई वाली एक पीठ ने महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश की सरकारों को भी नोटिस जारी किए हैं। इन दोनों राज्यों में हाल के दिनों में कथित तौर पर नफरत फैलाने वाले भाषण देने की घटनाएं हुई हैं। जनहित याचिका में तर्क दिया गया है कि धर्म, क्षेत्र, जाति या जन्मस्थान को लक्ष्य करने वाले भाषण संविधान के प्रावधानों के खिलाफ हैं। पीठ ने इस मुद्दे पर निर्वाचन आयोग से भी जवाब मांगा है।
जनहित याचिका एक गैर सरकारी संगठन प्रवासी भलाई संगठन ने दायर की है जिसमें कहा गया है कि नफरत फैलाने वाले भाषण लोकतांत्रिक तानेबाने को नष्ट करते हैं और संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं इसलिए उन पर रोक लगाने के लिए दिशानिर्देश तैयार करने की जरूरत है। इस याचिका में महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश का नाम प्रतिवादियों के तौर पर हैं, क्योंकि दोनों राज्यों में कथित तौर पर नफरत फैलाने वाले भाषण देने की घटनाएं हाल के दिनों में हुई हैं। याचिका में महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे के कथित तौर पर नफरत फैलाने वाले भाषणों का संदर्भ देते हुए दावा किया गया है कि राज्य में इस संबंध में कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई। जनहित याचिका में यह भी कहा गया है कि आंध्रप्रदेश में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलीमीन के नेता अकबरुद्दीन ओवैसी ने कथित तौर पर नफरत फैलाने वाले भाषण दिए थे और उन्हें गिरफ्तार भी किया गया था। याचिका में आरोप है कि लेकिन जमानत पर रिहा होने के बाद उन्होंने महाराष्ट्र के नांदेड़ में फिर ऐसे भाषण दिए।

Updated : 8 April 2013 12:00 AM GMT
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