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जनमानस

ऋणग्रस्त भारत का जिम्मेदार कौन?


भारत के प्रत्येक नागरिक के ऊपर पिछले वर्ष की समाप्ति तक 14683 रुपए ऋण था। इस ऋण को घटाने या सम्पूर्ण रूप से चुकाने की सरकार की कोई योजना नहीं है। संसार के सर्वाधिक ऋणग्रस्त राष्ट्रों में भारत का चौथा स्थान है।
इस स्थिति पर देश को पहुंचाने वाले हमारे अर्थशाी प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह है। डॉ. मनमोहनंिसह ने तो स्वावलंबन के विचार को ही बकवास कह दिया था। उनके बोए हुए बीज अब पेड़ बन गए हैं और प्रत्येक देशवासी के शरीर में चुभने लगे हैं। घाटे का बजट बनाकर विदेशी ऋण से ये देश को चलाना चाहते हैं। यह देश में बदलाव लाने का स्थायी समाधान नहीं है। यह तो विदेशी ऋण है। देश के भीतर का ऋण भी है। वह भी इतना ही होगा, लेते समय गैर जिम्मेदार मंत्रियों अपने मित्रों के घर भरने के लिए मनमानी ब्याज दर पर पैसा उधार ले लिया।
बजट का ध्यान से अवलोकन किया जाए तब पता चलता है कि राज्यों को कितनी राशि ब्याज में चुकानी पड़ती है। सब कुछ उधार के बल पर चल रहा है। इस कुनीति या दुर्नीति को ये अर्थशाी अपनी अर्थनीति कहते हैं। इसके लिए बड़े-बड़े नाम गढ़ लिए। सच यह है कि इनका अर्थशा इस विशाल देश के लिए नितान्त अनुपयुक्त है। यहां की सारी आर्थिक समस्याएं इनकी देन है। विदेशियों के लिए भारतीय बाजार खोल देने का निर्णय इनका अपना नहीं है। इन्हीं विदेशी आकाओं के जर खरीद गुलाम की तरह आचरण करके ये देश के निवासियों को क्या दिखाना चाहते हैं। न हमारे लिए उदारीकरण का कोई अर्थ है, न भूमंडलीकरण का। बाजारू का अर्थ हर भारतीय जानता है। देश को इन इस या उस के एजेंटों से बचाना है, तो आम आदमी को ही जागना होगा। विदेशी निवेश के नाम पर देश को बेचने वालों से किसी भी प्रकार की आशा रखना छोड़ें।

डॉ. बद्रीप्रसाद पंचोली, अजमेर

Updated : 8 April 2013 12:00 AM GMT
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