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ज्योतिर्गमय

खुद को दूसरों से श्रेष्ठ मानकर अहंकार न करें


ईश्वर ने जब संसार की रचना की तब उसने सभी जीवों में एक समान रक्त का संचार किया। इसलिए मनुष्य हो अथवा पशु सभी के शरीर में बह रहा खून का रंग लाल है। विभिन्न योनियों की रचना भी इसलिए की ताकि मनुष्य कभी इस बात का अहंकार न करें कि वह दूसरों से श्रेष्ठ है क्योंकि जीवन और मरण के चक्र में कौन कब किस योनि में जाएगा यह किसी को पता नहीं।
समानता के पीछे ईश्वर की यही इच्छा थी कि संसार में आपसी प्रेम और सद्भाव बना रहे, लोगों में छोटे अथवा बड़े का भेद पैदा नहीं हो। लेकिन समय के साथ मनुष्य की बौद्धिक क्षमता बढ़ती गयी किन्तु व्यवहारिक ज्ञान का लोप होता चला गया। मनुष्य ईश्वर की इच्छा को समझ नहीं पाया और आपस में भेद-भाव करने लगा। शास्त्रों में लिखा है कि जो ईश्वर की इच्छा का सम्मान नहीं करता है ईश्वर उससे नाराज होते हैं परिणामस्वरूप व्यक्ति का पतन हो जाता है।
एक कथा इस संदर्भ में उल्लेखनीय है। महाभारत युद्ध के बाद काफी समय तक पांचों पाण्डवों ने कुशलता पूर्वक शासन करते हुए राज सुख का आनंद लिया। इसके बाद अपने उत्तराधिकारी को शासन का कार्य भार सौंप कर सभी ने सशरीर स्वर्ग की ओर प्रस्थान करने की योजना बनायी। निश्चित समय पर द्रौपदी समेत पांचों पाण्डव स्वर्ग की यात्रा पर निकल पड़े। मार्ग में उन्हें एक काला कुत्ता मिला। कुत्ता भी इनके पीछे-पीछे चल पड़ा। युधिष्ठिर को छोड़कर सभी भाई एवं द्रौपदी को यह अच्छा नहीं लगा कि कुत्ता उनके साथ सशरीर स्वर्ग प्राप्त करे।
सभी भाईयों ने कुत्ते को धक्का देकर पर्वत से नीचे गिराना चाहा। लेकिन, कुत्ता पर्वत से नहीं गिरा बल्कि बारी-बारी से सभी भाई और द्रौपदी पर्वत से गिर पड़े और सशरीर स्वर्ग नहीं पहुंच पाये। युधिष्ठिर के पीछे-पीछे कुत्ता चलता रहा लेकिन युधिष्ठिर ने इसका एतराज नहीं किया। स्वर्ग के पास पहुंचने पर एक विमान सामने नजऱ आया।
युधिष्ठिर इसमें बैठ गये तो कुत्ता भी साथ में आकर बैठ गया, इस पर भी युधिष्ठिर ने एतराज नहीं किया। युधिष्ठिर की दयालुता और समानता के भाव को देखकर कुत्ता बनकर साथ में चल रहे धर्मराज अपने वास्तविक रूप में प्रकट हो गये और युधिष्ठिर से कहा कि वास्तव में तुम धर्म के प्रतीक हो और तुम सशरीर स्वर्ग में प्रवेश करने की योग्यता रखते हुए। इस तरह समानता के भाव की वजह से युधिष्ठिर सशरीर स्वर्ग में स्थान प्राप्त करने में सफल हुए और असमानता का भाव रखने वाले शेष पाण्डव अपने उद्देश्य में असफल हुए। 

Updated : 21 Jan 2013 12:00 AM GMT
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