भारत में सहकारी दुग्ध उद्योग के जनक रहे कुरियन का निधन
नई दिल्ली | भारत को दुनिया का सर्वाधिक दुग्ध उत्पादक देश बनाने के लिए श्वेत क्रांति लाने वाले वर्गीज कुरियन को देश में सहकारी दुग्ध उद्योग के मॉडल की आधारशिला रखने का श्रेय जाता है। अरबों रुपये वाले ब्रांड अमूल को जन्म देने वाले कुरियन का रविवार की सुबह 90 वर्ष की आयु में निधन हो गया। भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया था। उन्हें सामुदायिक नेतत्व के लिए रैमन मैग्सेसे पुरस्कार, कार्नेगी़-वाटलर विश्व शांति पुरस्कार और अमेरिका के इंटरनेशनल परसन ऑफ द ईयर सम्मान से भी नवाजा गया। केरल के कोझिकोड में 26 नवंबर, 1921 को जन्मे कुरियन ने चेन्नई के लोयला कॉलेज से 1940 में विज्ञान में स्नातक किया और चेन्नई के ही जी सी इंजीनियरिंग कॉलेज से इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की। जमशेदपुर स्थित टिस्को में कुछ समय काम करने के बाद कुरियन को डेयरी इंजीनियरिंग में अध्ययन करने के लिए भारत सरकार की ओर से छात्रवृत्ति दी गयी। बेंगलूर के इंपीरियल इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल हजबेंड्री एंड डेयरिंग में विशेष प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद कुरियन अमेरिका गये जहां उन्होंने मिशीगन स्टेट यूनिवर्सिटी से 1948 में मेकेनिकल इंजीनियरिंग में अपनी मास्टर डिग्री हासिल की, जिसमें डेयरी इंजीनियरिंग भी एक विषय था। भारत लौटने पर कुरियन को अपने बांड की अवधि की सेवा पूरी करने के लिए गुजरात के आणंद स्थित सरकारी क्रीमरी में काम करने का मौका मिला। 1949 के अंत तक कुरियन को क्रीमरी से कार्यमुक्त करने का आदेश दे दिया गया। उन्होंने 1949 में कैरा जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ लिमिटेड के अध्यक्ष त्रिभुवन दास पटेल के अनुरोध पर डेयरी का काम संभाला। सरदार वल्लभभाई पटेल की पहल पर इस डेयरी की स्थापना की गयी थी। बाद में पटेल ने कुरियन को एक डेयरी प्रसंस्करण उद्योग बनाने में मदद करने के लिए कहा जहां से अमूल का जन्म हुआ। अमूल के सहकारी मॉडल को सफलता मिली और पूरे गुजरात में इसे देखा जाने लगा। बाद में अलग अलग दुग्ध संघों को गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन संघ के बैनर तले एक जगह लाया गया। कुरियन ने सहकारिता के माध्यम से भारतीय किसानों को सशक्त बनाने की दिशा में अपना कॅरियर समर्पित कर दिया। उन्होंने 1979 से 2006 तक ग्रामीण प्रबंधन संस्थान में भी काम किया। आणंद में कुरियन के काम करने के दौरान भारतीय दुग्ध उ ग की दिशा और दशा ही बदल गयी। गुजरात में पहले दुग्ध सहकारी संघ की शुरुआत 1946 में की गयी थी जब दो गांवों की समितियां इसकी सदस्य बनीं। सदस्य समितियों की संख्या आज 16,100 हो गयी है जिसमें 32 लाख सदस्य दूध की आपूर्ति कर रहे हैं। भैंस के दूध से पहली बार पाउडर बनाने का श्रेय भी कुरियन को जाता है। उनके प्रयासों से ही दुनिया में पहली बार गाय के दूध से पाउडर बनाया गया।