दलित भी बन सकता है सरसंघचालक : भागवत
मुम्बई | एक दलित निश्चित तौर पर सरसंघचालक बन सकता है और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नेतृत्व कर सकता है। हमें इस बात पर कोई ऐतराज नहीं है। यह बातें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहीं। उन्होंने कहा कि संघ के काम में जुटा कोई भी सरसंघचालक बन सकता है चाहे वह दलित हो। लेकिन केवल दलित होने से उसे यह पद नहीं मिलेगा बल्कि उसके काम के आधार पर मिलेगा। भागवतजी यहां आयोजित आईडिया एक्सचेंज कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। एक्सप्रेस ग्रुप के मराठी अखबार लोकसत्ता ने उक्त कार्यक्रम का आयोजन किया था। भागवतजी ने आरएसएस की प्रासंगिकता, सरसंघचालक की दिनचर्या एवं संघ किस प्रकार हिंदुत्त्व को परिभाषित करता है आदि मुद्दों पर खुल कर अपने विचार रखे। भागवतजी ने कहा कि, लोग छोटी बातों को मन से निकाल दें इसलिए आरएसएस लोगों को जागरुक करता है। किसी विषय की महज निंदा करने से वह नष्ट नहीं होता उसे लोगों के दिमाग से निकालना पड़ता है। जातिवाद भी ऐसाही एक छोटा विषय है जो बार-बार उभर कर आता है क्योंकि वह लोगों की सोच में रहता है। ऐसे विषय लोगोंकी सोच से निकालने का प्रयास संघ करता है। इसीलिए भारतके सभी जनसमुदाय संघ में विश्वास करते हैं। इसी विषय पर आगे बात करते हुए उन्होंने आरक्षण के बारे में संघ की भूमिका स्पष्ट की। उन्होंने कहा की, जहां कहीं भी सामाजिक भेदभाव होता है वहां आरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए और यह तब तक रहना चाहिए जबतक सामाजिक भेदभाव पूरी तरह खत्म न हो जाए। आरएसएस ने हिंदूओं के बीच सामाजिक भेदभाव खत्म करने के लिए हमेशा प्रयास किया है। सामाजिक सशक्तिकरण के लिए आरक्षण की आवश्यकता है लेकिन लोगों ने इसका उपयोग राजनीति के लिए किया, इस बात पर खेद जताते हुए उन्होंने कहा कि जनता इस विषय पर विवाद न करें। आरएसएस की सदस्यता के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा की संघ के करीब 90 प्रतिशत स्वयंसेवक 20 से 25 के आयुवर्ग में हैं। उन्होंने नई पीढ़ी पर विश्वास जतातेहुए कहा की, आजके युवा सामाजिक दृष्टि से सजग हैं और उनकी दृष्टि सकारात्मक है। देशभक्ति और मानवता की सेवा ये युवाओंको आकर्षित करने वाली दो बड़ी चीजें है। इसीलिए युवा संघ की ओर आकर्षित होते हैं। आईटी क्षेत्र के युवा भारी संख्यामें संघ से जुड़ रहे है। संगठित और सुसंस्कारी समाज ये सभीकी आवश्यकता है और संघ उसीके निर्माणमें जुटा हुआ है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि आरएसएस के लिए सभी राजनीतिक दल समान है। कोई भी आरएसएस से मदद मांग सकता है। हमारे स्वयंसेवक कई दलों में हैं। अन्ना हजारे के बारे में उन्होंने कहा कि वे स्वयंसेवक नहीं हैं। उनकी अपनी विचारधारा है। हमने भ्रष्टाचार के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया था और भ्रष्टाचार के खिलाफ किसी भी लड़ाई का हम समर्थन करते हैं। . हिंदू संगठनों पर हिंसा फैलाने के आरोपों के बारे में उन्होंने कहा कि हिंदू हमेशा से हिंसा के विरोधी रहे हैं। व्यक्तियों के खिलाफ आरोप लगे हैं परंतु इन्हें साबित नहीं किया जा सका है। जांच करने वालों की भूमिका भी संदिग्ध है। आर्थिक सुधारों के बारे में पूछे गए सवाल के जवाब में भागवत ने कहा कि संघ आत्मनिर्भरता पर विश्वास करता है। हमारी आर्थिक नीति इसी पर आधारित होनी चाहिए। सभी देश आत्मनिर्भर बनने का प्रयास कर रहे हैं। हम एसेंबलिंग कर रहे हैं उत्पादन नहीं। हमारी क्षमता हमारे लक्ष्य को परिभाषित करे ऐसा प्रयास होना चाहिए। चीन और रुस महाशक्ति बन चुके हैं। हमें रोजगार के अवसरों में बढ़ोतरी करनी होगी जिससे पर्यावरण को क्षति न हो। हमें उत्पादन पर ध्यान देना होगा। भागवतजी ने इनके अलावा भी अन्य मुद्दों पर चर्चा की जो लोकसत्ता के 9 सितंबर के रविवारीय संस्करण में प्रकाशित होंगी।