बौना ग्रह बन गया प्लूटो
नई दिल्ली। प्लूटो के बारे में तो तुमने सुना ही होगा। यह पहले अपने सौरमंडल का 9वां ग्रह था। लेकिन अब इसे ग्रह नहीं माना जाता। आओ आज प्लूटो के बारे में जानते हैं प्लूटो 2006 तक सौरमंडल का काफी महत्वपूर्ण सदस्य था। इसे 9वें ग्रह का सम्मान प्राप्त था। लेकिन 13 सितम्बर 2006 को इंटरनेशनल एस्ट्रोनोमिकल एसोसिएशन ने प्लूटो से यह अधिकार छीन लिया। एसोसिएशन ने घोषणा कर दी कि अब प्लूटो ग्रह नहीं है। उन्होंने एक नई श्रेणी भी बनाई, जिसमें इसे बौना ग्रह का नाम देकर डाल दिया गया। तब से प्लूटो को बौना ग्रह कहा जाता है। तुम सोच रहे होगे कि जब यह ग्रह था तो इसे बौने ग्रहों की श्रेणी में क्यों डाला? 75 देशों के वैज्ञानिकों ने प्लूटो के बारे में हुए शोध के बाद यह तय किया कि प्लूटो में ग्रह कहलाने वाले गुण नहीं हैं। वैज्ञानिकों ने कहा कि ग्रह वह होता है, जो इतना बड़ा हो कि उसमें गुरुत्वाकर्षण बल पैदा करने की क्षमता हो। वह गोलाकार हो, सूर्य के चक्कर लगाता हो और उसकी कक्षा किसी अन्य ग्रह की कक्षा को काटती न हो। प्लूटो इन शर्तों को पूरा नहीं करता। वह तो बुध का आधा भी नहीं है। तुम तो पढ़ ही चुके हो कि अभी बुध अपने सौरमंडल का सबसे छोटा ग्रह है। प्लूटो सूर्य के चक्कर तो लगाता है, लेकिन कई बार सूर्य से काफी दूर भी चला जाता है और फिर रास्ते पर आ जाता है। वह कई बार नेपच्यून से भी करीब आ जाता है। तुम्हें तो पता ही है कि नेपच्यून अपने सौरमंडल का अंतिम ग्रह है, जो सूर्य से 8वें नम्बर पर है। इसलिए वैज्ञानिकों ने घोषणा की कि प्लूटो ग्रह नहीं है। प्लूटो को जानो करीब से...
प्लूटो का आकार हमारे चंद्रमा का एक तिहाई है। यानी हमारे चंद्रमा के तीसरे हिस्से के बराबर है प्लूटो। इसका व्यास लगभग 2,300 किलोमीटर है। अपनी पृथ्वी तो प्लूटो से लगभग 6 गुना बड़ी है। सूर्य से औसतन 6 अरब किलोमीटर दूर है यह प्लूटो। इस कारण इसे सूर्य का एक चक्कर लगाने में हमारे 248 साल के बराबर समय लग जाता है। यह नाइट्रोजन की बर्फ, पानी की बर्फ और पत्थरों से बना है। इसके वायुमंडल में नाइट्रोजन, मिथेन और कार्बन मोनोक्साइड गैस है। इस कारण यहां का तापमान काफी कम रहता है। शून्य से 200 डिग्री सेल्सियस नीचे यानी -200 डिग्री सेल्सियस रहता है। इससे तुम अंदाजा लगा सकते हो कि यहां कितनी ठंड लगती होगी। इतने कम तापमान में कोई यहां नहीं रह सकता। यहां गैस वाले वातावरण के कारण प्लूटो के भी छल्ले दिखाई देते हैं और यहां का रंग भी बदलता रहता है। वैसे यहां का रंग काले, नारंगी और सफेद रंग का मिश्रण लगता है। प्लूटो की खोज सन् 1930 में हुई थी। अमेरिकी खगोलशास्त्री क्लाइड डब्ल्यू टॉमबॉग ने इसकी खोज की थी। उस समय लगा कि प्लूटो ग्रह है और उसे 9वां ग्रह मान लिया गया था। तुम्हें जानकर ताज्जुव होगा कि प्लूटो का नाम एक बच्चे ने रखा है। वैज्ञानिकों ने लोगों से पूछा था कि इस ग्रह का क्या नाम रखा जाए। ऑक्सफोर्ड स्कूल ऑफ लंदन में 11वीं में पढ़ने वाली एक छात्र वेनेशिया बर्ने ने सुझाव दिया था कि इसका नाम प्लूटो रखा जाए। उस लड़की ने कहा कि रोम देश में अंधेरे के देवता को प्लूटो कहते हैं और इस नए ग्रह पर भी हमेशा अंधेरा रहता है। इसलिए इसका नाम प्लूटो रखा जाए। वैज्ञानिकों को यह बात अच्छी लगी और इसका नाम प्लूटो रख दिया गया। अब तो प्लूटो के चार चंद्रमा भी मिले हैं। हब्बल स्पेस टेलीस्कोप ने पिछले साल ही प्लूटो के चौथे चंद्रमा की खोज की है, जिसका नाम एस है। प्लूटो के बाकी तीन चंद्रमा के नाम शैरन, निक्स और हाएड्रा हैं।