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भारत पर भरोसा घटा

भारत पर भरोसा घटा
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$img_titleनई दिल्ली।
एक महीने पहले केंद्र सरकार का बजट और दस दिन पहले आई रिजर्व बैंक की उदार मौद्रिक नीति भी अर्थव्यवस्था के प्रति दुनिया का भरोसा नहीं जगा पा रहे हैं। इसके लिए सरकार को अब आर्थिक सुधारों की रफ्तार तेज करनी होगी।
सरकार की नीतिगत अनिर्णय की स्थिति से घरेलू मोर्चे पर ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भरोसे में कमी आई है। मल्टी ब्रांड खुदरा कारोबार में एफडीआइ का मामला हो या फिर सब्सिडी घटाने के कदम उठाने का फैसला, सरकार इन फैसलों पर हमेशा कदम आगे बढ़ाने से हिचकती रही है। जीएसटी यानी वस्तु व सेवा कर और नए प्रत्यक्ष कर कानून को लागू न करा पाने की लाचारी से भी सरकार की विश्वसनीयता घटी है।


रेटिंग का सिलसिला आगे न बढ़े इसके लिए जरूरी है कि सरकार मौजूदा लंबित कानूनों पर जल्द अमल करवाए। साथ ही अगर विदेशी निवेशकों का भरोसा भारतीय अर्थव्यवस्था में जगाना है तो नागरिक उड्डयन, बीमा और अन्य क्षेत्रों को विदेशी निवेशकों के लिए और खोले जाने की जरूरत है। विदेशी विश्लेषकों की नजरें सरकार के राजनीतिक कौशल पर भी टिकी हैं। तमाम सुधारों पर सरकार को अपने ही सहयोगियों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। सरकार के लिए अपने कदम बढ़ाना और मुश्किल होता जा रहा है।

सरकार की सबसे बड़ी दिक्कत राजकोषीय घाटे को संभालने की है। बीते वित्ता वर्ष 6.9 प्रतिशत की आर्थिक विकास दर प्राप्त करने के बावजूद राजकोषीय घाटा 5.9 प्रतिशत के खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। इस पर काबू पाने के लिए सरकार को सब्सिडी में कमी करनी है। लेकिन तमाम प्रयासों के बावजूद डीजल को नियंत्रण मुक्त करने का फैसला सरकार नहीं ले पा रही है। भारत की भविष्य की रेटिंग सरकार के इन्हीं कदमों से तय होगी।

रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स [एसएंडपी] ने बुधवार को भारत के आर्थिक परिदृश्य की रेटिंग को स्थिर से घटाकर नकारात्मक कर दिया। इसका मतलब क्या है?

परिदृश्य का मतलब है कि लघु से मध्यम अवधि विशेष रूप से छह महीने से दो वर्षो में रेटिंग किस दिशा में बढ़ सकती है। परिदृश्य स्थिर रहने का मतलब है कि रेटिंग में बदलाव नहीं होने वाला है। नकारात्मक परिदृश्य का मतलब है कि रेटिंग को घटाया जा सकता है, जबकि सकारात्मक परिदृश्य का मतलब है कि रेटिंग को बढ़ाया जा सकता है।

रेटिंग एजेंसी विकासशील या उभरता परिदृश्य भी देती है। इसका मतलब यह है कि रेटिंग को घटाया या बढ़ाया जा सकता है। हालांकि परिदृश्य तय करने से यह तय नहीं हो जाता कि रेटिंग में बदलाव होगा। रेटिंग एजेंसी दीर्घावधि रेटिंग में स्थिरता बनाए रखने के लिए परिदृश्य तय करती है।

रेटिंग घटाए जाने का मतलब यह है कि सरकार अपनी देनदारी पूरी करने में कम सक्षम है। इससे कर्ज पर ब्याज बढ़ सकता है।

प्रमुख रेटिंग एजेंसियों एसएंडपी, फिच रेटिंग और मूडीज ने भारत को निवेश श्रेणी की सबसे निचली रेटिंग दी है। एसएंडपी ने बुधवार को भारत के लिए लम्बी अवधि की साख रेटिंग बीबीबी- पर बरकरार रखी, जो निवेश श्रेणी की सबसे निचली रेटिंग है। रेटिंग में और कटौती होने से देश के सरकारी बांड को जंक [कूड़ा] का दर्जा मिल जाएगा। इससे सरकार के लिए वित्ता जुटाना कठिन हो जाएगा।

Updated : 26 April 2012 12:00 AM GMT
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